
वंस अपॉन ए टाइम इन किंग मेकर: कल तक जिसके हाथ में थी सत्ता की कुंजी, आज खुद तलाश रहे अपनी जमीन
नई दिल्ली। पुरानी कहावत है सत्ता की धमक और उसकी चमक कब किस करवट बैठ जाए कोई नहीं जानता? राजनीति की बिसात जब पक्ष में हो तो किंग मेकर भी 'किंग'बन जाता है और जब उल्टी हवा चलती है तो खुद के लिए भी जमीन तलाशना भारी पड़ जाता है। कुछ ऐसी ही कहानी है हरियाणा के सबसे बड़े राजनीतिक 'चौटाला' परिवार की, जिसके हाथ में कभी देश के सत्ता की कुंजी हुआ करती थी। लेकिन, आज यह परिवार अपने ही राज्य में खुद के लिए राजनीतिक जमीन तलाश रही है। एक समय था जब इंडियन नेशनल लोक दल (Indian National Lok Dal) के मुखिया देवी लाल चौटाला (Devi Lal Chautala) की भारतीय राजनीति में तूती बोलती थी। दिल्ली में किसकी सरकार बनेगी और राजा कौन होगा, इस निर्माण में देवी लाला चौटाला अहम भूमिका निभाते थे। तभी तो 1989 से 91 तक वह भारत के उप प्रधानमंत्री रहे और हरियाणा के दो बार मुख्यमंत्री भी बने। देवी लाल ने अपने राजनीतिक विरासत की चाबी चार बेटों में से अपने सबसे बड़े बेटे ओम प्रकाश चौटाला को सौंपी। लेकिन, 31 साल के राजनीतिक इतिहास में चौटाला परिवार 'फूट से टूट' के बाद अब इस कगार पर पहुंच चुकी है कि उसे खुद के लिए राजनीतिक जमीन तलाशनी मुश्किल पड़ रही है।
जब देवी लाल बने डिप्टी पीएम और ओम प्रकाश चौटाला बने हरियाणा के मुख्यमंत्री
हरियाणा का दो बार मुख्यमंत्री (1977–79 और 1987–89) बनने के बाद 1989 में देवी लाल भारत के उप प्रधानमंत्री बने। देवी लाल 1991 तक इस पद पर रहे। लेकिन, जब वह उप प्रधानमंत्री बने तो उनके सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी कि हरियाणा का मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए। देवीलाल के सामने अपने बेटे रणजीत सिंह, प्रताप सिंह, जगदीश सिंह और ओमप्रकाश चौटाला में से किसी एक को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी चुनने की चुनौती थी। तब उन्होंने काफी सोच-विचार कर ओमप्रकाश चौटाला के नाम पर उंगली रख उन्हें सत्ता के शीर्ष पर बैठा दिया था। यह वह दौर था जब चौधरी देवीलाल 1987 में बड़ा न्याय युद्ध जीतने के बाद बेहद ताकतवर बन गए थे। इनेलो ने प्रदेश की 90 में से 85 सीटें जीती थी और यह आंकड़ा ही अंतत: परिवार में बेटों के बीच वर्चस्व की जंग का बड़ा कारण बन गया था। हालांकि, उस वक्त भी चौटाला परिवार की तूती बोल रही थी।
चार बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे ओम प्रकाश चौटाला
ओम प्रकाश चौटाला पहली बार दो दिसंबर, 1989 को हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। उनका कार्यकाल दो मई, 1990 तक रहा। दूसरी बार 12 जुलाई, 1990 से 17 जुलाई, 1990 तक। तीसरी बार 22 मार्च 1991 से 6 अप्रैल 1991 तक रहा। वहीं, चौंथी बार 24 जुलाई, 1999 से 4 मार्च 2004 तक उनका कार्यकाल रहा। इस दौरान चौटाला की पार्टी इनेलो केन्द्र में यूपीए और एनडीए की सरकार में भी शामिल रही। हरियाणा में इनेलो की तूती बोलने लगी और केन्द्र में अहम भूमिका निभाने लगी। लेकिन, कहते है न कि चमकती हुई चीज में अगर एक भी दाग लग जाए तो आंखों को वह चुभने लगती है। ओम प्रकाश चौटाला के कार्यकाल में शिक्षक भर्ती घोटाला हुआ। ओम प्रकाश चौटाला और उनके बड़े बेटे अजय चौटाला को दिल्ली की एक अदालत ने शिक्षक भर्ती घोटाले में 10 साल की सजा सुनाई। 12 साल पुराने शिक्षक भर्ती घोटाले के तार से चौटाला परिवार ऐसा घिरा कि सारे सुर-ताल बिगड़ गए।
अर्श से फर्श पर चौटाला परिवार
शिक्षक भर्ती घोटाले में दोषी पाए जाने पर ओम प्रकाश चौटाला और उनके बड़े बेटे अजय चौटाला को जेल जाना पड़ा। पार्टी चलाने का सारा दारोमदार छोटे बेटे अभय चौटाला पर आ गया। अभय चौटाला ने बड़ी ही जिम्मेदारी के साथ पार्टी को खड़ा रखा। इस बीच लोकसभा चुनाव में देश के सबसे युवा सांसद दुष्यंत चौटाला (अजय चौटाला के बेटे) राजनीतिक रूप से सशक्त हुए। परिणाम यह हुआ कि परिवार में विवाद शुरू हो गया। परिवार में राजनीतिक कलह इस हद तक पहुंच गई कि फूट के बाद चौटाला परिवार आखिरकार टूट ही गया। ओम प्रकाश चौटाला के बड़े बेटे अजय चौटाला को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। अजय चौटाला और दुष्यंत चौटाला ने जननायक जनता पार्टी की स्थापना कर डाली। वहीं, अब ओम प्रकाश चौटाला और छोटे बेटे अभय चौटाला इनेलो के हिस्सा रह गए हैं। इस लोकसभा चुनाव में जेजेपी ने हरियाणा में आप के साथ गठबंधन किया, जबकि अर्श से फर्श पर पहुंच चुकी सत्ता से काफी समय से दूर इनेलो आज खुद अपने ही राज्य में राजनीतिक जमीन तलाश रही है।
Updated on:
21 Apr 2019 08:32 am
Published on:
21 Apr 2019 07:34 am
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