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सिद्धारमैया को खुली छूट देने की वजह से कांग्रेस का ढह गया सबसे बड़ा किला

विशेषज्ञों की राय ये है कि कांग्रेस और राहुल गांधी का कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया पर आंख बंद कर के भरोसा करना महंगा पड़ा है।

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Kapil Tiwari

May 15, 2018

congress lost Karnataka

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नई दिल्ली। कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के अभी तक के रूझानों से लगभग-लगभग तस्वीर साफ हो चुकी है। राज्य में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर रही है। हालांकि नंबरों का हेरफेर अभी भी जारी है, लेकिन भाजपा रूझानों में पूर्ण बहुमत हासिल कर चुकी है। कर्नाटक की जीत के साथ ही बीजेपी का दक्षिण भारत में खाता खुल गया है और भाजपा के सीएम उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा के सिर पर सत्ता का ताज सजना तय है।

ले डूबे सिद्धारमैया कांग्रेस और राहुल गांधी को

कर्नाटक चुनावों के अभी तक के नतीजों को लेकर तमाम मीडिया संस्थान बीजेपी की जीत को लेकर अध्ययन कर रहे हैं कि किन-किन फैक्टर्स की वजह से भाजपा ने कांग्रेस का सबसे बड़ा किला ढहा दिया। इस बीच कांग्रेस के लिए भी ये समय आत्मचिंतन का है, क्योंकि देश अब कांग्रेस मुक्त होने की तरफ बढ़ रहा है। देश के सिर्फ तीन राज्यों में ही कांग्रेस की सरकार बची है। बीजेपी की जीत के साथ-साथ कांग्रेस की हार पर भी विशेषज्ञों की राय ये है कि कांग्रेस और राहुल गांधी का कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया पर आंख बंद कर के भरोसा करना महंगा पड़ा है।

अपनी दोनों सीटों में से एक पर हारे सिद्धारमैया

सिद्धारमैया को लेकर कर्नाटक के लोग इस तरह नेगेटिव थे कि वो खुद अपनी दोनों सीटों को ही नहीं बचा पाए। सिद्धारमैया चामुंडेश्वरी सीट पर हार गए हैं, जबकि बदामी सीट से वो पीछे चल रहे हैं। बताया जा रहा है कि चामुंडेश्वरी सीट पर सिद्धारमैया की हार बड़े मार्जिन से हुई है। बदामी में सीएम को बीजेपी के आदिवासी नेता श्रीरामुलू से उन्हें कड़ी टक्कर मिल रही है। वहीं चामुंडेश्वरी सीट पर सिद्धारमैया का मुकाबला जेडीएस के जीटी देवगौड़ा और बीजेपी के एसआर गोपाल राव से था।

सिद्धारमैया को मिली खुली छूट ने कांग्रेस की लुटिया डुबाई

कर्नाटक की हार को लेकर कांग्रेस को मंथन करना होगा। जब पार्टी आत्मचिंतन करेगी तो हार की कुछ बड़ी वजह जरूर सामने आएंगी। मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक, कर्नाटक में कांग्रेस की हार के पीछे सबसे बड़ी वजह ये मानी जा रही है कि चुनावी रणनीति बनाने में सिद्धारमैया को पार्टी हाईकमान ने खुली छूट दे दी थी। इसके अलावा सिद्धारमैया के कई विवादित फैसलों ने कांग्रेस के दोबारा सत्ता मेें लौटने वाले सपने को चकनाचूर कर दिया। कांग्रेस पार्टी ने इस सभी फैसलों पर सिद्धारमैया का साथ द‍िया। लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देने का मुद्दा हो या कन्नड़ अस्मिता की राजनीति, सिद्धारमैया ने हर दांव अपनी रणनीति के तहत चला। उन्होंने इस चुनाव को स्थानीय बनाम बाहरी बनाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी और वो लगातार पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पर हमले करते रहे बजाय कि बीजेपी के सीएम कैंडिडेट येदियुरप्पा से उलझने के।

बीजेपी के मुकाबले असरदार नहीं था कांग्रेस का चुनाव प्रचार

इसके अलावा बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस कर्नाटक में असरदार चुनाव प्रचार करने में पूरी तरह असफल दिखी। भले ही कर्नाटक में भले ही सोनिया गांधी , कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे ने तमाम रैलियां कीं, लेकिन कर्नाटक की जनता के सामने केवल सिद्धारमैया का चेहरा था। यही नहीं, उन मुद्दों पर चुनाव लड़ा गया जो पिछले 5 सालों में सिद्धारमैया ने कर्नाटक के लिए किया। अगर चुनाव में कांग्रेस की रणनीति देखी जाए तो उसने काफी हद तक सिद्धारमैया को फ्री हैंड दिया।