
B.S yedurappa
नई दिल्ली। कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के नतीजों में भारतीय जनता पार्टी की बढ़त लगातार जारी है। अभी तक के रूझानों में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर रही है और पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाती हुई दिख रही है। दक्षिण भारत में कमल खिलने के बाद बीएस येदियुरप्पा अब कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री बनेंगे। हालांकि उन्होंने तो अपने मुख्यमंत्री बनने की भविष्यवाणी वोटिंग के दिन ही कर दी थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि वो आने वाली 19तारीख को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे।
येदियुरप्पा के बिना कर्नाटक में भाजपा का अस्तित्व था अधूरा
वैसे भाजपा की इस बढ़त के बीच में ये सवाल तो जरूर खड़ा होता है कि आखिर बीजेपी ने बीएस येदियुरप्पा को ही कर्नाटक चुनाव में मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार क्यों घोषित किया ? तो इसका जवाब यही होगा कि कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा के बिना भाजपा का अस्तित्व ही अधूरा था। अगर भाजपा बीएस येदियुरप्पा का नाम घोषित नहीं करती तो कर्नाटक की सत्ता मिलना मुश्किल होता। येदियुरप्पा की जो पकड़ कर्नाटक में अपने समुदाय के लोगों के साथ-साथ अन्य जातियों और समुदायों के लोगों पर भी थी।
सियासी समीकरणों को साधने में येदियुरप्पा को है महारत हासिल
कर्नाटक में सियासी समीकरणों को साधने में बीएस येदियुरप्पा को महारत हासिल है। येदियुरप्पा ने राजनीतिक समीकरण हों या फिर जातीय जोड़-तोड़, सभी में खुद को स्थापित करने और विकसित करने में किसी तरह की कमी नहीं छोड़ी है। वो पहले भी कर्नाटक के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। बीजेपी की राज्य इकाई के सबसे कद्दावर नेताओं में से एक बीएस येदियुरप्पा अपने मजबूत किले शिकारीपुरा से चुनाव मैदान में ताल ठोक रहे हैं। अब तक जो नतीजे सामने आए हैं, उनमें बीजेपी बहुमत से आगे चल रही है। ऐसे में बीएस येदियुरप्पा का सीएम बनना तय है।
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लिंगायत वोट बैंक पर है अच्छी पकड़
आपको बता दें कि बीएस येदियुरप्पा का कर्नाटक की सियासत में खासा असर है। राज्य के लिंगायत वोट बैंक पर येदियुरप्पा की अच्छी खासी पकड़ थी और जिसको शायद भाजपा हाईकमान अच्छे से जानता था, जिस वजह से उन्हें ही राज्य में पार्टी का सीएम कैंडिडेट घोषित किया गया।
खनन घोटाले में फंसने के बाद चली गई थी येदियुरप्पा की सत्ता
येदियुरप्पा छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय रहे हैं। अपने कॉलेज के दिनों से ही वो संघ के जुड़े थे। येदियुरप्पा बीजेपी के एक ऐसे नेता हैं, जिनके बूते पर पार्टी ने पहली बार दक्षिण भारत में ना सिर्फ जीत का स्वाद चखा बल्कि सत्ता पर शासन भी किया। हालांकि यह बात और है कि येदियुरप्पा का शासनकाल अपने काम से ज्यादा विवादों के कारण सुर्खियों में रहा। तीन साल बाद खनन घोटाले में फंसने के बाद येदियुरप्पा की सत्ता चली गई थी।
मुख्यमंत्री की कुर्सी चले जाने के बाद उन्होंने पार्टी से किनारा कर लिया था। हालांकि कुछ दिनों के बाद ही बीजेपी को ऐसा लगा कि येदियुरप्पा के बिना पार्टी का दक्षिण भारत में कोई अस्तित्व नहीं रह जाएगा। इसके बाद मोदी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनने के बाद जनवरी 2013 में पार्टी में दोबारा उनकी वापसी हुई। इतना ही नहीं 2018 में बीजेपी ने दोबारा येदियुरप्पा पर ही दांव खेला और उन्हें सीएम पद का उम्मीदवार बनाया।
Published on:
15 May 2018 12:27 pm
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