
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा- सरकारी अधिकारियों को अवैध आदेश पारित करने के लिए मजबूर करना खेदजनक स्थिति
प्रयागराज: एक मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य के जनप्रतिनिधियों द्वारा सरकारी अधिकारियों को अवैध आदेश पारित करने के लिए मजबूर करना खेदजनक स्थिति है। कोर्ट ने कहा कि सरकारी अधिकारी भी बिना किसी आपत्ति के जनप्रतिनिधियों के गलत आदेशों का पालन करते हैं। मामले में यह सख्त टिप्पणी देते हुए न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने बस्ती के मदरसा दारुल उलूम अहले सुन्नत बदरुल उलूम में प्रधानाचार्य के पद पर कार्यरत रहे बशरत उल्लाह की याचिका को स्वीकार करते हुए की है।
मामले में याची की ओर से तर्क दिया गया वर्ष 2019 में मदरसे में प्रधानाचार्य के पद पर नियुक्त किया गया था। उसने नियुक्ति से पहले गोंडा के दारुल उलूम अहले सुन्नत मदरसे में सहायक अध्यापक के रूप में पांच वर्ष अध्यापन कार्य किया था। जिसके अनुभव के आधार पर उसे प्रधानाचार्य के पद पर नियुक्ति दी गई थी।
डेढ़ साल पहले उसके खिलाफ की गई एक शिकायत के आधार पर जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी द्वारा उसके अनुभव प्रमाण पत्र की जांच भी की गई थी। जिसमें आरोप निराधार साबित हुए। इसके बाद तत्कालीन विधायक संजय प्रताप जायसवाल व तत्कालीन श्रम एवं रोजगार मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य द्वारा मुख्यमंत्री को भेजे गए पत्र के आधार पर शासन के विशेष सचिव ने उसके अनुमोदन को रद्द कर दिया था।
यह आदेश न्यायमूर्ति सैयद आफताब हुसैन रिजवी ने मुनीशा खटवानी की याचिका पर दिया है। टीवी सीरियल के अभिनेता करन मेहरा ने अभिनेत्री सहित चार लोगों के खिलाफ शिकायत की थी। गौतमबुद्धनगर की अदालत ने मामले में सुनवाई कर मुनीशा खटवानी सहित सभी चारों लोगों को सम्मन जारी किया है। जिसके बाद यह याचिका की गई। कोर्ट ने विपक्षियों को नोटिस जारी कर उनसे याचिका पर जवाब मांगा है।
Published on:
09 Jun 2022 03:06 pm
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