विरोधी आप पर आरोप लगाते हैं कि आप अपने चुनाव क्षेत्र में नहीं जातीं?
यह आरोप पूरी तरह निराधार और असत्य है। 2009 में मैं विदिशा से सांसद बनीं। पहले मैं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष थी, लेकिन सारी व्यस्तताओं के बावजूद और फिर 2014 से 2016 में बीमार पड़ने तक हर महीने अपने क्षेत्र की सभी आठ विधानसभा क्षेत्रों में जाती थी। एक दिन में दो विधानसभाओं का दौरा करती थी और महीने में कम से कम चार दिन जरूर दौरा करती थी। इसी तरह मैं चारों दिशा समिति की, जिसे पहले सतर्कता समिति कहते थे, अध्यक्षता करती थी। यह सिलसिला निरंतर अक्तूबर 2016 तक चला। अक्तूबर, 2016 में आखिरी मेरी जो सभा हुई नसूलागंज में, जिसमें मुख्यमंत्री भी मेरे साथ थे। उसमें हरदौठ गई, जो गोद लिया गया मेरा आदर्श गांव है। अक्तूबर, 16 तक यह सिलसिला लगातार चला। उसके बाद दिसंबर, 2016 में मेरी किडनी प्रत्यारोपण का ऑपरेशन हुआ। उसके बाद से मेडिकली मुझे सलाह नहीं थी कि निकलूं। तीन महीने मैं पूरी तरह आइसोलेशन में थी। उसके बाद भी कुछ-कुछ पाबंदियों के साथ बाहर निकलती थी। मुझे अब तक मेडिकल सलाह है कि ऐसी किसी जगह नहीं जाना जहां खुले में कार्यक्रम हो। मुझे धूल से बचना है। धूल से इंफेक्शन होने का डर है।
अपने क्षेत्र से दूर रह कर वहां का काम कैसे…
अस्वस्थ्यता के बावजूद मैं यहां बैठ कर हर दिन विदिशा की चिंता करती हूं। वहां के काम के लिए 17 लोगों का हमारा समूह है। इस समूह में वहां के सभी हारे और जीते विधायक, चारों जिलों के अध्यक्ष शामिल हैं। उनसे मैं यहां दिल्ली में मिलती हूं और लगातार विदिशा की चिंता करती हूं। मैं वहां जा सकूं यह मेरी इच्छा ही नहीं, छटपटाहट है। बार-बार मैं डॉक्टरों से पूछती रहती हूं, लेकिन मुझे जाने की इजाजत नहीं मिली।
मैं छटपटाती हूं, केवल चाहती नहीं हूं। बार-बार डॉक्टरों से कहती हूं कि क्या मैं जा सकती हूं। तो वे कहते हैं कि विदेश जाने की इजाजत इसलिए दे रहे हैं कि आप जहाज से जाती हैं, वहां गाड़ी में बैठ कर सभागार में कार्यक्रम करती हैं। यहां भी सभागार में कार्यक्रम कर सकती हैं। सच पूछिए तो मैं विदिशा में एक ऑडिटोरियम बनवा रही हूं, उसके पूरे होने का इंतजार कर रही हूं। मैं हर महीने पूछती हं कि वह कहां तक पहुंच गया।
कब तक बन सकेगा?
मुझे बताया गया है कि दिसंबर अंत तक पूरा हो जाएगा और जनवरी में आप उसका लोकार्पण कर सकेंगी। विदिशा में मेरी पहली सभा तभी हो पाएगी। इस बीच भी मैं भोपाल जाती रहती हूं। वहां कार्यकर्ताओं से मिल लेती हूं। लेकिन कम जाना होता है, क्योंकि वे भी जब आते हैं तो उनको लगता है कि मैं नजदीक से मिलूं। यह शैली मैंने खुद ही पाली है। महिलाएं गले लग कर मिलती थीं, कार्यकर्ता पैर भी छूते थे, नजदीक से आ कर मिलते थे। जब मुझे कहना पड़ता है कि इंफेक्शन के कारण दूर रहना है तो मुझे भी खराब लगता है। वो मान तो जाते हैं, लेकिन वे महिलाएं वापस लौटती हैं तो मन में यह तड़प लेकर लौटती हैं कि दीदी के गले नहीं लग पाए। इन कारणों से अभी मैं नहीं जा पा रही हूं। अस्वस्थ्यता के बावजूद मैं यहां बैठ कर हर दिन विदिशा की चिंता करती हूं। एक दिन मैं आप लोगों को उन कामों की लिस्ट देना चाहूंगी, जो मैंने अक्तूबर, 16 से अब तक किए हैं। वे काम अपने आप में संख्या में भी बड़े हैं और बड़े असरदार हैं।
आप चाहती हैं कि ऐसे कार्यक्रम में जाएं? राहुल गए, कमलनाथ वहां डेरा डाल रहे हैं। विदिशा का आपका क्षेत्र क्या कांग्रेस के हाथ में चला जाएगा?
