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प्रयागराज. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बिंदेश्वरी इंटर कालेज खंडोरा तहसील फूलपुर जिला आजमगढ़ की प्रबंध समिति कि याचिका खारिज कर दी है। याचिका द्वारा जिलाधिकारी के उस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसके तहत गांव सभा की जमीन पर गलत तरीके से कालेज का नाम दर्ज होने को दुरुस्त कर दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि याची कालेज ऐसा कोई साक्ष्य नहीं दे सका कि वह जमीन का स्वामी है। कथित जमींदार द्वारा कालेज के नाम दान में दी गई जमीन का दस्तावेज पंजीकृत नहीं है। ऐसे में उसका कोई कानूनी महत्व नहीं है।
यह आदेश न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्र ने कालेज की प्रबंध समिति की याचिका पर दिया है। याची का कहना है की खंडोरा गांव में 9.9320 हेक्टेयर जमीन पर पिछले 70 सालों से कालेज चल रहा है। कालेज की स्थापना 1947 में प्राइमरी स्कूल के रूप में की गई थी। बाद में 13 नवंबर 1949 में जूनियर हाईस्कूल की मान्यता दी गई और 1959 में इसे हाई स्कूल, इंटरमीडिएट कालेज का दर्जा दिया गया। याची का कहना है कि यह जमीन 8 अगस्त 1951 को जमींदार ने कालेज के नाम दी थी।
1983 में चकबंदी भी हुई किंतु राजस्व पत्रावली पर कालेज का ही नाम दर्ज रहा। 21 मई 2018 की एक रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए जिलाधिकारी ने इस भूमि को गांव सभा की भूमि मांगते हुए कालेज के स्थान पर गांव सभा का इंद्राज कर दिया। यह जमीन असर, बंजर व जंगल के रुप में राजस्व विभाग में दर्ज की गई है। इससे पहले कोर्ट ने डीएम को कालेज को सुनकर नए सिरे से फैसला लेने का आदेश दिया था। जिलाधिकारी ने अपने पुराने आदेश को ही बहाल रखा। इस आदेश को चुनौती दी गई और कहा गया कि लंबे समय से कालेज जमीन पर काबिज है। यदि राजस्व पत्रावली में नाम परिवर्तन किया जाता है तो यह स्वामित्व निर्धारण होगा। भूमि के स्वामित्व का निर्धारण का अधिकार अदालत को है। जिलाधिकारी को इस संबंध में कोई क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है। दूसरी तरफ गांव सभा के अधिवक्ता का कहना था कि याची ने राजस्व पत्रावली में धोखाधड़ी से अपना नाम दर्ज कराया। ऐसे दर्ज नाम को दुरुस्त करने का उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा 38 के अंतर्गत जिलाधिकारी को अधिकार है।
कोर्ट ने कहा यदि जमींदार द्वारा जमीन दान में देने की बात मान भी ली जाए, तो वह दस्तावेज पंजीकृत नहीं है। जो कानून स्वीकार करने योग्य नहीं है। कोर्ट ने भी कहा कि देखने से लगता है कि दस्तावेज पर हस्ताक्षर एक ही व्यक्ति द्वारा किए गए हैं। दस्तावेज सही नहीं लगता। कोर्ट ऐसे दस्तावेज पर विचार नहीं कर सकती। कोर्ट ने जिलाधिकारी के आदेशों को सही माना और कहा कि गलत रूप से दर्ज प्रविष्टि को दुरुस्त करने का उसे अधिकार है। कोर्ट ने दोनों याचिकाएं खारिज कर दी।
By Court Correspondence
Published on:
05 Nov 2019 09:40 am
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