
एसएटी एक्ट
प्रयागराज. पिछले दिनों SC/ST Act को लेकर जो हल्ला मचा उसके पीछे एक बड़ी वजह मुकदमों में झूठा फंसाए जाने का डर भी था। जब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पूर्व की ही तरह एक्ट पास किया तो इसका यह कहकर विरोध हुआ कि इसका इस्तेमाल गलत मुकदमों में झूठा फंसाए जाने के लिये ज्यादा होता है। पर अब शायद ऐसा न हो पाए, कम से कम यूपी में तो बिल्कुल नहीं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक याचिक पर सुनवाई करते हुए साफ कर दिया है कि अगर SC/ST Act के तहत अपराध न कारित हो रहा हो तो एफआईआर में एस एक्ट की धारा का उल्लेख न किया जाए। इतना ही नहीं कोर्ट ने यूपी के डीजीपी को निर्देश दिया है कि वह इस आशय का एक सर्कुलर जारी कर पुलिस को आदेश दे कि ऐसा न हो सके।
कोर्ट ने मुजफ्फरनगर के चर्थवाल थाने में दर्ज प्राथमिकी के तहत याचियों की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है और शिकायतकर्ता को नोटिस जारी कर राज्य सरकार सहित विपक्षी से एक माह में याचिका पर जवाब मांगा है।याचिका की सुनवाई 25 जनवरी को होगी।
यह आदेश न्यायमूर्ति बी के नारायण तथा न्यायमूर्ति एस के सिंह ने नीरज कुमार मिश्र व् 3 अन्य की याचिका पर दिया है। याची का कहना है कि दण्ड संहिता की धाराओं के तहत अपराध में 7 साल से अधिक की सजा नही हो सकती। एस सी एस टी एक्ट की धारा 3(1) व 3 (2) (1) के तहत प्राथमिकी के आरोपों से कोई अपराध बनता ही नहीं। इस एक्ट के तहत अपराध का कोई आरोप ही नहीं है। ऐसे में उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने तर्कों में बल मानते हुए विचारणीय माना हैऔर याचिका पर जवाब तलब किया है।
By Court Correspondence
Published on:
23 Dec 2018 09:09 am
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