
अयोध्या में राम मंदिर
प्रयागराज. इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता व संविधानविद ए.एन.त्रिपाठी ने अध्यादेश लाकर राम मंदिर बनाने की मांग को असंवैधानिक एवं हास्यास्पद करार दिया है। उन्होंने कहा कि कि 42वें संविधान संशोधन के बाद संविधान की प्रस्तावना में पंथ निरपेक्षता शब्द जोड़ा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने केशवानंद भारती व एस.आर.बोम्मई केस में प्रस्तावना में शामिल पंथ निरपेक्षता के सिद्धान्त को संविधान का मूलभूत ढांचा करार दिया है। इस फैसले के कारण संसद को भी संविधान के मूलभूत ढांचे में कानून लाकर बदलाव करने का अधिकार नहीं है। कोई भी पंथ निरपेक्ष सरकार धार्मिक संस्था के लिए कानून बनाकर जमीन नहीं दे सकती।
ए.एन.त्रिपाठी ने कहा कि जन्म भूमि के विवादित 2.77 एकड़ भूमि के अलावा आसपास की अधिग्रहित भूमि बिना कानून बनाये एक अधिससूचना के जरिए किसी संस्था, प्राधिकरण या ट्रस्ट को दे सकती है किन्तु जिस विवादित जमीन के स्वामित्व का विवाद सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, सरकार कानून बनाकर उस मुकदमे को व्यर्थ नहीं कर सकती। फैसला होने के बाद सरकार को यह जमीन भी कानून के तहत अधिग्रहीत करने का अधिकार है।
उन्होंने कहा कि 1993 के कानून की धारा 3 (4) स्वामित्व वाद को खत्म करना असंवैधानिक है। कोर्ट के पुनर्विलोकन की शक्ति नहीं छीनी जा सकती। विवादित जमीन की यथास्थिति बनाये रखने का आदेश है और सुप्रीम कोर्ट ने रिसीवर नियुक्त किया है। त्रिपाठी ने कहा कि पंथ निरपेक्ष सरकार को धार्मिक निर्माण के लिए जमीन अधिग्रहीत करने का अधिकार नहीं है, किन्तु सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण के लिए सरकार जमीन ट्रस्ट या संस्था को दे सकती है।
BY- Court Corrospondence
Published on:
30 Oct 2018 11:07 pm
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