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नगीना सांसद चंद्रशेखर ‘रावण’ को हाईकोर्ट से राहत, मामला दोबारा सहारनपुर कोर्ट में भेजा गया

नगीना से सांसद और भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आज़ाद 'रावण' को इलाहाबाद हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने उनके खिलाफ दर्ज पुराने आपराधिक मामले में सहारनपुर की निचली अदालत द्वारा खारिज की गई डिस्चार्ज अर्जी को लेकर अहम फैसला सुनाया है।

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Chandrashekhar 'Ravan' gets relief: नगीना से सांसद और भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आज़ाद 'रावण' को इलाहाबाद हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने उनके खिलाफ दर्ज पुराने आपराधिक मामले में सहारनपुर की निचली अदालत द्वारा खारिज की गई डिस्चार्ज अर्जी को लेकर अहम फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को निरस्त करते हुए मामले को पुनः नए सिरे से विचार के लिए सहारनपुर की अदालत को वापस भेज दिया है।

जस्टिस समीर जैन की एकलपीठ में हुई सुनवाई

यह सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति समीर जैन की एकलपीठ में हुई। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि चंद्रशेखर की ओर से दाखिल डिस्चार्ज अर्जी को खारिज करने के निर्णय पर फिर से विचार किया जाए।

क्या है पूरा मामला?

चंद्रशेखर आज़ाद के खिलाफ यह मामला वर्ष 2017 का है।
9 मई 2017 को सहारनपुर के कोतवाली देहात थाना क्षेत्र में उनके खिलाफ बिना अनुमति सभा आयोजित करने, हिंसा भड़काने और आगजनी जैसे गंभीर आरोपों में एफआईआर दर्ज की गई थी।

इस मामले में 10 मार्च 2025 को सहारनपुर की एसीजेएम (ACJM) कोर्ट ने चंद्रशेखर की डिस्चार्ज एप्लिकेशन को खारिज कर दिया था, जिसके खिलाफ उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।

16 जुलाई को हुई थी पिछली सुनवाई

इस मामले में हाईकोर्ट ने 16 जुलाई 2025 को पिछली सुनवाई की थी, जिसमें चंद्रशेखर के वकील ने याचिका में संशोधन करने के लिए कोर्ट से समय मांगा था। कोर्ट ने यह आग्रह स्वीकार करते हुए अगली सुनवाई की तारीख 25 जुलाई तय की थी।

अब आगे क्या?

हाईकोर्ट के निर्देश के बाद अब यह मामला एक बार फिर से सहारनपुर की अदालत में विचार के लिए जाएगा। वहां निचली अदालत को यह तय करना होगा कि चंद्रशेखर आज़ाद को मामले से डिस्चार्ज किया जाए या नहीं।

राजनीतिक और कानूनी दृष्टि से अहम मामला

यह मामला सिर्फ एक आपराधिक केस नहीं बल्कि राजनीतिक दृष्टि से भी बेहद अहम है। चंद्रशेखर आज़ाद 'रावण' दलित राजनीति का उभरता चेहरा हैं और नगीना से सांसद चुने जाने के बाद उनकी गतिविधियों और मुकदमों पर देशभर की नजरें टिकी रहती हैं। हाईकोर्ट के इस फैसले को उनके लिए एक कानूनी राहत और राजनीतिक संबल के रूप में देखा जा रहा है।