scriptकाम न धंधा पार्टियों को करोड़ों का चंदा, एडीआर की रिपोर्ट में खुलासा | rupees of Crores to non-business political parties disclose in ADR report | Patrika News

काम न धंधा पार्टियों को करोड़ों का चंदा, एडीआर की रिपोर्ट में खुलासा

locationनई दिल्लीPublished: Aug 18, 2017 05:47:00 pm

Submitted by:

Rahul Chauhan

2012 से 2016 के बीच पांच राजनीतिक दलों ने इस तरह का दान लिया है। 10.48 करोड़ रुपये के कुल 262 दान थे। सबसे ज्यादा 92.27 फीसदी हिस्सा भाजपा का है।

धीरज कुमार

नई दिल्ली: कई राजनीतिक दलों ने ऐसे कॉरपोरेट समूहों से चंदा लिया है, जिनके कारोबार का कोई अता पता नहीं है। इंटरनेट पर कोई नामोनिशान नहीं है। कुछ कंपनियों की ऑनलइन मौजूदगी है भी तो वेबसाइट पर कांटेक्ट नंबर नहीं दिया गया है। गैर सरकारी संगठन एडीआर ने अपनी रिपोर्ट में यह खुलासा किया है। एडीआर ने इस तरह के दान को गैर संकलित कहा है।
इंटरनेट पर ‘शून्य’ उपस्थिति
आमतौर पर कॉरपोरेट इकाइयों की वेबसाइट होती है। मगर रिपोर्ट कहती है कि इन कंपनियों की इंटरनेट पर ‘शून्य’ उपस्थिति है। यानि कि अपनी वेबसाइट तो दूर की बात किसी दूसरी वेबसाइट पर भी कोई जिक्र नहीं है। साथ ही उनके व्यापार के बारे में कुछ भी साफ नहीं है। 2012 से 2016 के बीच पांच राजनीतिक पार्टियों ने इस तरह का दान लिया है। इस तरह के 10.48 करोड़ रुपये के 262 दान थे। इनमें सबसे ज्यादा 92.27 फीसदी हिस्सा भाजपा का है। भाजपा को 9.67 करोड़ रुपए का ऐसा चंदा मिला है। कांग्रेस को 0.81 करोड़ रुपये मिला है।
2012-13 में सबसे ज्यादा दान रियल एस्टेट से
2012-13 के दौरान राष्ट्रीय दलों को रियल एस्टेट क्षेत्र से सबसे ज्यादा दान मिला है। इस क्षेत्र से सबसे अधिक चंदा भाजपा को 16 करोड़, कांग्रेस को 95 लाख और सीपीएम को चार लाख रुपये मिले हैं। चुनाव सुधारों पर निर्वाचन आयोग का सरकार से संघर्ष सिर्फ उम्मीदवार पर ही क्यों पार्टियों पर भी लगे खर्च की लगाम को लेकर जारी है।
चुनाव आयोग की सरकार से अपील
अभी सिर्फ उम्मीदवार पर ही खर्चे की सीमा तय है। मगर राजनीतिक दलों पर कोई पाबंदी नहीं है। चुनाव आयोग चाहता है कि सरकार इस पर तुरंत कदम उठाए।
दलों के खर्चे पर लगेगी लगाम तब ही आएगी पारदर्शिता
निर्वाचन आयोग का मानना है कि सिर्फ उम्मीदवार के खर्चे पर सीमा तय करने से चुनावों को धन और बल से मुक्त नहीं किया जा सकता। राजनीतिक दलों पर कोई सीमा तय नहीं होने की वजह से राजनीतिक दल इसका फायदा उठाते है। साथ ही अपने उम्मीदवारों को भी फायदा पहुंचाते हैं।
2014 में भाजपा ने खर्चे थे 75 दिन में 712 करोड़ से ज्यादा
कोई सीमा तय नहीं होने की वजह से सियासी दल चुनाव में जमकर खर्च करते है। मसलन, 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सबसे ज्यादा खर्च किए थे। पार्टी ने 75 दिन में 712.48 करोड़ खर्च किए थे। एडीआर के आंकड़ों के मुताबिक इसके बाद कांग्रेस दूसरे नंबर पर थे। उसने 484.21 करोड़, तीसरे नंबर पर पूर्व कृषि मंत्री शरद पवार की एनसीपी 64 करोड़ और मायावती की बीएसपी 30.08 करोड़ चौथे नंबर पर है।
हर राज्य में चुनाव खर्च की अलग अलग सीमा
बड़े राज्यों के लिए उम्मीदवारों पर खर्च की सीमा ज्यादा है। वहीं छोटे राज्यों में कम सीमा तय की गई है। मसलन, पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में उम्मीदवारों की खर्च सीमा 28 लाख रूपए तक थी। वहीं गोवा और मणिपुर के लिए यह सीमा 20 लाख रूपए थी। 2009 के लोकसभा चुनाव के लिए बड़े राज्यों की खर्च सीमा 40 लाख रूपए थी। जो 2014 में बढ़ाकर 70 लाख थी। वहीं 2009 में छोटे राज्यों में उम्मीदवार की खर्च सीमा 22 लाख थी, जिसे बढ़ाकर 2014 के चुनाव में 54 लाख रूपए कर दिया था।
कोर्ट में लंबित हैं कई याचिकाएं
राजनीतिक दलों के खर्चे पर लगाम को लेकर कोर्ट में कई याचिकाएं उम्मीदवारों ही नहीं राजनीतिक दलों पर भी खर्चों की सीमा तय करने को लेकर अदालतों में दायर की गई हैं। गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फोर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) ने भी दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। एडीआर के अध्यक्ष मेजर जनरल रिटायर्ड अनिल वर्मा कहते हैं कि दुर्भागय की बात है कि अभी तक कोई भी सरकार इस पर नहीं सोच रही है। चुनाव आयोग के साथ साथ सिविल सोसायटी को इसके लिए सामने आना होगा। चुनाव सुधारों पर निर्वाचन आयोग का सरकार से संघर्ष जारी है।

ट्रेंडिंग वीडियो