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सत्तर बरस की उम्र तक पैसठ बार जेल गया यह नेता ,जनता से पूछा बताओ क्या कमी रह गई

माँ को नही दे सका आखिरी कंधा ,आन्दोलन के चलते जाना पड़ा था जेल

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leader Vinod Chandra went 65 time jail

जानिए सत्तर बरस की उम्र तक पैसठ बार जेल गया यह नेता

इलहाबाद:प्रदेश और देश की राजनीति में अपना अहम स्थान रखने वाले इस शहर के राजनितिक घरानों और नेताओं को देश भर में बड़ी पहचान मिली है। लेकिन कुछ ऐसे भी नेता रहे है।जिन्हें जनता ने सम्मान तो बहुत दिया लेकिन राजनीत में खुद को स्थापित ना कर सके। सूबे के विधानसभा चुनाव के बाद नगर निकाय चुनाव में हुई हार जीत की समीक्षा में जुटे राजनीतिक पंडितों के बीच समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी रहे विनोद चंद्र दुबे की चर्चा अब भी सबसे ज्यादा है।भले की निकाय चुनाव में जनता ने उन्हें स्वीकार नही किया हो।लेकिन उनके हारने की शिकायत और सवाल लोगो की जुबान पर है। प्रदेश की राजनीत में सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के करीबी रहे विनोद चन्द्र दुबे ऐसे नेता है।जो लोहिया के आन्दोलन से लेकर मुलायम की राजनितिक पराकाष्ठा को भी देखा है लेकिन जब जब जनता के बीच आए उन्हें मात ही मिली। शहर की राजनीत पर नजर रखने वाले दिग्गजों की बैठको में यह सवाल है की विनोद चंद्र दुबे चुनाव क्यों हार गए।इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष रहे विनोद चंद्र पर लोहिया की अमिट छाप रही।और छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्रा की बेहद करीबी रहे।

विनोद चंद्र दुबे को समाजवादी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने महापौर प्रत्याशी बनाया।समाजवादी नेताओं के अलावा शहरी लोगों में भी एक सही प्रत्याशी के चयन का उत्साह था। लेकिन परिणाम इस कदर आया कि समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी की जमानत भी नहीं बच सकी।बिनोद चंद दुबे अपने हर चुनावी मंच से यह कहना नहीं भूलते थे,कि मेरा आखिरी चुनाव है।मेरा समर्थन कीजिए मैं शहर का विकास करना चाहता हूं।इस मिट्टी का कर्ज है मुझ पर उसको चुकाना चाहता हूं। विनोद चंद्र दुबे के जातीय समीकरण और उनका लोगो के लोकप्रिय होना सपा के लिए प्लस था।समाजवादी पार्टी का अपना जातिगत वोट के अलावा विनोद चंद्र के ब्राह्मण होने से यह माना जा रहा था।कि प्रत्याशी कोई भी होगा,लेकिन टक्कर कांटे की होगी।लेकिन बीच में ही भारतीय जनता पार्टी के बागी विजय मिश्रा ने कांग्रेस का दामन थाम कर ब्राह्मण प्रत्याशी होने का समाजवादी पार्टी का समीकरण बिगाड़ दिया। वोटरों का एक बड़ा तबका यह अंदाज़ा नही लगा पाया।की किसका पलड़ा भारी है।

विनोद चंद्र दुबे इसके पहले भी समाजवादी पार्टी से मेयर का चुनाव लड़ चुके थे।जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।युवा छात्रनेता से लाकर 70बरस की उम्र में भी समाजवादी आंदोलन के तहत तमाम मुद्दों पर आंदोलन करते हुए।अब तक उन्हें 65 बार जेल जाना पड़ा। सोरांव विधानसभा के पूर्व विधायक सत्यवीर मुन्ना पत्रिका से बात करते हुए कहते हैं।कि राजनीत की सही समीक्षा होनी चाहिए।लोकसभा विधानसभा चुनाव में तो जीत हार राजनितिक दलों के लिये होती है। लेकिन निकाय चुनाव में शहर और अपने लोगो का विकास जुडा होता है। और ऐसे में यह सवाल लाजमी है ,की जनता का नेता जनता से समर्थन क्यों नही पाता है।और 70 साल की उम्र में 65 बार जेल जाने वाला सामाजिक नेता चुनाव हार जाता है।विनोद चन्द्र ने कभी भी समाजवादी पार्टी नही छोड़ी छात्र जीवन से लेकर अब तक सपा और लोहिया के वाहक रहे।

समाजवादी पार्टी के महापौर उम्मीदवार रहे विनोद चंद्र दुबे ने पत्रिका से बात करते हुए बताया, कि छात्र जीवन से ही आंदोलन और समाज के हित के लिए लड़ाई लड़ने का जूनून रहा।उन्होंने बताया कि मैं अपने माता-पिता की इकलौती संतान रहा।जब मेरी मां की मृत्यु हुई तो उस वक्त में जेल में था। मैं उन्हें आखिरी बार देख नही सका।मैंने अपनी माँ की अंतिम यात्रा में उन्हें कंधा नही दे सका। राजनैतिक मामलों को छोड़ कर अभी कोई मुकदमा नहीं रहा।तमाम राजनीतीक मामले रहे लेकिन वह समाज और छात्र जीवन में छात्रों के हित की लड़ाई के लिए रहा। लेकिन फिर भी जनता ने स्वीकार किया तो शायद मेरी मेहनत में कोई कमी रही हो।