दरअसल दस साल पहले सिंगूर मामले पर प्रदर्शन करते हुए ममता बनर्जी धरने पर बैठी थीं। हालांकि इस मामले की शुरुआत साल 2006 में ही हो गई थी। उस वक्त टाटा मोटर्स ने प. बंगाल के सिंगूर में नैनो कार प्लांट लगाने का फैसला लिया। राज्य में उस दौरान CPI की सरकार थी, जिसने टाटा मोटर्स को प्लांट लगाने के लिए एक हजार एकड़ की जमीन दी थी।
राज्य सरकार का ये फैसला प्रदेश की राजनीति में नया तूफान लेकर आया और प्रमुख विपक्षी दल तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने प्रदेश सरकार समेत टाटा मोटर्स के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। जुलाई 2006 में ममता ने जमीन आवंटन और नैनो प्लांट के खिलाफ जमकर प्रदर्शन किया, जिसका फायदा उन्हें दो साल बाद मिला। प्रदेश में चुनाव हुए और ममता की सरकार बनी।
मामला कोर्ट में चल रहा था, इस बीच राज्य सरकार के फैसले और किसानों के प्रदर्शन के दौरान जनवरी 2008 को कलकत्ता हाईकोर्ट ने सिंगूर जमीन अधिग्रहण को सही ठहराया जिसके खिलाफ किसान और कई गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) सुप्रीम कोर्ट चले गए।
ममता ने एक बार फिर तल्ख तेवर दिखाए और अगस्त 2008 में सिंगूर के बाहर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू कर दी, हालांकि आंदोलन को सिंगूर से कोलकाता स्थानानंतिरत करने को कहा गया। बस ममता ने अपनी भूख हड़ताल मेट्रो चैनल से शुरू कर दी। ममता को बड़ी सफलता मिली और सितंबर में टाटा ने अपना प्लांट काम रोकने का निर्णय लिया।