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माया’चाल’: इन पांच वजहों से समझें आखिर क्यों हाथ नहीं आया हाथी?

दलित वोटर से लेकर भाजपा की नाराजगी तक ऐसे पांच कारण जिसके चलते पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों से पहले बसपा ने छोड़ा कांग्रेस का साथ।

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mayawati

माया'चाल': इन पांच वजहों से समझें आखिर क्यों हाथ नहीं आया हाथी?

नई दिल्ली। देश की राजनीतिक के लिए 2019 को काफी अहम माना जा रहा है। लोकसभा चुनाव के जरिये देश के राजनीतिक भविष्य को नई दिशा मिल सकती है। लेकिन इस दिशा की दशा इसी वर्ष होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के जरिये तय होगी। यही वजह है कि चुनाव पर हर राजनीतिक दल जी जान से जुटा है, लेकिन कांग्रेस को चुनाव से पहले ही बड़ा झटका लगा है। बीएसपी ने आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन से इनकार कर दिया है। हालांकि कांग्रेस ने जीतोड़ कोशिश की लेकिन हाथी उनके हाथ नहीं आया। आइए जानते हैं 5 बड़े कारण, आखिर क्यों हाथ नहीं आया हाथी?

1. दलित वोट बैंक खिसकने का डर
बसपा सुप्रीमो मायावती को इस बात का डर सता रहा था कि कांग्रेस से गठबंधन किया तो कहीं उनका वोट बैंक ही न खिसक जाए। माया को इस बात की आशंका थी कि कांग्रेस से टूट कर बसपा में आए दलित वोटर कहीं दोबारा कांग्रेस के ही न होकर रह जाएं। आपको बता दें कि बसपा में गया दलित वोटर पहले कांग्रेस का ही वोट बैंक था।

2. कांग्रेस से कोई बड़ा फायदा नहीं
मायावती ये जानती हैं कि मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना समेत तीनों राज्यों में वो सरकार बनाने की स्थिति में नहीं हैं। कांग्रेस के साथ जाने में भी बसपा की राजनीतिक ताकत में किसी भी तरह का इजाफा नहीं हो रहा है। ऐसे में मायावती ने चुनाव से ठीक पहले ये दांव खेला है ताकि अपना वोट बैंक बचाने के साथ-साथ बीजेपी से भी दुश्मनी न हो।

3. खटक रहे दिग्विजय सिंह
मायावती ने कांग्रेस से अलग होने के पीछे दिग्विजय सिंह को बड़ी वजह बताया। दरअसल मायावती का आरोप है कि दिग्विजय सिंह भाजपा के ही एजेंट हैं। ऐसे में प्रदेश में कांग्रेस से गठबंधन करके बसपा को बड़ा नुकसान हो सकता है। हालांकि दिग्विजय सिंह ने सोशल मीडिय से लेकर हर प्लेटफॉर्म से अपनी सफाई दी और कहा कि कांग्रेस कमलनाथ के नेतृत्व में बढ़ रही है ऐसे में माया को कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए।

4. भाई पर कार्रवाई की चिंता
मायावती को राजनीति के उस दौर से गुजर रही है जहां उसे हर कदम फूंक-फूंक कर रखना है। यूपी की सत्ता में लौटना है और कांग्रेस-बीजेपी जैसे राजनीतिक दलों का सामना भी करना है। यही वजह है कि माया इस बीजेपी से पंगा नहीं ले सकती, क्योंकि उसे डर है कि भाजपा उनके भाई के खिलाफ शिकंजा कस सकती है।

