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42 साल तक हत्या के जुर्म में रहे बंद, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आरोपियों को किया बरी

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सजा को रद्द करते हुए आरोपियों को बरी करने का आदेश दिया है। मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि जिन आरोपों के लिए उन्हें दोषी ठहराया गया है। वे जमानत पर थे। इसीलिए सीआरपीसी की धारा 437 ए केप्रावधानों के अनुपालन के अधीन आत्मसमर्पण करने की आवश्यकता नहीं है।

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42 साल तक हत्या के जुर्म में रहे बंद, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आरोपियों को किया बरी

42 साल तक हत्या के जुर्म में रहे बंद, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आरोपियों को किया बरी

प्रयागराज: हत्या के जुर्म में 42 साल तक जेल में बंद रहे आरोपियों को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बरी कर दिया है। 42 साल पहले ही जौनपुर कोतवाली के अंतर्गत हुई हत्या के मामले में निचली अदालत द्वारा आरोपियों के खिलाफ आजीवन कारावास सजा सुना दी थी। मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सजा को रद्द करते हुए आरोपियों को बरी करने का आदेश दिया है। मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि जिन आरोपों के लिए उन्हें दोषी ठहराया गया है। वे जमानत पर थे। इसीलिए सीआरपीसी की धारा 437 ए केप्रावधानों के अनुपालन के अधीन आत्मसमर्पण करने की आवश्यकता नहीं है। जारी हुए गैर जमानती वारंट को भी निष्पादित करने की आवश्यकता नहीं है। कोर्ट ने मामले में अभियुक्तों को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया।

मामले में सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति शमीम अहमद की खंडपीठ ने राम औतार व अन्य की आपराधिक अपील को स्वीकार करते हुए दिया है। जिला न्यायालय ने राम औतार, राम पाल, पन्ना लाल और राम चंद्र उर्फ बिशुन चंद को आरोपी बनाया गया था। निचली अदालत ने आईपीसी की धारा 302 और 323 केतहत दोषी पाते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई दी। इसी फैसला को लेकर याची राम औतार ने निचली अदालत से हाईकोर्ट में चुनौती दी।

गवाहों के बयान में दिखा बदलाव

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले में सुनवाई करते हुए गवाहों के बयान पर संदेह जताया और कहा कि घटना जिस दुकानदार के सामने हुई उसकी कोई जांच नहीं की गई। तभी न्यायालय कमी पाया और कहा कि गवाहों के बयान भी आपस में मेल नहीं खा रहे और मेडिकल रिपोर्ट से उसका सामंजस्य नहीं बैठता। कोर्ट ने कहा कि ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अभियोजन पक्ष और प्रतिवादियों के बीच पहले से दुश्मनी रहीं और उन्होंने ट्रक से हुई दुर्घटना को हत्या में आरोपित कर दिया।

यह भी पढ़ें: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा न्याय केवल अभियुक्त के लिए नहीं बल्कि पीड़ित के साथ भी न्याय होना चाहिए

1980 में दर्ज था मुकदमा

मामले में बाबू नंदन ने अपने भाई राम हरख की हत्या में राम औतार उर्फ बिशुन दयाल, राम पाल, पन्ना लाल और राम चंद्र के खिलाफ पांच जनवरी 1980 में कोतवाली थाने में एफआईआर दर्ज कराई थी।