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क्या आप जानते हैं भोपाल का पुराना नाम…? जानें क्या कहता है इतिहास

Bhopal old name: एमपी की राजधानी भोपाल का नाम पिछले तीन दिन से चर्चा में हैं, चर्चा है नाम बदलने की, शहर के 14 चौराहों पर आमजन ने प्रदर्शन कर भोपाल का नाम बदलकर भोजपाल करने की मांग की है, अब सवाल ये है कि भोपाल का पुराना नाम क्या भोपाल या भोजपाल... patrika.com पर जानें क्या कहता है भोपाल का इतिहास...

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Bhopal or Bhojpal what is the bhopal old name

Bhopal or Bhojpal what is the bhopal old name(Photo: X)

Bhopal old name:संजना कुमार@पत्रिका: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल इन दिनों चर्चा में है, हो भी क्यों न… अब जब किसी शहर के नाम बदलने को लेकर धरना-प्रदर्शन होंगे, नारे लगाए जाएंगे तो, चर्चा होना लाजमी है। शहर के 14 चौराहों पर प्रदर्शन किया गया और मांग की गई कि भोपाल को उसका पुराना नाम भोजपाल दिया जाए। इस प्रदर्शन में भोजपाल मित्र परिषद और आम नागरिकों ने हिस्‍सा लिया और इसे सबसे बड़ा प्रदर्शन बता गया। शहर का नाम बदलने की मांग पहली बार नहीं उठी है, इससे पहले भी कई बार भोपाल (Bhopal old Name) का नाम बदलने की चर्चा होती रही हैं। patrika.com पर जानें क्या कहता है भोपाल का इतिहास (Bhopal History), आखिर क्या है भोपाल का असली या पुराना (Original or old Name of Bhopal) नाम?

भोपाल का नाम आते ही क्या याद आता है...

भोपाल का नाम आते ही सबसे पहले लोगों के जहन में राजा भोज की नगरी, झीलों का शहर, हरियाली का शहर, नवाबी शासकों और बेगमों की रियासतों का शहर, मस्जिदों का शहर, अदब का शहर, तहजीब का शहर, एशिया की सबसे बड़ी मस्जिद का शहर बनकर याद उभरता है। लेकिन 3 दिसंबर 1984 की सुबह अखबारों की सुर्खियां बनी दुनिया की सबसे भयावह 'भोपाल गैस त्रासदी' ने इसे वैश्विक पटल पर ला दिया। भोपाल का इतिहास कुछ इस तरह भी याद किया जाता है।

आखिर क्या है भोपाल का पुराना नाम?

जिस नाम को लेकर अब तक के सबसे बड़े प्रदर्शन का दावा किया जा रहा है, इतिहासकार बताते हैं कि भोपाल का पुराना नाम भोजपाल नहीं था, तो फिर कहां से क्या था?

मध्य भारत के मालवा क्षेत्र का छोटा सा कस्बा था भोपाल

परमार वंश के राजा सन्धुपाल की पत्नी ने सन 990 में भोज को जन्म दिया था। कहा जाता है कि भोज मूल नक्षत्र में पैदा हुए, इसलिए पंडित सतपाश ने मूल पूजा के लिए 27 स्थानों का जल और मिट्टी लाने को कहा और सुझाव दिया कि भोजपाल को कई वर्ष तक 27 स्थानों के इस मिट्टी मिश्रित जल से ही स्नान कराया जाना लाभदायक होगा। कहा जाता है कि पहली बार तभी भोजपुर शिव मंदिर की नींव रखी गई। बाद में जब भोज का राज्याभिषेक किया गया तब, उन्होंने इस मंदिर का निर्माण कार्य करवाया।

जमींदार भूपाल के नाम पर था कस्बे का नाम

उस समय भोपाल मालवा क्षेत्र का एक छोटा सा कस्बा हुआ करता था। उस कस्बे के एक बड़े जमींदार भूपाल के नाम पर ही कस्बे का नाम भूपाल पड़ गया। जो वक्त बीतते-बीतते भूपाल से भोपाल हो गया।

राजा भोज ने तब भोपाल को बनाया राजधानी, कहलाया भोजपाल नगरी

20 साल की उम्र में राजा बने भोजपाल ने तब भूपाल अपभ्रंश होकर भोपाल बने इस कस्बे धार के साथ ही अतिरिक्त राजधानी घोषित किया गया। राजा भोज के शासन काल के कारण ही इसे राजा भोज की नगरी और भोजपाल नगरी कहा जाने लगा। लेकिन राजा भोज की भोजपाल नगरी भी स्थानीय बोलियों की अपभ्रंशता से ज्यादा दूर नहीं रह सकी और इसे फिर से भोपाल कहा जाने लगा।