5. सीटों के बंटवारे और रवैये का असर
मध्य प्रदेश की पार्टी यूनिट बीएसपी को बहुत ज्यादा तवज्जो देने के मूड में नहीं थी, लेकिन नेतृत्व के कहने पर बातचीत की गई थी। विधानसभा चुनावों में गठबंधन को लेकर पार्टी नेतृत्व ने स्टेट यूनिट को निर्देश दिए थे कि बीएसपी से गठबंधन को लेकर चर्चा तेज की जाए। मगर कुछ निष्कर्ष निकल पाता, मायावती ने झटका दे दिया। दरअसल बीएसपी ने गठबंधन के लिए 50 सीटों पर अपनी नजर जमाए हुए थी। हालांकि फाइनल लिस्ट में 30 सीटों की डिमांड हुई, लेकिन इनमें भी कई ऐसी सीटें थीं जहां 2013 के चुनाव में बीएसपी को महज कुछ वोट ही मिले थे।

उससे पहले ही प्रेस कॉन्फ्रेंस कर साफ कर दिया कि वह कांग्रेस से गठबंधन करने नहीं जा रही हैं और इस तरह कांग्रेस की सारी कोशिशों पर पानी फिर गया।
सूत्रों के मुताबिक, मायावती के साथ गठबंधन की ऐसी जल्दबाजी थी कि राहुल गांधी ने खुद मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ को बुधवार दोपहर फोन कर गठबंधन के लिए आखिरी कोशिश करने के लिए कहा था। इसके बाद कमलनाथ और बीएसपी महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा के बीच बुधवार शाम को बातचीत भी हुई। कांग्रेस ने अपने डेटा ऐनालिटिक्स डिपार्टमेंट चीफ प्रवीन चक्रवर्ती को उन 30 सीटों की लिस्ट बनाने के लिए भी बोल दिया, जिन पर बीएसपी अपने उम्मीदवार उतारना चाहती थी।
हालांकि कांग्रेस की सभी कोशिशों को तब झटका लगा जब मायावती ने २२ कैंडिडेट्स के नामों की घोषणा कर दी। माया के इस कदम से ही साफ हो गया था कि अब प्रदेश में गठबंधन की कोई उम्मीद नहीं है। बुधवार को मायावती ने तब कांग्रेस सकते में डाल दिया जब उन्होंने बाकायदा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर कांग्रेस के खिलाफ अपनी भड़ास निकाली। माया ने साफ कर दिया कि मध्य प्रदेश में वह कांग्रेस के साथ कोई गठबंधन नहीं करेंगी।

२०१३ में जिन सीटों पर महज कुछ वोट मिले, वे सीटें भी चाहती थी बीएसपी
सूत्रों की मानें तो बीएसपी के साथ गठबंधन को लेकर कांग्रेस लीडरशिप और राज्य नेतृत्व के बीच कम्युनिकेशन गैप देखने को मिला। जहां टॉप लीडरशिप का मानना था कि मध्य प्रदेश में गठबंधन की घोषणा से 2019 में महागठबंधन की राह पक्की हो जाएगी, वहीं राज्य नेतृत्व इस बात से इत्तेफाक नहीं रखता था। सूत्रों के मुताबिक,

बता दें कि बुधवार को मायावती ने साफ शब्दों में ऐलान कर दिया था कि एमपी और राजस्थान में कांग्रेस के साथ कोई गठबंधन नहीं होगा। बीएसपी सुप्रीमो ने कांग्रेस पर उनकी पार्टी को खत्म करने की साजिश का भी आरोप लगाया था।

मायावती ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह बयान के संदर्भ बुधवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। मायावती ने दिग्विजय सिंह को संघ का एजेंट बताते हुए कहा कि सोनिया और राहुल गांधी के ईमानदार प्रयासों के बावजूद उनके जैसे कुछ नेता नहीं चाहते कि कांग्रेस-बीएसपी गठबंधन हो। मायावती ने दिग्विजय के बयान के बहाने पूरी कांग्रेस पार्टी की मंशा पर सवाल खड़े कर दिए। आपको बता दें कि दिग्विजय सिंह ने अपने बयान में कहा था कि मायावती सीबीआई के डर से गठबंधन में शामिल नहीं हो रही हैं।