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लोकसभा चुनावः इन पांच बड़े मुद्दों ने मोदी को दोबारा पहुंचाया जीत की दहलीज पर

locationनई दिल्लीPublished: May 21, 2019 08:07:50 am

Submitted by:

Dhirendra

मोदी और शाह की जोड़ी ने विपक्ष को अपने एजेंडे पर चुनाव लड़ने के लिए मजबूर किया
विपक्षी दल के नेता सरकार की नाकामी के मुद्दे पर लोगों को भरोसे में नहीं ले सके
पीएम मोदी ने विपक्षी नेताओं की कमजोरियों का लाभ उठाकर चुनावी रुख को अपने पक्ष में मोड़ा

pm modi

लोकसभा चुनावः इन पांच बड़े मुद्दों ने मोदी को दोबारा पहुंचाया जीत की दहलीज पर

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजे 23 मई को आएंगे। लेकिन तीन दिन पहले यानि 19 मई को लगभग सभी एग्जिट पोल्स ने अपने सर्वे में एनडीए को अपने दम पर सरकार बना लेने की संभावना जताई है। अगर यह सच साबित होता है तो यह माना जाएगा कि भाजपा का नारा जनता ने फिर से अपना लिया है। लेकिन यह जानना भी जरूरी है कि आखिर मोदी ने किन पांच मुद्दों पर जोर देकर खुद को जीत के दहलीज तक पहुुंचाने का काम किया।
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1. राष्ट्रवाद

पुलवामा आतंकी हमले से पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी रफाल, किसान, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और विकास के मुद्दे पर केंद्र सरकार को लगभग घेर चुके थे और चुनावी एजेंडा सेट करते नजर आए। लेकिन पुलवामा हमले के बाद अचानक सियासी रुख बदल गया। मोदी टीम ने बालाकोट में एयर स्ट्राइक कर राष्ट्रवाद पर जोर दिया और राहुल गांधी की गरीबी हटाओ ‘न्याय योजना’ या अब होगा न्याय को कुंद कर दी। इतना ही नहीं 28 मार्च को गदर की भूमि मेरठ से चुनावी अभियान की शुरुआत करतेे हुए पीएम मोदी ने राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रवाद को सियासी जंग के केंद्र में लाकर रख दिया। पुलवामा आतंकी हमले का जवाब पाकिस्तान में घुसकर देने की क्षमता का प्रदर्शन कर मोदी सरकार ने राष्ट्रवाद को लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा बना दिया। आखिरी चरण के मतदान के अंतिम समय तक इस मुद्दे पर पीएम मोदी विपक्ष को घेरते रहे।
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2. मैं भी चौकीदार

राहुल गांधी चौकीदार चोर है के जुमले के दम पर पीएम मोदी को घेरने में लगभग सफल हो गए थे। लेकिन उसी जुमले को भाजपा ने अपना सियासी हथियार बनाते हुए पीएम मोदी, अमित शाह समेत भाजपा के लगभग सभी नेताओं ने अपने ट्विटर अकाउंट पर खुद को मैं भी चौकीदार घोषित बताकर देश की आम जनता से खुद को जोड़ लिया। इसके साथ ही चुनाव को नामदार बनाम कामदार का रंग दे दिया। इसका असर इतना व्यापक हुआ कि कुछ दिनों के अंदर दुनिया भर में मैं भी चौकीदार ट्रेंड करने लगा। करोडों लोग मोदी की तरह चौकीदार बन गए।
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3. आतंकवाद

वैसे तो 2014 में पीएम बनने के कुछ समय बाद से ही नरेंद्र मोदी ने विश्व समुदाय खासकर पाकिस्तान से साफ कर दिया था कि भारत आतंकवाद के मुद्दे जीरो टॉलरेंस की नीति पर अमल करेगा। इस नीति की वजह से ही पाकिस्तान के साथ वार्ता का दौर अभी तक शुरू नहीं हो पाया। 23 अप्रैल को अहमदाबाद के रानिप में वोट डालने के बाद पीएम मोदी ने मीडिया को बताया था कि आतंकवाद का हथियार आईईडी है। लोकतंत्र की ताकत वोटर आईडी है। मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि वोटर आईडी, आईईडी से बहुत ही पावरफुल है। इसलिए देश के मतदाताओं को वोट की ताकत को समझें। अधिकतम वोट करें और आतंकवाद के खिलाफ मोदी का हाथ मजबूत करें। माना जा रहा है कि लोगों ने वोट डालते समय इस बात का ख्याल रखा है।
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4. रफाल सौदा

विगत एक साल से रफाल डील में भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मोदी सरकार पर हावी रहे हैं। लेकिन 14 दिसंबर, 2018 को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उनकी इस योजना को बड़ा झटका लगा। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि रफाल लड़ाकू विमान की खरीद प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की गलती दिखाई नहीं देने की टिप्पणी की थी। इस टिप्पणी को मोदी सरकार ने खुद को अदालत से क्लीन चिट मिलने के रूप में प्रसारित किया। कांग्रेस ने इस पर सवाल उठाए। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इस मुद्दे पर लोगों को आगाह करते रहे कि मोदी को सुप्रीम कोर्ट से रफाल में क्लीन चिट नहीं मिली है। बाद में इसी मुद्दे पर प्रशांत भूषण, अरुण शौरी, यशवंत सिन्हा व अन्य की याचिका को सुनवाई के लिए शीर्ष अदालत ने स्वीकर करते हुए कहा था कि सुप्रीम कोर्ट रफाल मामले की नए सिरे से जांच करेगा। लेकिन राहुल गांधी ने जल्बादी का परिचय देते हुए अदालत के हवाले से मीडिया के समने यह बयान दे दिया कि अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी पीएम मोदी को ‘चौकीदार चोर है’ मान लिया है। राहुल की इस कानूनी भूल को भाजपा नेताओं ने कैश कर लिया और इसे अवमानना का विषय मानते हुए सुप्रीम कोर्ट से कार्रवाई करने की मांग कर दी। इस मुद्दे ने इतना तूल पकड़ा कि राहुल गांधी को चुनाव के दौरान ही हलफनामा दाखिल कर तीन बार माफी मांगनी पड़ी। इसका सीधा लाभ भाजपा ने चुनाव के दौरान उठाया।
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5. सवर्ण आरक्षण

इसी तरह देश के सर्वणों के बीच लगातार अपनी साख खो रही मोदी सरकार ने 2019 के आम चुनाव से ठीक पहले आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण देने का फैसला लेकर उन्हें अपने पक्ष में कर लिया। ऐसा कर मोदी सरकार ने इस बात का भी प्रचार किया कि भाजपा जाति के आधार पर आरक्षण की बात न कर सभी गरीबों के लिए आरक्षण की हिमायती है। मोदी सरकार ने ऐसा कर सवर्णों की ओर से उठने वाली उस आवाज की हवा निकाल दी जिसके आधार पर हिंदू सवर्णों के कई समूह भाजपा सरकार पर आरोप लगा रहे थे कि वह दलितों के प्रति भाजपा सरकार दलितों के प्रति अतिरिक्त उदारता दिखा रही है। यह गुस्साा राम मंदिर मामले में कोई निर्णायक फैसला न हो पाने के कारण और बढ़ रहा था। लेकिन मोदी सरकार ने ऐन मौके पर सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की बात कहकर सभी राजनीतिक पार्टियों के सामने मुश्किल सवाल खड़ा कर दिया है।
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