2011 में भी पूर्व सीएम ने भी किया था एलान


बता दें कि भले ही ऐसा पहली बार है कि भोपाल का नाम भोजपाल करने की मांग को लेकर आमजन सड़क पर निकल आए, हाथों में तख्तियां और मुंह पर इतिहास (Bhopal History) संरक्षण, संस्कृति संरक्षण के नाम पर भोपाल का नाम बदलने की मांग की गई। लेकिन इससे पहले भी कई बार भोपाल का नाम बदलकर भोजपाल करने की मांग भी की गई और एक बार तो खुद सीएम ने ही इसका नाम बदलकर भोजपाल रखने का एलान किया था।

2011 में शिवराज सिंह चौहान एमपी के सीएम थे। उन्होंने बड़े तालाब में स्थापित राजा भोज की प्रतिमा का अनावरण किया था। तब उन्होंने घोषणा भी की थी कि भोपाल का नाम भोजपाल करने के लिए केंद्र सरकार को राज्य का प्रस्ताव भेजा जाएगा। यही नहीं उन्होंने यह भी कहा थी कि बड़े तालाब को भोज ताल और वीआईपी रोड, जो भोपाल एयरपोर्ट को राज्यपाल तथा मुख्यमंत्री निवास से जोड़ती है उस सड़क का नाम राजा भोज मार्ग रखा जाएगा।

नाम बदलने को लेकर क्या कहते हैं इतिहास के जानकार

नाम बदलने की हकीकत: खर्च बढ़ा और आम लोगों की झंझट

किसी भी शहर या जिले का नाम बदलना सिर्फ साइनबोर्ड बदलने तक सीमित नहीं है। इसके साथ जुड़ा है बड़ा खर्च और आम जीवन की बड़ी समस्याएं

  • सभी सरकारी दस्तावेज, नोटिफिकेशन, रिकॉर्ड और मैप बदलने पड़ते हैं।
  • रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट, बस अड्डों के बोर्ड बदलने पड़ते हैं।
  • पाठ्यपुस्तकों, ऑनलाइन डेटाबेस, जीआईएस नक्शों में सुधार करना पड़ता है।
  • विभागों को नए आदेश, फाइल और बजट जारी करना पड़ता है।।
  • यह सब मिलाकर करोड़ों रुपये का बोझ जनता की जेब से ही जाता है। टैक्स तो लोग ही भरते हैं ना, तो नाम बदलने की कीमत जनता अपने टैक्स से भरती है।

-- इस पर लोगों को आधार कार्ड से लेकर, जहां भी डॉक्यूमेंटेशन वर्क किया है, वहां-वहां पता बदलवाने की झंझट का सामना करना पड़ता है।

--स्थानीय लोग नाम बदलना उनकी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान की पुनर्स्थापना करना है। कई बार यह गौरव और आत्मसम्मान से जुड़ा मुद्दा बन जाता है। लेकिन इससे भी बड़ी बात राजनीति में ऐसे मौके को वोट बैंक बनाने और भावनाओं को भुनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

मध्यप्रदेश में नाम बदलने का सिलसिला

मध्यप्रदेशमें पिछले कुछ वर्षों में नाम बदलने की बयार और तेज़ हुई है।

होशंगाबाद - नर्मदापुरम (2021): नर्मदा नदी के सम्मान में जिला बदला गया।

नसरुल्लागंज - भैरुंडा (2023): ऐतिहासिक नाम को वापस लाने का दावा।

उज्जैन जिले में 3 गांवों के नाम बदले गए: जहांग़ीरपुर - जगदीशपुर, मौलाना - विक्रम नगर, गजनीखेड़ी पंचायत - चामुंडा माता गाँव।

देवास जिले में 54 गांवों के नाम बदलने के लिए (2025): मुख्यमंत्री ने 'सांस्कृतिक पहचान' के नाम पर एलान किया।

11 और गांवों के नाम (2025): जैसे मोहम्मदपुर मछानई - मोहनपुर किया गया।

आपको जानकर हैरानी होगी कि राजा भोज के शासन काल से पहले भोपाल

-फरवरी 2025 में एमपी के 54 गांवों के नाम बदले गए, जो उर्दू या इस्लामिक नाम से प्रभावित थे।