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कर्नाटक चुनाव में कामवाली बाइयों की ‘चांदी’, काम छोड़ ‘मैदान’ में संभाला मोर्चा

चुनाव प्रचार के चलते कामवाली घरों में काम करने नहीं पहुंच रही हैं और यदि पहुंच भी रहीं है तो बहुत अधिक विलंब के साथ पहुंच रही हैं।

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बेंगलुरु। कनार्टक विधानसभा चुनाव के प्रचार का पड़ाव अंतिम चरण में है। यही कारण है कि चुनाव मैदान में डटी सियासी पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। लेकिन राज्य में होने जा रहे चुनावों ने यहां के लोगों के लिए बड़ी समस्या खड़ी कर दी है। यह समस्या कामवाली बाई को लेकर है। दरअसल, चुनाव प्रचार के चलते कामवालियां घरों में काम करने नहीं पहुंच रही हैं और अगर पहुंच भी रहीं है तो बहुत अधिक विलंब के साथ। असल में इसके पीछे वजह यह है कि ये कामवालियां आजकल चुनाव प्रचार के काम में जुटी हैं और घर-घर जाकर चुनाव प्रचार कर रही हैं।

रोजाना मिल रहे 500 रुपए

दरअसल, चुनाव के दौरान राजनीतिक दल इन बाइयों को 500 से 600 रुपए प्रतिदिन दे रहे हैं। इन पैसों के बदले इन महिलाओं को घर-घर जाकर उम्मीदवारों का प्रचार करना होता है। ऐसे में अगर महिलाए 40 से 50 का समूह बनाकर सुबह ही घर से निकल जाती हैं और शाम को वापस लौटती हैं। एक एजेंट के अनुसार पैसों के अलावा इन महिलाओं को कपड़े और खाने को भी दिया जाता है। एक कामवाली बाई के अनुसार उन्हे प्रचार करने का रोजना नकद पैसा दिया जाता है, ऐसे वो काम के बजाए चुनाव प्रचार को अधिक पसंद करती हैं। बाई का कहना है कि घरों में पूरा दिन काम करके कुछ रुपए मिलते हैं, जबकि प्रचार में सुबह शाम का समय देकर ही अच्छे पैसे हाथ आ जाते हैं।

चुनाव प्रचार में व्यस्त कामवालियां

एक अन्य कामवाली बाई शकुंतला के अनुसार घरों में काम करने के बदले उसको रोजाना 200 से 250 रुपए मिलते हैं, जबकि इससे कम समय प्रचार में देने पर दोगुने पैसे जेब में आ जाते हैं। इसलिए अभी उसने घरों में जाकर काम करना बंद कर दिया है। वहीं, कर्नाटक डोमेस्टिक वर्कर्स यूनियन की फाउंडर मेंबर सिस्टर सिलिया का कहना है कि यदि माहिलाएं घरों में काम करने के बजाए चुनाव प्रचार का कमाई का विकल्प चुनती हैं तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। उन्होंने कहा है कि अब इसका अर्थ इस बात से नहीं लगाना चाहिए कि जिस पार्टी के पक्ष में वो प्रचार कर रही हैं, उसको को उनका वोट भी जाएगा।