जहां तक विपक्ष का सवाल है, उनका अधिकार है जाना। मैं जाती तो भी वे जाते। और उनका यह भी अधिकार है कि वे इसे मुद्दा बनाएं। अब यह तो वहां की जनता के लिए है कि इसे मुद्दा बनने दे या नहीं बनने दे। लेकिन मुझे इस से कोई गिला या एतराज नहीं है। अगर थोड़ी सी संवेदना रखें तो उन्हें स्वास्थ्य की सीमाएं मालूम हैं। स्वास्थ्य की सीमा को दरगुजर कर इसे मुद्दा बनाएं तो यह अधिकार है विपक्ष का। उसे स्वीकार करना या नहीं करना तो जनता के हाथ में है।
बुधनी-इंदौर नई रेल लाइन को अपने क्षेत्र के लिए कितना अहम मानती हैं?
मध्य प्रदेश के लोगों के लिए यह बहुत खुशी की बात है, क्योंकि मध्य प्रदेश में रेल लाइन की सघनता बहुत कम है। ऐसे में 205 किलोमीटर की नई रेल लाइन आ जाए यह अपने आप में बहुत बड़ी बात है। लेकिन बुधनी-इंदौर रेल लाइन मेरे लिए बहुत अधिक प्रसन्नता लेकर आई है, क्योंकि इससे जनप्रतिनिधि के तौर पर किया गया मेरा पहला बड़ा वादा पूरा हो गया। 2009 में मैं चुनाव लड़ने विदिशा गई थी तो बुधनी जनसभा के बाद वहां के कार्यकर्तांओं ने मुझे लगभग घेर कर एक ही बात कही थी कि दीदी और कुछ करो न करो, बुधनी-इंदौर रेल चलवा दो। जनता के बीच किया गया वादा पूरा हो जाए तो जनप्रतिनिधि के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि वही होती है और उसी उपलब्धि का एहसास आज मुझे प्रसन्नता दिला रहा है।
लेकिन इसमें इतना समय क्यों लगा?
मैं तभी से प्रयासरत थी। 2012 में इसका सर्वे स्वीकृत हुआ और 2016-17 में इसके लिए बजट का प्रावधान किया गया। प्रधानमंत्री ने अब निजी दिलचस्पी लेकर इसे कैबिनेट की मंजूरी दिलवाई। अब बुधनी इंदौर नई रेलवे लाइन को कैबिनेट से मंजूरी मिल गई है। यह मध्य प्रदेश वासियों के लए बहुत खुशी की बात है, क्योंकि राज्य में रेल सघनता बहुत कम है। इसमें 205 किलोमीटर की रेल लाइन आ जाए, यह अपने आप में बहुत बड़ी बात है। बता दूं कि मैं 2009 से इस कोशिश में लगी हुई थी। 2012 में इसका सर्वे स्वीकृत हुआ और 2016-17 में इसके लिए बजट का प्रावधान किया गया। एक जनप्रतिनिधि को वचनपूर्ति से ज्यादा खुशी और किसी चीज में नहीं होती। जनता के बीच में किया गया वादा पूरा हो जाए तो सबसे बड़ी उपलब्धि जनप्रतिनिधि के लिए वही है और उसी उपलब्धि का एहसास आज मुझे प्रसन्नता दिला रहा है।