scriptउद्धव ठाकरे और नारायण राणे: बीते 25 साल से दोनों के बीच है 36 का आंकड़ा, जानिए रंजिश की वजह | Why Enmity between Uddhav Thackeray and Narayan Rane | Patrika News

उद्धव ठाकरे और नारायण राणे: बीते 25 साल से दोनों के बीच है 36 का आंकड़ा, जानिए रंजिश की वजह

Published: Aug 25, 2021 12:21:13 pm

Submitted by:

Ashutosh Pathak

मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और नारायण राणे के बीच आपसी रंजिश और बढ़ गई है। राणे अपनी राजनीति के शुरुआती दौर में शिवसेना के काफी तेजतर्रार नेता थे। मगर उनकी उद्धव ठाकरे से कभी नहीं बनी।
 

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नई दिल्ली।

केंद्रीय मंत्री नारायण राणे को मंगलवार देर रात महाड कोर्ट से जमानत मिल गई। इससे पहले कोर्ट ने उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजने का फैसला सुनाया था, मगर इस फैसले के बाद राणे के वकील ने जमानत अर्जी दायर की। इस अर्जी पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने राणे को राहत देते हुए जमानत दे दी।
इससे पहले मंगलवार शाम को एक नाटकीय घटनाक्रम के बीच महाराष्ट्र पुलिस ने राणे को तब गिरफ्तार कर लिया था, जब वह खाना खा रहे थे। इस दौरान उन्हें गिरफ्तार करने पहुंची पुलिस टीम को राणे समर्थकों के भारी विरोध का सामना भी करना पड़ा था। हालांकि, राणे ने खुद पहल करते हुए पुलिस के साथ सहयोग किया। इसका एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ।
बहरहाल, यह सब तब शुरू हुआ जब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को थप्पड़ मारने की राणे की ओर से की गई कथित टिप्पणी के बाद बवाल बढ़ा। इसके बाद राणे के खिलाफ के चार अलग-अलग थानों में एफआईआर दर्ज कराई गई। पुलिस ने इस मामले में मुस्तैदी दिखाते हुए त्वरित कार्रवाई की और केंद्रीय मंत्री को फौरन गिरफ्तार करने पहुंच गई। पुलिस ने जब राणे को गिरफ्तार किया तब वे भाजपा की जन आशीर्वाद यात्रा पर थे और बीच में रूककर भोजन कर रहे थे।
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केंद्रीय मंत्री नारायण राणे ने गिरफ्तारी से बचने के लिए बंबई हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, मगर हाईकोर्ट ने सुनवाई से इनकार कर दिया था, जिसके बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। अब इस मामले के बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और नारायण राणे के बीच आपसी रंजिश और बढ़ गई है। दरअसल, नारायण राणे अपनी राजनीति के शुरुआती दौर में शिवसेना के काफी तेजतर्रार नेता थे। मगर उनकी उद्धव ठाकरे से कभी नहीं बनी। बीते 25 साल से इन दोनों के बीच छत्तीस का आंकड़ा है।
नारायण राणे ने अपनी जन आशीर्वाद यात्रा गत गुरुवार को शुरू की थी। यात्रा शुरू करने से पहले उन्होंने शिवाजी पार्क में बाल ठाकरे मेमोरियल में श्रद्धांजलि अर्पित की। इसके बाद जब वे मेमोरियल से बाहर निकले, तब शिव सैनिकों ने मेमोरियल की शुद्धता के लिए गोमूत्र का छिडक़ाव किया। इससे पता लग जाएगा कि नारायण राणे और शिवसैनिकों के बीच संबंध किस हद तक खराब हैं।
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वैसे, भाजपा में शामिल होने के बाद नारायण राणे ने महाराष्ट्र में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। पार्टी में कद बढऩे के बाद नारायण राणे के समर्थक भी उत्साहित हैं। हालांकि, राणे में जो संभावनाएं आज भाजपा देख रही है, करीब 40 साल पहले बाल ठाकरे को भी दिखी थी। नारायण राणे कोंकण क्षेत्र से आते हैं और कद्दावर मराठा नेता के तौर पर उनकी पहचान है। वह अपनी आक्रामक शैली के लिए मशहूर हैं। चेंबुर के कॉरपोरेटर रहे हैं। इसके बाद मुंबई की सार्वजनिक बस परिवहन सेवा बेस्ट कमेटी के तीन साल तक अध्यक्ष भी रहे।
इसके बाद उन्हें राज्य सरकार में मंत्री बनाया गया और फिर बाल ठाकरे ने एक दिन उन्हें महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बना दिया। शिवसेना में रहते हुए उन्हें हमेशा काफी विरोध का सामना करना पड़ा ओर इस विरोध के केंद्र में थे खुद बाल ठाकरे के बेटे और वर्तमान मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे। इसमें उनका साथ देते थे शिवसेना के दो वरिष्ठ नेता मनोहर जोशी और सुभाष देसाई।
यह तिकड़ी नारायण राणे को मुख्यमंत्री बनाने के पक्ष में नहीं थी और राणे की आक्रामक शैली का भी विरोध करती थी। ऐसी कई और वजहें थीं, जिस वजह से बाद में नारायण राणे ने शिवसेना छोड़ दी। यह तब था, जब पार्टी सुप्रीमो बाल ठाकरे का उन्हें समर्थन हासिल था। राजीतिक विश्लेषकों की मानें तो 1995 में महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा गठबंधन की सरकार बनी। तब शिवसेना में दो विरोधी गुट थे। एक गुट में उद्धव ठाकरे, मनोहर जोशी और सुभाष देसाई। दूसरे गुट में शामिल थे नारायण राणे, राज ठाकरे और उनकी पत्नी स्मिता ठाकरे।
बाल ठाकरे ने 1999 में मनोहर जोशी की जगह कुछ राजनीतिक वजहों और संभावनाओं को देखते हुए नारायण राणे को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला लिया। मनोहर जोशी को हटाए जाने से उद्धव ठाकरे खुश नहीं थे। माना जाता है कि तभी से यह दरार और गहरी हो गई। हालांकि, राणे सिर्फ 9 महीने ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ पाए, क्योंकि शिवसेना-भाजपा गठबंधन ने समय से पहले ही चुनाव में जाने का फैसला लिया, मगर नतीजे जब आए, तो इस गठबंधन को हार का सामना करना पड़ा और नारायण राणे ने स्पष्ट शब्दों में हार के लिए उद्धव ठाकरे को जिम्मेदार बताया। इसके बाद यह अदावत समय-समय पर अलग-अलग वजहों से बढ़ती रही और मंगलवार की घटना ने इसमें एक अध्याय और जोड़ दिया है।
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