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इस बार कैराना-नूरपुर के उपचुनाव में माया ने एसपी-आरएलडी को पशोपेश में क्‍यों डाला?

गोरखपुर और फूलपुर चुनाव के उलट बसपा प्रमुख मायावती ने कैराना-नूरपुर उपचुनाव में सपा-आरएलडी प्रत्‍याशी का खुलकर समर्थन नहीं किया।

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mayawati

इस बार कैराना-नूरपुर के उपचुनाव में माया ने एसपी-आरएलडी को पशोपेश में क्‍यों डाला?

नई दिल्‍ली। विपक्षी एकता के तहत बसपा प्रमुख मायावती कांग्रेस और सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का संकेत बहुत पहले दे चुकी हैं। लेकिन इस बार बीएसपी मुखिया मायावती ने शनिवार को हुए पार्टी अधिवेशन के दौरान कैराना-नूरपुर उपचुनाव में एसपी-आरएलडी के गठबंधन को खुलकर समर्थन की घोषणा नहीं की। इससे कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। उनके इस रुख को दलित वोट बैंकों के जोड़-तोड़ के रूप में देखा जा रहा हैा मायावती का मानना है कि दलित वोट बैंक पर भाजपा सहित सपा और आरएलडी तीनों की नजर है। राजनीतिक विश्‍लेषकों का कहना है कि मायावती अपने वोट बैंक को किसी और का सपोर्ट करने का जोखिम हर बार नहीं उठा सकतीं।

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दलित बदल सकते हैं चुनाव परिणाम
आपको बता दें कि कैराना-नूरपुर दोनों क्षेत्रों में औसतन 15 फीसदी दलित मतदाता हैं। इनके दम पर चुनाव परिणामों को पलटा जा सकता है। इन उपचुनावों को भाजपा के खिलाफ संयुक्त विपक्ष का 2019 चुनाव से पहले ग्राउंड टेस्ट माना जा रहा है। यही कारण है कि विपक्षी नेताओं में इस बात को लेकर चर्चा है कि बहन जी ने गोरखपुर और फूलपुर चुनाव की तरह दलितों को इस चुनाव में भी एक ऐसी पार्टी को वोट करने को को क्‍यों नहीं कहा जो भाजपा को हरा सके। जबकि उन्‍हें बखूबी पता है कि बसपा के समर्थन का ही परिणाम था कि गोरखपुर और फूलपुर में भाजपा के गढ़ में सपा प्रत्‍याशियों की अप्रत्‍याशित जीत हुई थी।

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वोटों का ध्रुवीकरण नहीं चहती बसपा प्रमुख
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कैराना-नूरपुर सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र है। इसलिए मायावती ने जान बूझकर प्रत्यक्ष रूप से समर्थन की घोषणा नहीं की हैं। इस बारे में बसपा के एक नेता का कहना है कि इसके पीछे बहन जी का मकसद संवेदनशील क्षेत्रों में वोटों के ध्रुवीकरण को रोकने की है ताकि भाजपा जाट और गुज्जर के साथ दलित वोटबैंक को भी अपने पक्ष में न कर ले। हालांकि पार्टी के कार्यकर्ता अपने एसपी और आरएलडी समकक्षों के साथ मिलकर काम करे हैं लेकिन बावजूद इसके गोरखपुर-फूलपुर की तरह बीएसपी की तरफ से यहां कोई आक्रामक प्रचार नहीं हुआ। दूसरी तरफ शनिवार की मीटिंग में मायावती ने यहां तक कह दिया था कि यदि सीटों का सम्मानजनक बंटवारा नहीं हुआ तो वह 2019 का चुनाव अकेले लड़ेंगी।