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कांग्रेस ने धर्म के आधार पर किया देश का बंटवारा, इसलिए लाना पड़ा नागरिकता संशोधन बिलः अमित शाह

कांग्रेस ने किया धर्म के आधार पर देश का विभाजन शाह ने विपक्षी सांसदों से पूछा, किसने किया देश का विभाजन कांग्रेस की नीतियों की वजह से इस बिल को लाने की जरूरत पड़ी

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नई दिल्‍ली। सोमवार को लोकसभा में विपक्ष के हमले और हंगामे के बीच गृह मंत्री अमित शाह पुराने तेवर में दिखे। लोकसभा में नागरिकता संशोधन बिल पर चर्चा के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कांग्रेस पर पलटवार किया। उन्‍होंने कहा कि अगर कांग्रेस ने देश का विभाजन धर्म के आधार पर नहीं किया होता, तो इस बिल को लाने की नौबत आज नहीं पड़ती। उन्‍होंने कांग्रेस के सांसदों से पूछा, किसने किया धर्म के आधार पर विभाजन?

अमित शाह ने कहा कि इस देश का विभाजन धर्म के आधार पर कांग्रेस पार्टी ने किया। हमने नहीं किया। इनको यह इतिहास सुनना पड़ेगा।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि अगर कांग्रेस ने देश का विभाजन धर्म के आधार पर नहीं किया होता, तो इस बिल को लाने की नौबत नहीं पड़ती।

इसके अलावा उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि नागरिकता बिल किसी भी तरह से संविधान का उल्लंघन नहीं करता है और न ही ये बिल अल्पसंख्यकों के खिलाफ है। अमित शाह ने कहा कि ये बिल .001% भी अल्पसंख्यकों के खिलाफ नहीं है।

82 के मुकाबले 293 मत से प्रस्‍ताव पास
लोकसभा में विपक्षी सदस्यों के भारी विरोध के बीच गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को नागरिकता संशोधन विधेयक पेश किया। लोकसभा में विधेयक को पेश किये जाने के लिए विपक्ष की मांग पर मतदान करवाया गया और सदन ने 82 के मुकाबले 293 मतों से इस विधेयक को पेश करने की स्वीकृति दे दी। मतदान में कुल 375 सांसदों ने हिस्‍सा लिया।

मूल भावना के खिलाफ
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस सहित 11 विपक्षी दलों के सदस्यों ने विधेयक को संविधान के मूल भावना एवं अनुच्छेद 14 का उल्लंघन बताते हुए इसे वापस लेने की मांग की।

विपक्ष की चिंताओं को किया खारिज
गृह मंत्री अमित शाह ने कांग्रेस, आईयूएमएल, एआईएमआईएम, तृणमूल कांग्रेस समेत विपक्षी सदस्यों की चिंताओं को खारिज करते हुए कहा कि विधेयक कहीं भी देश के अल्पसंख्यकों के खिलाफ नहीं है और इसमें संविधान के किसी अनुच्छेद का उल्लंघन नहीं किया गया।

शाह ने सदन में यह भी कहा कि अगर कांग्रेस पार्टी देश की आजादी के समय धर्म के आधार पर देश का विभाजन नहीं करती तो इस विधेयक की जरूरत नहीं पड़ती। नागरिकता अधिनियम, 1955 का एक और संशोधन करने वाले विधेयक को संसद की मंजूरी मिलने के बाद पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से शरणार्थी के तौर पर आए उन गैर-मुसलमानों को भारत की नागरिकता मिल जाएगी जिन्हें धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा हो।