
इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद. हाईकोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के 4 असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्ति रद्द कर दी है। इन्हें जिस पद का विज्ञापन किया गया था, उससे इतर पद पर नियुक्त किया गया था। कोर्ट ने विश्वविद्यालय को नियमानुसार नये सिरे से नियुक्ति की छूट दी है।
यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल तथा न्यायमूर्ति इफ़ाक़त अली की खंण्डपीठ ने कमाल उल्लाह की याचिका पर दिया है। कोर्ट ने याची को भी कोई राहत नहीं दी है।और कहा है कि टर्म खत्म होने के बाद याची को गेस्ट लेक्चरर के पद पर कार्य करने का अधिकार नहीं है । कोर्ट ने कार्य करने देने का निर्देश देने से इंकार कर दिया है।
मालूम हो कि कई विभागों के विभिन्न पदों का विज्ञापन निकाला गया । सांख्यिकी एवं ऑपरेशन रिसर्च विभाग मे भी पद विज्ञापित थे। याची सहित विपक्षियों ने एसोसिएट प्रोफेसर पद पर अर्जी दी थी ।योग्य अभ्यर्थी न मिलने के कारण चयन समिति ने असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर चार लोगों को चयनित कर लिया, जिसे चुनौती दी गयी थी।
कोर्ट ने कहा है कि विश्वविद्यालय की परिनियमावली में ऐसा कोई नियम नहीं है जिससे चयन समिति को विज्ञापित पद से नीचे के पद पर चयन करने का अधिकार मिला हो। ऐसे पद को विज्ञापित ही नहीं किया गया और समिति ने चयन कर लिया ।इस चयन को नियमानुसार नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने याचिका आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया है ।
प्राइमरी स्कूलों के टीचरो व स्टॉफ का डेटा देने के लिए विभाग ने मांगा और समय
इलाहाबाद हाईकोर्ट में हाजिर बेसिक शिक्षा परिषद के सचिव ने मांगी गयी जानकारी उपलब्ध कराने के लिए समय मांगा है। कोर्ट ने 26 जुलाई को पूरी जानकारी के साथ हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने पूछा था कि क्या बेसिक स्कूलों के स्टाफ व शिक्षकों के स्वीकृत पदों का डाटा उपलब्ध है, यदि नहीं है तो कितने दिन में डाटा तैयार कर लेंगे और उसे बेवसाइट पर अपलोड कर देंगे।
कोर्ट ने यह भी पूछा था कि क्या अध्यापकों के खाली पदों को भरने की अनुमति लेने के बजाय स्वतः पद भरने का सिस्टम बनाया जा सकता है, ताकि छात्रों को सत्र शुरू होते ही शिक्षक मिल सके। क्या ऐसा सिस्टम नहीं बन सकता जिससे अध्यापकों की भर्ती अनुमोदन में देरी के लिए जिम्मेदार अधिकारी पर अर्थदंड लगाया जा सके।
यह आदेश न्यायमूर्ति एस पी केशरवानी ने प्रबन्ध समिति नागेश्वर प्रसाद पी एम वी स्कूल देवरिया की याचिका पर दिया है। याचिका की अगली सुनवाई 26 जुलाई को होगी।
शर्बत रूह अफजा पर 12.50 फीसदी टैक्स लगाना उचित : हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मेसर्स हमदर्द (वक्फ) लेबोरेट्रीज के शर्बत रूह अफज़ा पर टैक्स मामले में कहा है कि यह फ्रूट ड्रिंक फ्रूट जूस नहीं है और यह फ्रूट प्रोसेसिंग से बना भी नही है। यह चीनी युक्त सीरप/शर्बत मात्र है, इसलिए इस पर 4 फीसदी के बजाय 12.5 फीसदी टैक्स लगाना उचित है। कोर्ट ने रूह अफज़ा को शर्बत मानते हुए साढ़े 12 फीसदी टैक्स लगाने के अधिकरण के आदेश को वैध करार दिया है और हमदर्द कम्पनी की पुनरीक्षण याचिकाओं को ख़ारिज कर दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति एस पी केशरवानी ने गाजियाबाद की मेसर्स हमदर्द वक्फ लैबोरेट्रीज कम्पनी की 22 याचिकाओं को एक साथ तय करते हुए दिया है। याची कम्पनी का कहना था कि शर्बत रूह अफज़ा फल से बना है, इसलिए उसपर 4 फीसदी टैक्स लगना चाहिए। किन्तु कामर्शियल टैक्स अधिकरण ने इसे फ्रूट प्रोडक्ट नही माना और कहा कि सिंथेटिक व चीनी से निर्मित होने के नाते यह शर्बत है और फल से बना न होने के कारण टैक्स छूट की श्रेणी का प्रोडक्ट नही है। इसलिए इस पर साढ़े बारह फीसदी टैक्स लगाने उचित है।
BY- Court Corrospondence
Published on:
09 Jul 2018 10:55 pm
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