पिछली बार की तरह इस बार भी आरजेडी ने बेहतर प्रदर्शन किया है। 2015 बिहार विधानसभा चुनाव से तुलना करें तो इस बार भी आरजेडी का वोट शेयर पिछली बार से अधिक है। 23.1 प्रतिशत वोट शेयर के साथ आरजेडी सबसे आगे है। वहीं भाजपा का वोट शेयर पिछली बार के मुकाबले कम है। 19.4 वोट शेयर के साथ वह दूसरे पायदान पर है। इन आंकड़ों से पता चलता है कि आरजेडी को इस बार पिछली बार के मुकाबले अधिक वोट तो मिले पर यह सीट में तब्दील नहीं हो सके। पिछली बार पार्टी 81 सीटें लाई थी।
भाजपा को हुआ बड़ा फायदा 2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा 53 सीटों पर सिमट गई थी। इस बार भाजपा ने बेहतर प्रदर्शन करते हुए 74 सीटें हासिल की। एनडीए में जेडीयू को 43, हम 4, वीआईपी 4 सीटें मिली हैं। एनडीए गठबंधन में भाजपा ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया है। मगर वोट शेयर के मामले भाजपा पिछली बार से पिछड़ गई है। उस समय वोट शेयर 24.4% के साथ पार्टी पहले स्थान पर थी। 2015 में वह जदयू के खिलाफ खड़ी थी।
कांग्रेस का प्रदर्शन सबसे खराब 70 सीटों पर खड़ी कांग्रेस ने सबसे खराब प्रदर्शन किया है। उसका वोट शेयर तो बढ़ा पर वह सिर्फ 19 सीटें ही हासिल कर सकी। ऐसा कहा जा रहा है कि कांग्रेस की वजह से महागठबंधन को काफी नुकसान उठाना पड़ा है। तेजस्वी यादव ने अपने स्तर पर इस चुनाव को जीतने के लिए भरपूर प्रयास किया। मगर कांग्रेस की विफलता के कारण वे कई सीटों पर बहुमत पाने में नाकाम रहे हैं।
महागठबंधन में सिर्फ आरजेडी छाई रही महागठबंधन में देखा जाए तो आरजेडी के अलावा किसी भी पार्टी ने बेहतर प्रदर्शन नहीं किया। 2015 में जदयू के साथ मिलकर लड़े चुनाव में आरजेडी ने 81 सीटे हासिल की थीं। इस बार भी पार्टी 75 सीटें पाकर सबसे पहले पायदान पर रही। मगर उसका साथ किसी सहयोगी पार्टी ने नहीं दिया। महांगठबंधन में कांग्रेस 19, सीपीआई 2, सीपीआईएम 2, सीपीआईएमएल 12 सीटों पर ही सिमट गई।
जदयू को हुआ नुकसान 2015 के मुकाबले इस चुनाव में जदयू को 27 सीटों का नुकसान हुआ है। पिछली बार उसे 70 सीटें हासिल हुईं थी। वह उस समय दूसरे पायदान पर रही थी। इस बार उसे 43 सीटों से संतुष्ट रहना पड़ा है। हालांकि वोट शेयर के मामले में उसे ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है। इस बार उसका वोट शेयर 15.8 प्रतिशत तक रहा। वहीं पिछली बार ये 16.8 प्रतिशत था। भाजपा के प्रदर्शन को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं कि एनडीए में वह अब बड़े भाई की भूमिका निभाएगा। ऐसे में नीतीश के लिए सरकार चलाने ही राह कठिन हो सकती है।