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कांठल के जंगलों में गत वर्षों से कटाई से कम हो रही है हरियाली

चिंता: गत वर्षों से जंगल से हो रही पेड़ों की कटाई,

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कांठल के जंगलों में गत वर्षों से कटाई से कम हो रही है हरियाली

कांठल के जंगलों में गत वर्षों से कटाई से कम हो रही है हरियाली

जैव विविधता पर संकट के बादल गत कुछ वर्षों से वन क्षेत्र से कम होती हरियाली से

प्रतापगढ़. जिले का जंगल काफी समृद्धशाली रहा है। लेकिन गत कुछ वर्षों से पेड़ों की कटाई काफी बढ़ गई है। ऐसे में वन क्षेत्र में कमी हो रही है। यही हाल रहा तो आगामी दिनों में कई पेड़-पौधों की संख्या में कमी हो जाएगी। जिले के जंगलों में गत कई वर्षों से पेड़ों की कटाई अवैध रूप से जारी है। विशेषकर सीतामाता के जंगलों में तो रात को कुल्हाडिय़ों की आवाजें सुनाई देती है। सूत्रों के अनुसार रातों-रातों पेड़ों को काटकर वाहनों में भरकर जंगल से बाहर ले जाया जाता है। इसमें जंगल में निवासरत लोगों के हाथ होने से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। ऐसे में जिले के भू-भाग में हरियाली का आंकड़ा कम होना स्वाभाविक है। जैव विविधता से भरपूर व प्रदेश में अपनी अलग ही पहचान रखने वाला सीतामाता अभयारण्य में पाई जाने वाली बहुपयोगी व दुर्लभ जड़ी-बूटियों व औषधीय पेड़ों पर संकट खड़ा हो गया है। अभयारण्य में अवैध रूप से धड़ल्ले से हो पेड़ों की कटाई, अतिक्रमण आदि के चलते औषधीय पादप व पेड़ कम होते जा रहे हैं। आने वाले दिनों में अगर यही हाल रहा और इन पर अंकुश नहीं लगाया गया तो वो दिन दूर नहीं, जब बहुपयोगी औषधियों का अथाह भण्डार संकीर्ण हो जाएगा। कम हो रहा वनाच्छादित क्षेत्र
कांठल की आबोहवा और भौगोलिक स्थितियों के कारण यहां वनच्छादित इलाका भरपूर है। जो प्रदेश में उदयपुर के बाद दूसरे स्थान पर है। प्रदेश का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 3 लाख 42 हजार 239 वर्ग किलोमीटर है। इसमें से 16 हजार 572 वर्ग किलोमीटर में वनक्षेत्र है। वहीं वनाच्छादित क्षेत्र 4.84 प्रतिशत ही है। जबकि उदयपुर का वनाच्छादित क्षेत्र 23.58 प्रतिशत है। जबकि प्रतापगढ़ में कुल भौगोलिक क्षेत्र 4 हजार 495 वर्ग किलोमीटर है। इसमें से एक हजार 44 वर्ग किलोमीटर वनाच्छादित क्षेत्र है, जो 23.47 प्रतिशत है। लेकिन फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की सर्वे रिपोर्ट में प्रतापगढ़ जिले के वनाच्छाति क्षेत्र में कमी बताई गई है। जो गत वर्षों की तुलना में करीब 48 वर्ग किलोमीटर कम बताई गई है। वहीं प्रदेश में 466 वर्ग किलोमीटर वनाच्छादित क्षेत्र बढ़ा हुआ बताया गया है।कर रहेे है सामूहिक प्रयास
&जिले में जंगल से अवैध कटाई को लेकर वन विभाग की ओर से समय-समय पर कार्रवाई की जाती है। जंगल में अतिक्रमण भी एक बड़ी समस्या है। इसके लिए हम प्रयास कर रहे है। इसके साथ ही जनप्रतिनिधियों को भी कटाई को लेकर आगे आना होगा। इससे ही जंगल बच सकेगा। जंगल बढ़ाने के लिए हम प्रति वर्ष पौधरोपण करते है। वहीं अब विभाग की ओर से स्थानीय पौधों को अधिक लगाने के लिए प्रयास कर रहे है। - सुनीलकुमार, उपवन संरक्षक, प्रतापगढ़.संरक्षण को लेकर उदासीनता
सीतामाता अभयारण्य प्रदेश में जैव विविधता के लिहाज से अलग ही पहचान रखता है। लेकिन जनप्रतिनिधियों, सरकार व विभाग की उदासीनता के चलते यहां जैव विविधता पर खतरा मण्डराने लगा हंै। यहां पाई जाने वाली कई औषधीय पादप, पेड़ आदि कम होने लगे हैं। इसके लिए विभाग ने भी सूची तैयार की है। जिसमें बताया गया समय रहते इनका संरक्षण किया जाना आवश्यक है।
होने लगा पर्यावरण पर असर
गत वर्षों से पेड़ों की हो रही अंधाधुंध कटाई के कारण काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। इससे पेड़ों की कमी होने से जहां हरियाली कम हो रही है। वहीं पर्यावरण प्रभावित होता जा रहा है। इसका अपर जैव विविधता पर पडऩे लगा है। जहां एक तरफ वन्यजीवों का अस्तित्व पर संकट होता जा रहा है। जहां मौसम बदलने लगा है। ग्लोबल वार्मिंग प्रभावित हो गया है। गर्मी बढ़ रही है। बारिश भी बेमौसम होने लगी है। इसके साथ ही मौसम परिवर्तन भी इसका कारण बन रहा है।