
आरोपी को सम्मन जारी करने के लिए आरोपों का निर्धारण जरूरी नहीं - इलाहाबाद हाईकोर्ट
प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि आरोपित को सम्मन जारी करने के लिए आरोपों की सत्यता का निर्धारण करना जरूरी नहीं है। मामले में यह आदेश न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने मेरठ के पंकज त्यागी की मजिस्ट्रेट के समन आदेश के खिलाफ याचिका को खारिज करते हुए दिया है । मामले के अनुसार धारा 156(3) सीआरपीसी के तहत पीड़िता ने सितंबर 2014 में न्यायिक मजिस्ट्रेट-तृतीय , मेरठ के समक्ष एक आवेदन दाखिल किया। आरोप लगाया था कि 27 अगस्त 2014 को जब वह अपने कमरे में सो रही थी, तब आरोपी उसके कमरे में घुसकर उस पर टूट पड़ा था और जबरन उसके साथ दुष्कर्म करने का प्रयास किया था। पीड़िता के चीखने-चिल्लाने पर उसकी मां जाग गई और आरोपी को पकड़ लिया। हालांकि वह गाली-गलौज कर मां से मारपीट कर फरार हो गया। उसने भागते हुए यह धमकी दी कि यदि पीड़िता ने यौन संबंध नहीं बनाया तो उस पर तेजाब से हमला कर देगा।
न्यायिक मजिस्ट्रेट- तृतीय , मेरठ ने थाना प्रभारी को एफआईआर दर्ज कर विवेचना करने का निर्देश दिया और एफआईआर दर्ज कर ली गई। पुलिस की चार्जशीट पर सीजेएम मेरठ ने संज्ञान लिया और आरोपी को सम्मन जारी किया। जिसे चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने कहा कि हालांकि सम्मन आदेश को रद्द करने की शक्ति का प्रयोग संयम से और सावधानी के साथ अपवाद स्वरूप किया जाना चाहिए। अदालत आरोपों की विश्वसनीयता या वास्तविकता के बारे में कोई जांच शुरू नहीं कर सकती है। यह विचारण के समय पेश सबूतों पर तय होगा।
कोर्ट ने कहा कि अपराध का संज्ञान लेना विशेष रूप से मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र में आता है और इस स्तर पर, मजिस्ट्रेट को मामले के गुण-दोष में जाने की आवश्यकता नहीं है। अदालत ने कहा, "आरोपों की वास्तविकता या सत्यता का निर्धारण आरोपी को तलब करने के स्तर पर भी नहीं किया जा सकता है। कहा कि आवेदक के खिलाफ प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध बनता है।
Updated on:
22 Mar 2022 12:39 pm
Published on:
22 Mar 2022 12:38 pm
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