
Atal Jayanti: अटल बिहारी वाजपेयी जिंदा होते तो 25 दिसंबर, 2025 को 101 साल के होते। (फोटो: पत्रिका.कॉम डिजाइन टीम)
Atal Bihari Vajpayee Birthday: भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी। एक ओजस्वी, प्रखर वक्ता। कवि और साहित्यकार! जिनके भाषण देने की कला के लाखों मुरीद थे। लेकिन, क्या आप यकीन कर सकते हैं कि प्रधानमंत्री रहते हुए एक मौका ऐसा आया जब वह अपने भाषण को लेकर बड़े नर्वस हो गए थे। कई लोगों से भाषण का ड्राफ्ट लिखवाया और खारिज किया। जब भाषण देने का मौका आया तो गाड़ी से उतरते वक्त एक जूता पहनना भूल गए! यह हाल तब था जब भाषण देने में वह शुरू से ही माहिर थे। इस महारत का एक नमूना पढ़िए।
किंगशुक नाग ने 'जननायक अटलजी' के नाम से लिखी किताब में एक वाकया बताया है। बात 1944 की है। अटलजी 20 साल के युवा थे। इलाहाबाद में एक वाद-विवाद प्रतियोगिता थी। युवा अटल को उसमें भाग लेना था, लेकिन अपनी बारी आने तक वह पहुंच नहीं सके। जब वह पहुंचे तो प्रतियोगिता खत्म हो चुकी थी। निर्णायक विजेता का नाम तय करने में जुट गए थे। लेकिन अटल बिहारी ने उनसे एक मौका देने की मिन्नतें कीं। बहुत अनुरोध करने पर वे मान गए और अटल को बोलने का मौका मिला। अटल ने बोलना शुरू किया और कुछ ही पल में माहौल बदल गया। सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो गए। अंत में उन्हें ही विजेता भी घोषित किया गया।
आगे भी अटलजी अपने भाषणों के लिए हर जगह लोकप्रिय हुए। पार्टी में, संसद में, देश में, विदेश में…। सभी जगह। लेकिन, 1998 में प्रधानमंत्री रहते हुए जब भाषण देने का एक मौका आया तो वह बड़े नर्वस थे। इसका जिक्र उनके निजी सचिव रहे शक्ति सिन्हा (अब दिवंगत) ने अपनी किताब ‘वाजपेयी: द ईयर्स दैट चेंज्ड इंडिया’ में किया है।
15 अगस्त, 1998 को अटल बिहारी वाजपेयी को बतौर प्रधानमंत्री लाल किले से भाषण देना था। कुछ दिनों से उनकी तबीयत ठीक नहीं चल रही थी। 74 वर्ष उम्र थी। वजन भी जरूरत से ज्यादा था। काम का बोझ तो था ही। ऐसे में डॉक्टर्स के लिए भी मुश्किल हो रही थी। अटलजी लाल किले से भाषण देने को लेकर बड़े ही उत्साहित थे। इस भाषण की तैयारी वह बड़ी शिद्दत से कर रहे थे। उन्होंने कई लोगों से भाषण का ड्राफ्ट तैयार करवाया और खारिज किया।
शक्ति सिन्हा और कई करीबी लोग उन्हें समझाने की कोशिश करते रहे कि यह कोई बड़ी बात नहीं है, आपके लिए तो यह बच्चों का खेल है। लेकिन उन पर इसका कोई असर नहीं हो रहा था। वह एक ही जवाब देते- बोलना तो मुझे है। फिर दूसरे को दबाव समझ में कैसे आएगा? ऐसा तब था जब अटलजी हाजिरजवाबी और भाषण में कभी चूकते नहीं थे।
अटलजी लिखा हुआ भाषण पढ़ने पर अटल थे। अरुण शौरी ने भी समझाया कि लिखा हुआ भाषण पढ़ना उनके व्यक्तित्व के मुताबिक सही नहीं होगा। लेकिन, उन पर कोई असर नहीं हुआ।
15 अगस्त के दिन भी वाजपेयी की नर्वसनेस खत्म नहीं हुई थी। प्रधानमंत्री लाल किला जाने से पहले महात्मा गांधी की समाधि पर फूल चढ़ाने की परंपरा निभाने पहुंचे। वहां से लौटते वक्त भी वह नर्वस थे। राज घाट से उनका काफिला लाल किला पहुंचा। वह गाड़ी से उतरे और गार्ड ऑफ ऑनर लेने के लिए बढ़े। तभी उन्होंने अपने निजी सचिव (शक्ति सिन्हा) से धीरे से कहा कि उनका एक जूता गाड़ी में ही रह गया। वह भाग कर गए और जूता लाकर उनके सामने रखा।
बतौर प्रधानमंत्री स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से राष्ट्र के नाम अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार संबोधन देने वाले थे। कुछ ही महीने पहले (मई 1998 में) उन्होंने पोखरण में परमाणु परीक्षण करवाया था। इस परीक्षण के बाद भारत पर अंतरराष्ट्रीय दबाव था। कई देशों ने प्रतिबंध लगा दिए थे। देश की आर्थिक हालत भी बहुत अच्छी नहीं थी। पड़ोसियों से रिश्ते तल्ख हो गए थे। पोखरण टेस्ट को सही ठहराने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति को जो दलीलें भेजी गई थीं, वे लीक हो गई थीं। इस वजह से चीन से भी तल्खी बढ़ गई। इस तल्खी की पीछे का पूरा किस्सा ये है:
पोखरण में परमाणु परीक्षण होते ही दुनिया भर में खलबली मच गई थी। कूटनीतिक पहल के तहत अटल सरकार दुनिया को बता रही थी कि भारत के लिए यह परीक्षण क्यों जरूरी था। इसी कड़ी में सरकार ने अमेरिकी राष्ट्रपति को भी एक गोपनीय पत्र भेजा, लेकिन यह चिट्ठी गुप्त नहीं रह सकी। चिट्ठी अमेरिकी अखबार ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ के हाथ लग गई। चिट्ठी लीक होते ही भारत के लिए दूसरी समस्या खड़ी हो गई। इस चिट्ठी में अटल सरकार ने परमाणु परीक्षण करने की वजह चीन को बताया था। चीन इस पर भड़क गया।
चिट्ठी में पोखरण परमाणु परीक्षण को जायज ठहराते हुए लिखा गया था- हमारी सीमाओं पर परमाणु परीक्षण किए जा चुके हैं। एक ऐसा देश भी यह परीक्षण कर चुका है, जिसने 1962 में भारत के खिलाफ हथियारबंद लड़ाई की। बीते दशक में उससे हमारे संबंध सुधरे हैं, लेकिन सीमा विवाद अनसुलझा रहने के कारण अविश्वास का माहौल बना हुआ है। उस देश ने हमारे दूसरे पड़ोसी मुल्क को परमाणु हथियार संपन्न बनाने में भी मदद की। इस वजह से हमें उस पड़ोसी से भी हमले झेलने पड़े और हम लगातार आतंकवाद के शिकार बनते रहे हैं। यह बात सार्वजनिक होने पर चीन तो भड़का ही, अमेरिका ने भी भारत को ‘विलेन’ बता दिया।
अटल बिहारी वाजपेयी को इन परिस्थितियों में 15 अगस्त पर राष्ट्र के नाम पहला संबोधन देना था। संभवतः उनके नर्वस होने की यही वजह रही हो।
यही वह भाषण था, जिसके लिए अटलजी काफी तनाव में थे। देखिए, 1998 में 15 अगस्त (51वें स्वतंत्रता दिवस) को लाल किले से दिए गए प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भाषण का वीडियो:
वैसे तो अटल बिहारी की हाजिरजवाबी और भाषण शैली के सभी दीवाने थे। कुछ उदाहरण आप भी पढ़िए:
भारत-पाकिस्तान रिश्तों के संदर्भ में एक बार एक पाकिस्तानी पत्रकार ने अटलजी से कहा— हमारे यहां कहते हैं कि एक हाथ से ताली नहीं बजती।
अटल जी ने बिना पलक झपकाए तुरंत मुस्कुराते हुए जवाब दिया— बिल्कुल सही बात है, लेकिन एक हाथ से चुटकी तो बज सकती है।
2004 के बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान एक रैली में अटलजी ने विरोधियों के तंज पर कहा— मैं अटल भी हूं और बिहारी भी हूं।
संसद में एक बहस के दौरान एक विपक्षी नेता ने कहा— वाजपेयी जी, आप तो बहुत अच्छे इंसान हैं, लेकिन आपकी पार्टी (भाजपा) अच्छी नहीं है।
अटल जी तुरंत खड़े हुए और बड़े शांत लहजे में पूछा— अच्छा! तो 'अच्छे' वाजपेयी का आप क्या करने का इरादा रखते हैं? क्या आप मुझे कहीं और ले जाना चाहते हैं? पूरा सदन ठहाकों से गूंज उठा।
एक बार जब पत्रकारों ने भाजपा में गुटबाजी के संदर्भ में अटलजी से पूछा कि उनके दल के भीतर ही कई दल (गुट) हैं तो उन्होंने तुरंत जवाब दिया— मैं किसी दल-दल में नहीं हूं। मैं औरों के दलदल में अपना 'कमल' खिलाता हूं।
तीन बार देश के प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी को देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' देने की घोषणा 24 दिसंबर, 2014 को की गई थी। उनके जन्मदिन से एक दिन पहले। अटलजी का जन्म 1924 में 25 दिसंबर को हुआ था। उन्हें 27 मार्च, 2015 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हाथों 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया था।
Updated on:
25 Dec 2025 11:06 am
Published on:
25 Dec 2025 06:10 am
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