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भगवान शिव के इन खास मंदिरों की एक ही घटना से हुई उत्पत्ति, जानिये कौन से ये शिवालय

केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मद्महेश्वर,जटा कल्पेश्वर और पशुपतिनाथ में आपसी संबंध...

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Do you know story of 6 shiv temples are same

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भगवान शिव के यूं तो हजारों लाखों मंदिर हैं, वहीं 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंगों की उत्पत्ति की भी अपनी-अपनी कथाएं है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान शंकर के दो प्रमुख ज्योतिर्लिंगों के साथ ही 4 ऐसे शिवालय भी हैं, जिनकी उत्पत्ति की कथा आपस में जुड़ी हुई है और इनकी उत्पत्ति को एक ही घटना से जोड़ा जाता है।

एक कथा के अनुसार द्वापर युग में पाण्डव जब गोत्र हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे।भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी भी गए, लेकिन वे उन्हें वहां नहीं मिले। ऐसे में पांडव उन्हें खोजते खोजते हिमालय तक आ पहुंचे। भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देता चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतर्ध्यान होकर केदार में जा बसे।

लेकिन पांडव भी लगन के पक्के थे। वे भगवान शंकर का पीछा करते-करते केदार भी पहुंच ही गए। तब भगवान शंकर ने बैल का रूप धारण कर लिया और वे दूसरे पशुओं में जाकर मिल गए।

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पांडवों को संदेह हो गया था। अतः भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर पैर फैला दिया। अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए। लेकिन शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। बैल रूपी भगवान शिव भूमि में अंतर्ध्यान होने लगे और भगवान शंकर रूपी बैल ने अपना सिर पहाड़ में धंसा दिया जो कि नेपाल में प्रकट हुआ। उसे ही हम पशुपति नाथ के रूप में जानते हैं।

लेकिन पहाड़ में धंसने के दौरान भीम उन पर झपट पड़े और पीठ को पकड़ लिया, तब तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति और दृढ़ संकल्प देखकर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। तभी से बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में भगवान केदारनाथ की पूजा होती है।

वहीं शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मद्महेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है। यहां शिवजी के भव्य मंदिर हैं।

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केदारनाथ मंदिर से जुड़ी खास बातें...

1. इस मंदिर के कपाट सर्दियों में बंद रहते हैं क्योंकि भारी बर्फबारी के कारण मंदिर बर्फ से ढक जाता है। केदारनाथ के दर्शनों के लिए बैशाखी बाद गर्मियों में इस मंदिर को खोला जाता है।

2. दीपावली के बाद पड़वा के दिन जब मंदिर के द्वार बंद होते है, तो उस मंदिर में एक दीपक जला देते हैं। 6 माह बाद जब मई में पुजारी वापस केदारनाथ लौटते हैं तो वह दीपक उनको जलता हुआ मिलता है।

3. आश्चर्य की बात तो यह है कि मंदिर को जब खोला जाता है तो उसमें वैसी ही साफ सफाई रहती है, जब उसे बंद करने के समय की गई रहती है।

4. केदारनाथ के कपाट जब बंद होते हैं तो पुजारी भगवान शिव के विग्रह एवं दंडी को 6 माह तक पहाड़ से नीचे ऊखीमठ में ले जाते हैं और वहीं उनकी पूजा करते हैं। 6 माह बाद फिर उन्हें वापस लाते हैं।

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5. केदारनाथ मंदिर सुबह 4 बजे से ही खुल जाता है लेकिन भोलेनाथ के दर्शन सुबह 6 बजे से ही होता है। दोपहर में 3 से 5 बजे तक कपाट बंद करते हैं, उस दौरान विशेष पूजा होती है। शाम को 7.30 बजे से 8.30 बजे तक आरती होती है, इससे पहले भगवान पंचमुखी केदारनाथ का विशेष श्रृंगार होता है।

केदारनाथ की एक अन्य मुख्य कथा...
पांडवों से जुड़ी इस कथा के अलावा एक अन्य कथा के अनुसार भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में केदारनाथ सबसे ऊंचाई पर स्थित है, यह उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में है। भगवान शिव के यहां पर विराजमान होने की भी एक रोचक कथा है, जो भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण से जुड़ी है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, हिमालय के केदार श्रृंग पर नर-नारायण तपस्या कर रहे थे, उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव ने उनको दर्शन दिए। उन दोनों ने भगवान शिव से केदार श्रृंग पर बसने का निवेदन किया, जिस पर भगवान शिव वहीं पर ज्योतिर्लिंग स्वरूप में विराजमान हो गए।

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