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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का बड़ा बयान- भारतीय राजनीति में सब कुछ ठीक नहीं

लोकतंत्र के मंदिर को कभी भी अपवित्र नहीं किया जाना चाहिए

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नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बड़ा बयान देते हुए कहा है कि भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में सब कुछ ठीक नहीं है और यह बहुत दबाव में काम कर रही है। उन्होंने दुख जाहिर करते हुए कहा कि संसद के कामकाज को रोककर राजनीति को हथियार बनाना हमारी राजनीति के लिए गंभीर परिणाम देने वाला है।

धनखड़ ने मुंबई में महाराष्ट्र विधानमंडल के दोनों सदनों के सदस्यों को संबोधित करते हुए, सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को "दोनों तरफ से सुविधाजनक पंचिंग बैग" बनाने की प्रवृत्ति पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने इसे अनुचित बताते हुए कहा, "जब हम कुर्सी संभालेंगे तो हमें न्यायसंगत होना होगा, निष्पक्ष होना होगा।" इस बात पर बल देते हुए कि लोकतंत्र के मंदिर को कभी भी अपवित्र नहीं किया जाना चाहिए, उन्होंने कहा कि आसन का सम्मान सदैव होना चाहिए और इसके लिए संसद और विधानसभाओं में वरिष्ठ सदस्य को नेतृत्व करना होगा।

उपराष्ट्रपति ने हमारे विधानमंडलों में लोकतांत्रिक मूल्यों और संसदीय परंपराओं का कड़ाई से पालन बनाए रखने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा, “हाल के संसद सत्र में जिस तरह का आचरण देखा गया वह वास्तव में दर्दनाक है, क्योंकि यह हमारे विधायी प्रवचन में महत्वपूर्ण नैतिक क्षरण को प्रदर्शित करता है।”

धनखड़ ने संसद और राज्य विधानमंडलों को "लोकतंत्र का ध्रुव तारा" बताते हुए कहा कि संसद और विधानमंडलों के सदस्य प्रकाशस्तंभ हैं और उन्हें अनुकरणीय आचरण का उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए।

उपराष्ट्रपति महोदय ने कहा, "यह स्पष्ट है कि वर्तमान में हमारी संसद और विधानमंडलों के कामकाज में सब कुछ ठीक नहीं है। लोकतंत्र के ये मंदिर रणनीतिक व्यवधानों और अशांति का दंश झेल रहे हैं। पार्टियों के बीच बातचीत समाप्त हो रही है और बातचीत का स्तर दिन पर दिन गिरता जा रहा है।''

यह देखते हुए कि सौहार्द और मेल-मिलाप को टकरावपूर्ण और प्रतिकूल रुख से प्रतिस्थापित किया जा रहा है, उपराष्ट्रपति ने कहा कि "लोकतांत्रिक राजनीति एक नई गिरावट देख रही है और तनाव तथा खिंचाव का माहौल है।" उन्होंने ऐसे "विस्फोटक और चिंताजनक परिदृश्य" में सभी स्तरों पर, विशेष रूप से राजनीतिक दलों द्वारा आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता पर बल दिया।

उपराष्ट्रपति ने कहा, "बुद्धि, हास्य, व्यंग्य और कटाक्ष, जो कभी विधानमंडलों में प्रवचन का अमृत थे, हमसे दूर होते जा रहे हैं। अब हम अक्सर टकराव और प्रतिकूल स्थिति देखते हैं।'' राष्ट्रपति महोदय ने कहा कि राजनीतिक दल अपने सदस्यों में अनुशासन की गहरी भावना पैदा करें और उन सदस्यों को पुरस्कृत करें जिनका प्रदर्शन उत्कृष्ट रहा है बजाय उन लोगों को पुरस्कृत करने के जो भीड़ में शामिल होकर आसन के समक्ष आकर नारेबाजी कर रहे हैं।

इस अवसर पर, उपराष्ट्रपति ने यह भी साझा किया कि अक्सर सदस्य मुझसे उनके कक्ष में मिलते हैं और बताते हैं कि सदन की कार्यवाही को बाधित करने के लिए उन्हें अपने राजनीतिक दल से आदेश मिलता है। उन्होंने सवाल किया कि “सदन को बाधित करने का आदेश कैसे दिया जा सकता है?"