
विश्व कठपुतली दिवस पर धनंजय चोपड़ा ने लोक माध्यम शोध अकादमी में आयोजित हुए एक इवेंट में ‘भारतीय कठपुतली कला’ पर ढेरों बातें बताई।
धनंजय चोपड़ा ने कहा कि कुछ बरस पहले, अदिवासियों पर एक अध्ययन में झारखंड में रहने वाले संथाल समुदाय के कठपुतली कलाकारों से रू-ब-रू होने का मौका मिला। इन कलाकारों की कठपुतली कला ‘चादर-बादर’ कहलाती है। इस कला की खास बात यह होती है कि इसमें कठपुतलियों के छोटे रूप को संथाली शिल्पकारों द्वारा लकड़ियों पर उकेर कर बनाया जाता है और उनकी गतियों को बहुत ही अद्भुत ढंग से लीवर मेकेनिज्म (यांत्रिकी) से संचालित किया जाता है। और यह सबकुछ एक सुर-लय-ताल में होता है। यही वजह है कि मैं इस कला को ‘देशी एनिमेशन’ कहने में कोई गुरेज नहीं करता।
उन्होंने कहा कि इतिहास गवाह है कि चेक गणराज्य के लोगों ने कठपुतली को सत्ता के विरोध में प्रयोग करके यह जता दिया था कि कठपुतलियां बोलकर देश-दुनिया में बदलाव की बयार बहा सकती हैं। डॉ. चोपड़ा ने भारत की कई प्रकार की कठपुतलियों के प्रदर्शन का वीडियो दिखाकर उनके संबंध में जानकारी दी और कहा कि इस कला को बढ़ावा देने का हर संभव प्रयास करना चाहिए। प्रारंभ में अकादमी के मीडिया कोआर्डिनेटर सचिन मेहरोत्रा ने सभी का स्वागत किया। इस अवसर अकादमी के कार्यकारिणी और बड़ी संख्या में मीडिया के विद्यार्थी और विभन्न विषयों के शोधार्थी उपस्थित थे।
Published on:
21 Mar 2024 10:28 pm
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