
World Photography Day 2025: एमपी के झाबुआ के फोटोग्राफऱ आनंदीलाल पारीक के द्वारा खीचीं गई चंद्रशेखर आजाद की सबसे मशहूर तस्वीर।
World Photography Day 2025: आज वर्ल्ड फोटोग्राफी डे है, फोटोग्राफर्स के लिए सबसे खास दिन। ऐसे में patrika.com आपको बता रहा है एमपी के ऐसे फोटोग्राफर्स की कहानी जिनका एक क्लिक ऐसा हुआ कि उनका नाम इतिहास में दर्ज हो गया। तो कुछ ऐसे जिन्होंने अपनी कमजोरियों के आगे हार नहीं मानी, बल्कि फोटोग्राफी के शौक के आगे मुश्किलों का सफर आसान कर लिया...
ये हैं इंदौर के सुनील गढ़वाल...। ऑस्टियोजेनेसिस इंपरफेक्टा बीमारी से पीड़ित हैं। जरा से झटके में हड्डी टूट जाती है, कैल्शियम बहुत कम बनता है। आकस्मिक रूप से कई बार हड्डियां टूट चुकी हैं। 4-5 एक्सीडेंट हो चुके हैं और 4 ऑपरेशन भी। मगर पिता से विरासत में मिला फोटोग्राफी का शौक इन सब मुश्किलों के बीच भी बदस्तूर परवान चढ़ रहा है।
और हां, इसी शौक सुनील ने अपनी पैशन भी बनाया। वे एक फोटो स्टूडियो चला रहे हैं...। तो बोलिए जज्बे का अगर फोटो आ सकता तो, इस फोटो से अलग तो नहीं होता? क्या कहेंगे आप?
नीमच. देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को लेकर राष्ट्रीय कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष देवकांत बरुआ ने एक नारा दिया था। इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इज इंदिरा (भारत इंदिरा है और इंदिरा भारत है)। अखबार में यह नारा पढ़ने के बाद वर्ष 1970 में नीमच के फोटोग्राफर विष्णु त्रिवेदी के परदादा रतिलाल जे. त्रिवेदी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का एक फोटो बनाया। उसमें भारत के नक्शे में इंदिरा गांधी को दर्शाया था। इस फोटो को देने वे स्वयं दिल्ली गए थे। तब इंदिरा ने मात्र 2 मिनट का समय दिया था, लेकिन चित्र देखने के बाद इंदिरा गांधी ने पूरे 15 मिनट चर्चा की।
इस चित्र को संजय गांधी (इंदिरा गांधी के पुत्र) को भेंट करने के लिए उनसे समय भी ले लिया था। किन्हीं कारणों से उन्हें विमान उड़ाने अचानक जाना पड़ा। इससे रतिलाल नाराज हो गए। रतिलाल तब राजा-महाराजाओं के चित्र बनाया करते थे। उनका सब सम्मान करते थे। उनकी नाराजगी की खबर तत्कालीन प्रधानमंत्री की निजी सचिव कुमुदबेन जोशी को मिली, तब उन्होंने केवल 2 मिनट केि लिए प्रधानमंत्री से मुलाकात करवाने की बात कही। इसके बाद रतिलाल ने पीएम इंदिरा गांधी को चित्र भेंट किया। इस दौरान उन्होंने अपना बनाया एक और चित्र प्रधानमंत्री को दिखाया। इन चित्रों को देखने के लिए इंदिरा गांधी को मैग्नीफाइंग ग्लास (बिलोरी कांच) का उपयोग करना पड़ा था।
परपोते विष्णु ने बताया, परदादा के जमाने में केनवॉस पर हाथ से चित्र बनाए जाते थे। परंपरा को दादा त्रिकमलाल , पिता किशोरचंद के बाद चौथी पीढ़ी में हम दोनों भाई लगातार बनाए हुए हैं।
झाबुआ. जिले के फोटोग्राफर्स ने अपनी हर क्लिक से देश-दुनिया में जिले का नाम रोशन किया है। हालांकि आदिवासी संस्कृति को वैश्विक पटल पर प्रदर्शित करने वाले जिले के सबसे पहले फोटोग्राफर आनंदीलाल पारीक हैं। ब्लैक एंड व्हाइट फोटोग्राफी के समय में बॉक्स कैमरे से खींचे और तैयार फोटो से वे कई पुरस्कार जीत चुके हैं।
जिले के एक और फोटोग्राफर हैं, मुनिन्द्र त्रिवेदी, जो पेशे से बैंकर हैं, लेकिन फोटोग्राफी के शौक से कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं। आनंदीलाल अपने समय में सामाजिक एवं ऐतिहासिक घटनाओं को कैद करने में खास रूचि लेते थे। उन्होंने 1920 में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की तस्वीर खींची थी, जो आज भी एक प्रामाणिक ऐतिहासिक दस्तावेज है।
पहले इस तस्वीर में आजाद अपनी बुआ के साथ खड़े थे। बाद में इसे अलग किया गया। इसके लिए मुंबई से प्लेट मंगवाकर कंपोज किया था। आनंदीलाल के बेटे कृष्णा ने बताया, वर्ष 1958 में भाबरा में आजाद का अस्थिकलश लाया गया था, तब उनकी सिंगल फोटो की जरूरत पड़ी। तब आनंदीलाल को झाबुआ से बुलाया गया।
Updated on:
21 Aug 2025 10:27 am
Published on:
19 Aug 2025 11:41 am
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