विवेक तन्खा ने कहा कि ऐसे आपात माहौल में सुप्रीम कोर्ट से बहुत ज्यादा उम्मीदें थीं। लॉकडाउन जिस तरीके से हुआ वो ठीक नहीं था। लेकिन हमें सबसे ज्यादा उम्मीद थी कि लोगों के हितों के लिए सुप्रीम कोर्ट हस्तक्षेप करेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मजदूरों के लिए कोर्ट ने बोलने में बहुत देर की। अगर वह जल्दी बोलता तो शायद हालात दूसरे होते।
एक सवाल के जवाब में तन्खा ने कहा, जब 96 में मुशरान साब के रहते मुझे टिकट देने की बात हो रही थी तो मैंने साफ कहा था कि एक घर के भीतर एक ही टिकट होना चाहिए। जब तक वह रहे मैंने राजनीति नहीं की। अभी हाल में जब मेरे बेटे को टिकट देने की बात उठी तो मैंने ट्वीट किया और पार्टी के भीतर भी कहा कि एक घर के भीतर एक ही टिकट होना चाहिए। मैंने अपने बेेटे को साफ कह दिया है कि पहले काम से अपनी जगह बनाओ, फिर तुम तय करो कि तुम्हें राजनीति करनी है, अगर करनी है तो फिर किस पार्टी के साथ करनी है। यह उसका निर्णय होगा, मेरा नहीं। हम लोकतंत्र में हैं और यह आजादी सभी को होनी चाहिए।
उन्होंने कहा, सरकारें संवेदनशील होनी चाहिए, अगर नहीं है तो फिर सरकार होने की जरूरत ही क्या है। संवेदनशीलता हमारे लिए जिंदगी जीने का तरीका हो सकता है, लेकिन सरकारों का जीने का तरीका राजनीति है, उनसे ज्यादा की उम्मीद नहीं की जा सकती है। इस वक्त में सरकारों को सबके साथ बात करनी चाहिए, आलोचना को भी सलाह के तौर पर लेना चाहिए, भले ही वह आपको पसंद न आए। सुझाव और आलोचना दोनों ही आगे बढ़ने का रास्ता दिखाएंगे।
विवेक तन्खा ने कहा, 20 लाख करोड़ रुपए का पैकेज दिया, लेकिन किसी को एक रुपया भी मिला हो तो बताएं। विकसित देशों ने डायरेक्ट कैश बेनिफिट दिया। हमारे यहां भी इसकी जरूरत थी। गरीब और मध्यमवर्गीय तत्काल मदद चाहता था, लेकिन सरकार ने उसे कल का भविष्य दिखाया। जिसके पास आज का संकट है, वह कल के सहारे कैसे रहेगा। सरकार को मध्यम वर्ग की भी चिंता करनी चाहिए, जिसकी नौकरी जा रही है। वह बच्चों की फीस नहीं भर पा रहा है और वह किसी के सामने हाथ भी नहीं फैला पा रहा है।