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ट्रेन का फार्म भरा निरस्त, बस का फार्म भरा निरस्त रुपए इतने नहीं तो चल पड़े पैदल

ई-पास से भी अनुमति नहीं मिली मप्र से मिल रहे हैं साधन

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दमोह

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rakesh Palandi

May 20, 2020

Train form canceled, bus form canceled

मारुताल बायपास पर विभिन्न राज्यों से पहुंचे मजदूरों की 22 मार्च से लेकर दमोह पहुंचने तक दर्द भरी कहानी है। प्रत्येक मजदूर के साथ छोटे बच्चे हैं, जिनकी उम्र एक साल से लेकर 10 साल के बीच की है। छोटी उम्र के मासूम बच्चों को भी 500 से 700 किमी तक पैदल चलना पड़ा है। इन मजदूरों का सब कुछ ठीक चल रहा था, दिन मजदूरी कर सप्ताह में मजदूरी का भुगतान भी हो रहा था। लेकिन 22 मार्च को जैसे ही प्रधानमंत्री ने लॉकडाउन की घोषणा की तो मजदूरों ने समझा एक या दो सप्ताह में लॉकडाउन खुल जाएगा।

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तीन बाद भी रंग दिखाना शुरू किया दमोह जिले में लौटे अधिकांश मजदूरों की कहानी एक सी है। जो बाहरी राज्यों में सालों से कंपनियों के लिए दिन रात मेहनत कर ऊंचाईयों पर पहुंचा रहे थे। वे दिहाड़ी मजदूर जो अपने ठेकेदार को साइकिल से कार तक का सफर करा चुके थे। इन सभी ने पहले लॉकडाउन के तीसरे दिन से ही रंग दिखाना शुरू कर दिया था। लॉकडाउन होने के बाद उनकी मजदूरी नहीं दी। खाने पीने का इंतजाम न करते हुए सभी मजदूरों से कह दिया कि काम बंद कर दिया है। जिन मजदूरों के पास खाने पीने का हफ्ते-दो हफ्ते का इंतजाम था वह लॉकडाउन खुलने का इंतजार करने लगे, लेकिन जब कोई आस नहीं दिखी तो अपने मासूम बच्चों के साथ पैदल चल पड़े।

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700 से 1100 किमी का सफर पहले लॉकडाउन में पैदल पहुंचे करीब 10 हजार मजदूरों ने 700 से लेकर 1100 किमी का सफर पैदल ही अपने बच्चों के साथ किया हैं। मुंबई से पैदल लौटे सिमरिया के रामस्वरूप आदिवासी ने बताया कि वह अपने परिवार के साथ पैदल चला था। महाराष्ट्र से सेंधवा होता हुए प्रदेश में दाखिल हुआ। खाने पीने का सामान साथ लेकर चला था। शुरुआती दौर में किसी ने पानी के लिए भी नहीं पूछा। रास्ते में गांव मिलने पर लोगों से खाना मांगा, बच्चों व साथ में महिलाएं देख लोगों ने खाना दिया। जब मैं वापस आया तो न ही बार्डर पर पुलिस ने कोई साधन उपलब्ध कराया और न ही खाने पीने की व्यवस्था की। घर वापस आए डेढ़ माह से अधिक समय आ गया है, लेकिन आंख मूंदते ही सूनसान रास्ते और अपने परिजनों के साथ पैदल चलने वाला मंजर की यादें अभी भी पीछा नहीं छोड़ पाई हैं। मन में यह भी मलाल है कि मासूम बच्चों को भी करीब 1100 किमी पैदल चलना पड़ा, जिसे पूरा करने में उन्हें 17 दिन लगे थे। हरियाणा से पटेरा गांव पहुंचे रामखिलावन बताते हैं कि उन्होंने 839 किमी का सफर अपने बच्चों के साथ किया था, हटा पहुंचने पर पुलिस ने जीप से गांव तक पहुंचाया था। इतने में सफर में कुल 40 किमी का साधन मिला था। हरियाणा से लेकर यूपी तक किसी ने खाना भी नहीं दिया था।

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ट्रेन बस के फार्म निरस्त तो चल पड़े पैदल मुंबई से पैदल चलकर सेंधवा वार्डर तक पहुंचे इलाहाबाद के काशीराम, रमेश व चार अन्य साथियों ने बताया कि महाराष्ट्र में पहले ट्रेन से भिजवाने के लिए सूचना निकाली आवेदन भरा निरस्त हो गया। इसके बाद बस का फार्म निरस्त हो गया। जिससे करीब 1390 किमी का सफर पैदल ही सफर करने लगे। मप्र बार्डर पर पहुंचे तो यहां पुलिस ने माल वाहक ट्रक में बिठा दिया।

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पैदल आए सुरक्षित अब आ रहे असुरक्षित विभिन्न मालवाहकों, बसों से वापस आ रहे मजदूरों का कहना है कि जो मजदूर पैदल आ गए हैं, वे कम से कम सुरक्षित हैं। मंगलवार को गुडग़ांव से पहुंचे मजदूर किशनलाल का कहना है कि अब साधन मिल रहे हैं, लेकिन जान का खतरा बढ़ रहा है, क्योंकि पता ही नहीं चल रहा है कि कौन संक्रमित हैं और कौन स्वस्थ्य है। अब सोच रहे हैं कि पैदल आ गए होते तो अच्छा था। ---------------------- पैदल चलने का दर्द हो गया काफूर अपने राज्य को छोड़ दूसरे राज्यों में पलायन कर गए, मजदूरों को वहां से पलायन पैदल करना पड़ा है। मप्र पहुंचे तो खाना मिला, साधन मिला, जो पैदल ही पहुंचे। काम की चिंता सता रही थी तो घर में तीन माह का राशन मिला। संबल कार्ड के 500 से एक हजार रुपए खाते में आए। इतना ही नहीं अब ग्राम पंचायत स्तर पर काम मिलने लगा है। पटेरा तहसील के अंतर्गत 12 ग्राम पंचायतों में प्रतिदिन 11०० मजदूरों को काम दिया जा रहा है। उपयंत्री कमलेश चौधरी का कहना है कि ग्राम पंचायतों में लगातार काम किया जा रहा है, कोरोना वायरस के चलते प्रत्येक गांव में बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर पहुंचे हैं, जिन्हें प्राथमिकता के आधार पर काम दिया जा रहा है। सोशल डिस्टेंस का पालन कराते हुए मास्क भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। ------------------- सरकार से ज्यादा किसान कर रहे मदद दमोह जिले से पलायन कर गए जितने भी मजदूर हैं, वह खेतों में काम करते थे, उनके जाने के बाद जिले के किसान अपने खेतों पर कटाई के लिए परेशान होते थे, हार्वेस्टर से लेकर दूसरे जिले के मजदूर बुलाने पड़ते थे, लेकिन अन्नदाता है कि किसी को भूखा नहीं देख सकता है। पीठ दिखाकर पलायन कर गए मजदूरों की घर वापसी पर किसान उनके घरों में अनाज की डलिया पहुंचा रहे हैं, किसानों की इस दरियादिली से अनेक मजदूरों ने किसानों से माफी मांगी है कि अब कभी पीठ दिखाकर नहीं भागेंगे। क्योंकि सरकारी राशन से अधिक गेहूं मदद के रूप में पहुंचाया जा रहा है।