न्यायमूर्ति पंकज मित्तल एवं न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव की खंडपीठ के समक्ष दाखिल याचिका में कहा गया है कि याची के पति अभिषेक मिश्र मीडिया कर्मी थे। गत 01 मार्च 2016 को उनकी हत्या कर दी गई थी। पति की मौत के बाद पत्नी एवं दो बच्चियों के भरण-पोषण हेतु आर्थिक सहायता के लिए मुख्यमंत्री यूपी को कई पत्र भेजे गये।
मुख्यमंत्री कार्यालय ने याची के प्रार्थना पत्र के निस्तारण हेतु जिलाधिकारी इलाहाबाद से आख्या मांगी । जिलाधिकारी इलाहाबाद ने 25 दिसम्बर 2016 को प्रेषित आख्या में कहा गया है कि प्रकरण की जांच के बाद मीडियाकर्मी अभिषेक मिश्र की मृत्यु हो जाने के कारण उनकी पत्नी प्रभा मिश्रा आर्थिक सहायता पाने योग्य है।
25 दिसम्बर 2016 के बाद 28 फरवरी 2018 को फिर जिलाधिकारी इलाहाबाद द्वारा अनुसचिव मुख्यमंत्री कार्यालय उ0प्र0 शासन, लखनऊ को भेजी गई आख्या में कहा गया है कि प्रभा मिश्रा की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। उनकी 9 एवं 4 वर्षीय पुत्रियां अनाथ हो गई है। जिनके भरण पोषण हेतु मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से आर्थिक सहायता दिये जाने की संस्तुति की गई है।
अधिवक्ता कमल कृष्ण राय ने कहा कि याचिकाकर्ता प्रभा मिश्र ने इस संबंध में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री से लेकर सभी संबंधित अधिकारियों को दर्जनों बार भेजे गये पत्रों पर कोई कार्यवाही न किये के कारण उच्च न्यायालय में वाद दाखिल किया गया। उच्च अधिकारियों की संस्तुति के बावजूद भुगतान न होने पर न्यायालय ने भुगतान संबंधी जानकारी मांगी है। सरकारी अधिवक्ता ने न्यायालय में बताया कि याचिकाकर्ता के भेजे गये प्रार्थना पत्रों को स्वीकृत किया जा चुका है। पीड़ित याचिकाकर्ता को भुगतान दिये जाने की कार्यवाही की जा रही है। इस मामले में न्यायालय ने शीघ्र भुगतान संबंधी कार्यवाही की प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हत्या के अपराध में बरेली जेल में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे मुकर्रम उर्फ़ बाबू की सजा के खिलाफ 20 साल बाद जेल अपील दाखिल करने पर जेल अधीक्षक बरेली को कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा है कि इस तरह से कैजुअल तरीके से अपील दाखिल करने से उत्पन्न होने वाली तमाम औपचारिकताओं के चलते न्याय दिलाने का उद्देश्य विफल हो जायेगा।
यह आदेश न्यायमूर्ति नाहिद आरा मुनीस तथा न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता की खंण्डपीठ ने दिया है। मुकर्रम को हत्या का दोषी करार देते हुए अपर सत्र न्यायाधीश बिजनौर ने आजीवन कारावास की सजा 2 फरवरी 1998 को सुनाई थी। जिसके खिलाफ जेल अपील 60 दिन में दाखिल की जानी थी। लेकिन 7070 दिन यानी 20 साल देरी से बिना कारण बताए 2018 में बरेली केंद्रीय कारागार अधीक्षक ने सजा के खिलाफ अपील हाईकोर्ट को औपचारिकताएं पूरी किये बगैर भेज दी,.जिस पर कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की है।