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बीमारियों को जड़ से खत्म करने का अचूक तरीका , नाम है इलेक्ट्रोपैथी

Electropathy इलेक्ट्रोपैथी में, पौधों के रस (अर्क) का उपयोग होता है। पौधों की ऊर्जा संबंधितता को हम इलेक्ट्रोसिटी कहते हैं। इस आधार पर इसे इलेक्ट्रोपैथी कहा जाता है। इसमें अर्क को लिक्विड या इंजेक्शन के रूप में देते हैं। इस पैथी के नाम से लोगों में भ्रम होता है कि इसमें बिजली से इलेक्ट्रिक शॉक देते होंगे। लेकिन ऐसा नहीं है। इसमें हर तरह की बीमारियों का हब्र्स से इलाज होता है।

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Electropathy इलेक्ट्रोपैथी में, पौधों के रस (अर्क) का उपयोग होता है। पौधों की ऊर्जा संबंधितता को हम इलेक्ट्रोसिटी कहते हैं। इस आधार पर इसे इलेक्ट्रोपैथी कहा जाता है। इसमें अर्क को लिक्विड या इंजेक्शन के रूप में देते हैं। इस पैथी के नाम से लोगों में भ्रम होता है कि इसमें बिजली से इलेक्ट्रिक शॉक देते होंगे। लेकिन ऐसा नहीं है। इसमें हर तरह की बीमारियों का हब्र्स से इलाज होता है।

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इसमें दवा बनाने का तरीका बिल्कुल अलग है। जिस पौधे का अर्क निकालना होता है, उस पौधे को एक कांच के जार में पानी के साथ रख दिया जाता है। हर सप्ताह पुराने पौधों को निकाल दिया जाता है और दूसरा नया पौधा उसमें डाल दिया जाता है। यह प्रक्रिया करीब 35-40 दिन तक चलती है। फिर उस पानी को फिल्टर किया जाता है। इसे स्पेजरिक एसेंस कहा जाता है। जरूरत के अनुसार इसको गाढ़ा या पलता कर दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। अभी करीब 114 पौधों की पहचान हो चुकी है, जिनसे इलेक्ट्रोपैथी के लिए दवाइयां बनाई जा रही हैं।

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इस पैथी का उपयोग शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और ब्लड को बढ़ाने के लिए किया जाता है। किडनी स्टोन, कब्ज, टॉन्सिलाइटिस, गठिया, पाइल्स, साइनोसाइटिस, चर्म रोग, ब्लड प्रेशर, दमा आदि में भी इसका उपयोग किया जाता है।

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पांच प्रकृतियों से होने वाली पहचानआयुर्वेद में बीमारियों की पहचान वात, पित्त, और कफ प्रकृतियों से की जाती है। इसमें वायु, पित्त, रस, रक्त, और मिश्रित प्रकृति की पांच प्रकृतियाँ होती हैं। इसमें शरीर का तापमान भी महत्वपूर्ण होता है और रोगों की जाँच करने के लिए इसका उपयोग होता है।

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सकारात्मक और नकारात्मक, दो तरह की बीमारियांइस पैथी में बीमारियों को दो वर्गों में बांटा गया है - सकारात्मक और नकारात्मक। जिस बीमारी में परिवर्तन के बाद शरीर में अवययों की मात्रा अधिक हो जाती है, उसे सकारात्मक कहा जाता है, जबकि जिसमें अवयवों की मात्रा घट जाती है, उसे नकारात्मक बीमारी कहते हैं। उदाहरण के लिए, शरीर में शुगर का स्तर बढ़ना सकारात्मक बीमारी की श्रेणी में आता है, जबकि शुगर या ब्लड प्रेशर लेवल कम होना नकारात्मक बीमारी की श्रेणी में आता है।