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बिहार के यंग गंस, जिनकी पहली पसंद कभी नहीं थी पॉलिटिक्स

Published: Nov 15, 2020 01:59:16 pm

Submitted by:

Saurabh Sharma

तेजस्वी से लेकर चिराग और लव सिन्हा ने कभी नहीं सोचा था करेंगे पॉलिटिक्स में एंट्री
शरद यादव की बेटी ने भी पिता की तबीयत खराब होने के बाद ली पॉलिटिक्स में एंट्री

Young Guns from Bihar, whose first choice was never politics

Young Guns from Bihar, whose first choice was never politics

नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के नतीजे आ चुके हैं। संभव है कि सोमवार तक नीतीश कुमार एक बार फिर से सीएम पद की शपथ लें ले। वैसे इस चुनाव में कुछ लोग एेसे भी रहे जिन्होंने पहली बार चुनाव लड़ा, तो कुछ यह चुनाव आखिरी भी हो सकता है। खैर इन चुनावों में कुछ चेहरे ऐसे भी रहे, जिन्होंने अपनी जिंदगी में कभी नहीं सोचा होगा कि वो पॉलिटिक्स में आएंगे। उनमें दो नाम तो ऐसे भी हैं जिंदगी का मकसद ही कुछ और था। पहला तेजस्वी यादव जो पूरी तरह से अपने आपको क्रिकेट में समर्पित कर चुके थे। दूसरा चिराग पासवान बॉलिवुड में अपना करियर शुरू कर चुके थे। इन चुनावों में अपनी-अपनी पार्टी से सीएम पद के दावेदार थे। आज हम आपको ऐसे ही कुछ चेहरों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने पॉलिटिक्स में आकर सभी को चौंका दिया।

तेजस्वी यादव का क्रिकेट ही था जीवन

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लालू यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव से ज्यादा तेज प्रताप पॉलिटिक्स में ज्यादा देखे गए। तेजस्वी का सपना क्रिकेटर बनने का था। दिल्ली डेयर डेविल्स की टीम का हिस्सा रहे। पांव में चोट ना लगी होती तो टीम इंडिया में भी शामिल हो चुके होते। ऐसा इसलिए क्योंकि वो वाकई अच्छे खिलाड़ी थे, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। पिता की तबीयत और सीबीआई के मजबूत पकड़ के अलावा बड़े भाई तेज प्रताप के विवादों में घिरे रहने के बाद उन्हें पार्टी की कमान संभालनी पड़ी। पार्टी के युवा कार्यकर्ता भी उनके जुड़े और 2015 के चुनावों में अपने पिता के पार्टी को दोबारा खड़ा करने में मदद की।

चिराग पासवान अभिनेता से बने नेता

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रामविलास पासवान देश के नामी नेताओं में से एक थे। कुछ दिनों पहले वो केंद्रीय मंत्री पद पर रहते हुए दुनिया को छोड़कर चले गए। खैर बात उनके बेटे चिराग पासवान करेंगे। जो कभी बॉलिवुड में एक्टर बनने गए थे। उनका सपना कभी नेता बनने का था ही नहीं। बॉलीवुड में नहीं चले तो पिता के साथ पॉलिटिक्स में दुनिया में आ गए। 2014 के चुनावों से पहले बिखरी लोक जनशक्ति पार्टी में समेटा और बीजेपी नेताओं के साथ संपर्क साधा। नई सोच और उर्जा के साथ के एनडीए में शामिल हुए और पार्टी को सीटों पर जीत दिलाई। फिर क्या था पार्टी, पिता और पुत्र तीनों हिट हो गए। 2019 में भी वही सिलसिला फिर से दोहराया गया। मामला बिगड़ा 2020 बिहार चुनाव में। चिराग ने पूरी बागडोर अपने हाथों में ली। लेकिन इस बार बीजेपी ने उनकी नहीं सुनी। फिर क्या था एनडीए से अलग हुए और सभी सीटों पर अपनी पार्टी के नेताओं को खड़ा किया।

पलटन फिल्म से की थी लव सिन्हा ने शुरुआत

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लव सिन्हा, जिनकी पहचान अभी तक इतनी ही है कि वो बॉलीवुड सुपरस्टार और इंडियन पॉलिटिक्स के धाकड़ नेताओं में से एक शत्रुघ्न सिन्हा के बेटे हैं। पहली बार बांकेपुरा सीट से चुनाव भी लड़ा। वो भी कांग्रेस के टिकट पर।, लेकिन उनके नसीब में हार लिखी थी। वो कभी पॉलिटिक्स में नहीं आना चाहते थे। उन्होंने अपनी किस्मत पहली बार बॉलिवुड में आजमाई। सफल नहीं हुए। ऐसा नहीं था कि वो 2019 में लोकसभा चुनाव नहीं लड़ सकते थे, लेकिन उस समय उनकी माता जी और पिता दोनों चुनावी मैदान में थे। ऐसे में उन्हें मौका मिला एक साल के बाद बिहार चुनाव में।

शरद यादव की बेटी सुभाषिनी यादव

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बिहार की राजनीति की अहम कड़ी रहे शरद यादव को कौन नहीं जानता। जिनके संबंध सभी पार्टियों के नेताओं से मधुर ही रहे हैं। साथ ही बिहार और केंद्र की राजनीति में उनका कद लालू, राम विलास पासवान और नीतीश कुमार से कभी कम नहीं रहा। माधेपुरा लोकसभा सीट से लालू प्रसाद तक को धूल चटा चुके हैं। अब उनकी तबीयत खराब है और राजनीति से दूर हैं। ऐसे में अब उनकी बेटी ने कमान संभाली। वो हरियाणा से आकर। सुभाषिनी यादव की शादी भी हरियाणा की पॉलिटिकल फैमिली में ही हुई हैं। शादी से पहले और बाद में भी कभी एक्टिव पॉलिटिक्स में नजर नहीं आई। अपने पिता के लिए कंवेंसिंग और कैंपेनिंग में दिखाई दी, लेकिन पूरी तरह से नहीं। इस बार वो बिहारी गंज से कांग्रेस की टिकट पर चुनावी समर में मौजूद थीं।

लंदन रिटर्न पुष्पम प्रिया चौधरी

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यह नाम हमने जानबूझकर लिया। वो भी तब जब वो खुद ही कह चुकी हैं कि वो पॉलिटिक्स में ही आना चाहती थी। वास्तव में लंदन में पढऩे वाली और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से मास्टर डिग्री हासिल करने वाली लड़की बिहार के विधानसभा चुनाव में एंट्री करती है तो बड़ी बात है। ऐसे चेहरों के लिए बाकी सवाल खत्म हो जाते हैं। इंटरनेशनल वुमेंस डे पर अपनी प्लूरल्स पार्टी की घोषणा करने के साथ बिहार का सीएम बनने तक की घोषणा करने वाली प्रिया का बैक ग्राउंड पॉलिटिकल ही रहा है। पिता और चाचा, उससे पहले दादा पॉलिटिक्स में रह चुके हैं। जेडीयू के साथ अच्छे संबंध भी हैं। चाचा तो अभी भी चुनाव लड़े। प्रिया का सपना है कि वो 2030 तक बिहार को युरोप जितना खूबसूरत बना देंगी।

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