
अघोरी साधु भगवान शिव के अघोर रूप की उपासना करते हैं। नागा साधु भगवान शिव और वैराग्य के प्रतीक होते हैं।

अघोरी साधु मुख्यतः श्मशान घाट और निर्जन स्थानों पर साधना करते हैं, जहां वे शमशान की भस्म और वर्जित चीजों का उपयोग करते हैं। नागा साधु आमतौर पर पर्वतीय क्षेत्रों, अखाड़ों और कुंभ मेले में रहते हैं, जहां वे सामूहिक रूप से तपस्या करते हैं।

अघोरी साधु काले वस्त्र पहनते हैं और चिता की भस्म और मानव खोपड़ी का उपयोग करते हैं। नागा साधु नग्न होते हैं और उनके शरीर पर भस्म और जटा होती है, साथ ही वे त्रिशूल भी रखते हैं।

अघोरी साधु समाज से दूर रहते हैं और अकेले साधना करते हैं, उनका जीवन अत्यधिक रहस्यमयी और अलग होता है। नागा साधु संगठित समूहों में रहते हैं, वे अखाड़े में रहते हुए सामूहिक रूप से तपस्या करते हैं।

अघोरी साधु शमशान साधना, वर्जित चीजों का उपयोग और कठोर तंत्र-मंत्र साधना करते हैं। नागा साधु कठोर तपस्या, निर्वस्त्र रहकर साधना करते हैं, और वे शिव की भक्ति में लीन रहते हैं।

अघोरी साधु का दृष्टिकोण अत्यधिक उग्र और बिना किसी सामाजिक बंधन के होता है, वे मृत्यु और जीवन के पारंपरिक विचारों को नकारते हैं। नागा साधु का दृष्टिकोण अधिक शांति और आत्मनिर्भरता की ओर होता है, वे मोक्ष प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या करते हैं।