
सियासी जानकारों का मानना है कि चिराग पासवान पोस्ट चुनाव की रणनीति पर आगे बढ़ रहे हैं।
नई दिल्ली। एलजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान बिहार विधानसभा चुनाव ( Bihar Assembly Election ) एनडीए के साथ मिलकर लड़ेंगे या नहीं, इस बात की घोषणा उन्होंने अभी स्पष्ट रूप से नहीं की है। लेकिन उनके रुख से साफ है कि 42 सीटें लोक जनशक्ति पार्टी को न मिलने की स्थिति में, वो अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर सकते हैं। इस बात का संकेत वो हाल में शाह से मुलाकात के बाद दे भी चुके हैं।
चिराग ने मुलाकात के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान बीजेपी-जेडीयू-एलजेपी के बीच बनी सहमति का जिक्र किया था। साथ ही इस बात का भी अहसास कराया था कि चिराग कई आंधियों पर भारी पड़ सकता है।
इस हिसाब से तो जायज है चिराग की मांग
दरअसल, 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान इस बात पर सहमति बनी थी कि विधानसभा चुनाव के दौरान लोकसभा के अनुपात में ही सभी के बीच सीटों का बंटवारा होगा। एलजेपी प्रमुख चिराग पासवान इस बार विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी के लिए 42 सीटों की मांग उसी आधार पर कर रहे हैं। इस बात को शाह और नीतीश कुमार भलीभांति जानते हैं। यानि चिराग की मांग पूरी तरह से गलत नहीं है।
लेकिन बदले सियासी समीकरण में बीजेपी-जेडीयू उन्हें इमनी सीटें देने को तैयार नहीं है। खासकर सीएम नीतीश कुमार तो इस पक्ष में कतई नहीं हैं। ऐसे में हो सकता है कि चिराग अपने स्टैंड पर कायम रहें और 143 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा एक से दो दिन में कर दें।
एलजेपी के रुख पर जेडीयू के सवाल
यहां पर भी एक सियासी पेंच फंसा है। जेडीयू के नेताओं का कहना है कि चिराग केवल 143 सीटों पर ही चुनाव क्यों लड़ रहें हैं। इस बात को छोड़ भी दें तो जेडीयू के खिलाफ सभी सीटों पर पार्टी का प्रत्याशी उतारने का मतलब क्या है? क्या उनकी यह रणनीति चुनाव बाद की स्थिति को अपने पक्ष में करने व नीतीश का विरोध खास रणनीति के तहत करने की नीति तो नहीं है। अगर नहीं तो उन्होंने ऐसा क्यों कहा कि हम जेडीयू के खिलाफ हर सीट पर प्रत्याशी उतारेंगे। यह तो गठबंधन धर्म के खिलाफ है।
इस बीच शाह की ओर से 27 सीटों चुनाव लड़ने के प्रस्ताव पर पार्टी के प्रमुख चिराग पासवान द्वारा शनिवार को पार्टी के संसदीय बोर्ड की बैठक बुलाई गई थी। ऐन मौके पर रामविलास पासवान की तबीयत खराब होने की वजह से यह मसला आगे के लिए टल गया है। इसलिए एलजेपी के एनडीए में रहने को लेकर सस्पेंस बरकरार है।
42 सीटों की जिद पर क्यों अड़े हैं चिराग
दरअसल, चिराग पासवान ने चुनाव पूर्व बिहार में चार लाख लोगों के बीच एक ओपिनियन पोल कराया था। उक्त पोल में सीएम नीतीश के पक्ष में अच्छे माहौल सामने नहीं आए। माना जा रहा है कि ऐसे में बिहार चुनाव का परिणाम इस बार भी उलटफेर वाला हो सकता है। संभवत: इस बात को ध्यान में रखते हुए चिराग पोस्ट चुनाव की रणनीति पर करते दिखाई दे रहे हैं। यानि अब वो नहीं चाहते हैं कि चौथी बार नीतीश कुमार बिहार के सीएम बनें। इस बात को नीतीश कुमार भी भांप चुके हैं। इसलिए वो चिराग को कोई मौका नहीं देना चाहते।
एनडीए में नीतीश के आने से चिराग का कद हुआ छोटा
बता दें कि 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में एलजेपी 42 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, लेकिन जीत का स्वाद मात्र दो सीट पर ही चखने को मिला था। पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ एनडीए में एलजेपी के अलावा जीतनराम मांझी की हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी भी शामिल थी। 2015 चुनाव के दौरान एनडीए में सीट बंटवारे का मामला हो या पार्टी के टिकट बंटवारे का फैसला, हर फैसले में चिराग पासवान की मौजूदगी रही थी।
इसके उलट 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश के एनडीए में आने से उनकी स्थिति बदल गई। नीतीश के एनडीए में वापसी के बाद से ही चिराग पासवान का कद एनडीए में घटा है। ये भी एक वजह है कि वो सीएम नीतीश कुमार के खिलाफ हो गए हैं।
इसके अलावे एलजेपी कोविद-19 महामारी, प्रवासी श्रमिकों और बाढ़ के मुद्दों से निपटने की कमजोर योजना को लेकर भी सीएम नीतीश से नाराज हैं। कई मौकों पर उन्होंने नीतीश कुमार को खत भी लिखा, लेकिन सीएम ने एक बार भी जवाब नहीं दिया।
Updated on:
04 Oct 2020 03:17 pm
Published on:
04 Oct 2020 03:10 pm
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