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सड़कों पर कडाके की ठंड में ठिठुरते जरूरतमंदों की कहानी बया करती तस्वीरें

कोटा की सड़कों पर जरूरतमंद ठिठुरते नजर आ रहे है, और रैन-बसेरे अव्यवस्थाअों की भेंट चढ़े हुए हैं।

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कोटा

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ritu shrivastav

Dec 22, 2017

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कोटड़ी नहर की पुलिया पर बने फ्लाई ओवर के नीचे बने रैन-बसेरे में 20 जनों के सोने की व्यवस्था है। इससे ज्यादा व्यक्ति आने पर उन्हें खुले आसमां के नीचे ही सोना पड़़ता है। बसेरे में न तो पेयजल प्रबंध है और न ही अलाव की। लोगों को सोने से पहले पेयजल का इंतजाम करना पड़ता है। बसेरे में तालाब की पाल पर सामान्य कपड़े का पर्दा लगा रखा है। इससे रात के वक्त बढ़ती ठिठुरन हाड़ कंपा देती है।

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एमबीएस अस्पताल में आयुर्वेदिक चिकित्सालय से सटे स्थायी आश्रय स्थल में महिला-पुरुषों के सोने के लिए अलग-अलग रैन-बसेरे बना रखे हैं। लेकिन यहां पेयजल, टॉयलेट्स की व्यवस्था नहीं है। यहां सो रही महिलाओं ने बताया कि रात में टॉयलेट के लिए रैन-बसेरे से बाहर दूर जाने में डर लगता है। एेसे में पास में सो रही महिलाओं को जगाकर ले जाना पड़ता है। रात में पानी पीने के लिए भी इमरजेंसी के बाहर जाना पड़ता है।

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नयापुरा बस स्टैंड के बाहर संचालित आश्रय स्थल का लाखों रुपए खर्च कर जीर्णोद्धार कराया गया। इसका तीन दिन पहले ही उद्घाटन हुआ। लेकिन रात दस बजते ही गेट के ताले लगा दिए जाते हैं। रैन-बसेरे का चौकीदार, प्रभारी पहली मंजिल पर बने कमरे में जाकर सो जाते हैं। एेसे में रात को आने वाले यात्रियों, जरूरतमंदों द्वारा आवाज लगाने के बाद भी नहीं उठते। रैन-बसेरे के बाहर के दुकानदारों ने बताया कि रात दस बजते ही लगने वाला लॉक सुबह ६ बजे खुलता है। रात को कई यात्री आते हैं लेकिन लॉक नहीं खुलने के कारण उन्हें लॉज में किराया देकर सोना पड़ता है या फिर बस स्टैंड पर रात काटनी पड़ती है।

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इस रैन-बसेरे में 50 रजाई-गद्दों की व्यवस्था है। जो तीमारदार पहले आ जाता है, उसे उचित जगह, रजाई-गद्दे मिल जाते हैं। रात दस बजे बाद यहां न तो जगह मिलती और न ही रजाई-गद्दे। एेसे में देर रात आने वाले तीमारदारों को किराये से रजाई लेकर खुले आसमां के नीचे ही सोना पड़ता है। ज्यादा परेशानी महिलाओं को उठानी पड़ती है। उनके लिए सुरक्षित रैन-बसेरे की व्यवस्था नहीं है। महिलाओं के लिए आरक्षित हॉल में भी पुरुषों का जमावड़ा रहता है। एेसे में मजबूरी में महिलाओं को ओपीडी काउंटर के बाहर ही सोना पड़ता है या फिर एमबीएस अस्पताल परिसर में बने रैन-बसेरे में जाना पड़ता है।

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कड़ाके की सर्दी में शहर में फुटपाथ पर सोते लोगों की सहायता के लिए कई लोग नि:स्वार्थ सेवा भाव से भी रात को निकलते हैं। पत्रिका टीम नाइट वॉच के तहत किशोर सागर तालाब की पाल पर रात 2 बजे सो रहे लोगों को एक सेवाभावी परिवार कम्बल ओढ़ाता दिखाई दिया। टीम रुकी और चर्चा की तो उन्होंने मीडिया का होने मात्र से दूरी बना ली। फोटो से भी इनकार किया। भरोसे में लेने पर अनौपचारिक चर्चा में परिवार के मुखिया ने बताया कि उनके दोस्तों ने मिलकर समूह बना रखा है। सदस्य देर रात आवश्यक सामान लेकर घर से निकलते हैं। जहां भी कोई जरूरतमंद व्यक्ति दिखता है, सामान देते हैं। इनका प्रयास यह रहता है कि जिसे सामान उपलब्ध कराएं उसे तक पता न चले।

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नगर निगम के अधीक्षण अभियंता प्रेमशंकर शर्मा ने कहा कि हमारे पास बजट की कोई कमी नहीं है। स्वास्थ्य अधिकारियों ने जो कर्मचारी रैन-बसेरों मेें नियुक्त कर रहे हैं। वह रियल फीडबैक नहीं देते। अब रैन-बसेरों का आकस्मिक निरीक्षण कराया जाएगा। जो अव्यवस्थाएं हैं, उन्हें सुधारा जाएगा। पेयजल, अलाव लकड़ी, रजाई-गद्दों की पर्याप्त व्यवस्था कराई जाएगी।