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हाईकोर्ट बार का चीफ जस्टिस को पत्र,  एक जून से खुली अदालत में शुरू हो मुकदमों की सुनवाई

कहा मौजूदा हालात में संवैधानिक न्यायालयों का पूरी तरह काम करना आवश्यक

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प्रयागराज। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने एक जून से खुली अदालत में सुनवाई शुरु करने के लिए चीफ जस्टिस को पत्र लिखा है। पत्र में लॉक डाउन के दौरान अर्जेंट मुकदमों की सुनवाई और ई फाइलिंग तथा वीडियो कांफ्रेंसिंग जैसे कई मुद्दों पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। बार का मानना है कि मौजूदा व्यवस्था कारगर नहीं है और खुली अदालत मेें मुकदमों की सुनवाई तथा बहस का कोई विकल्प नहीं हो सकती है।

एसोसिएशन ने मांग की है कि मौजूदा हालात को देखते हुए कम से कम कुछ मामलों में वकीलों की भौतिक उपस्थिति की अनुमति दी जाए। जबकि अन्य मामलों को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए सुना जा सकता है। बार ने सुरक्षा के सभी उपाय अपनाते हुए खुली अदालत में सुनवाई प्रारंभ करने की मांग की है। पत्र मौजूदा अध्यक्ष राकेश पांडेय महासचिव जेबी सिंह तथा नवनिर्वाचित अध्यक्ष अमरेंद्र नाथ सिंह और नवनिर्वाचित महासचिव प्रभाशंकर मिश्र की ओर से लिखा गया है। बार एसो‌सिएशन का कहना है कि कठिन समय कठिन निर्णय लेने के लिए होते हैं। इसलिए वर्तमान परिस्थतियों में संवैधानिक अदालतों का पूरी तरह से काम करना आवश्यक है। इसलिए मौजूदा व्यवस्था पर फिर से विचार करते हुए शारीरिक और सामाजिक दूरी तथा अन्य सुरक्षा उपायों को अपनाते हुए फिर से काम शुरु किया जाए। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन का यह भी कहना है कि एक जून से ट्रेनों और हवाई जहाज से यातायात तथा अन्य तमाम आर्थिक गतिविधियों की भी छूट दी गई है। ऐसे में न्यूनतम संभव कार्य खुली अदालत में किए जाएं।

हाईकोर्ट के मौजूदा सिस्टम पर गंभीर सवाल

बार एसोसिएशन ने लॉक डाउन के दौरान मुकदमों की सुनवाई के लिए अपनाई गई व्यवस्था पर भी गंभीर सवाल उठाए हैं। कहा गया कि वीडियो कांफ्रेंसिंग की व्यवस्था सफल नहीं है । क्योंकि वकीलों को मैसेज आने के बाद भी वीडियो लिंक नहीं भेजा जा रहा है। यदि लिंक मिल भी जाता है तो कनेक्टिविटी की समस्या है। पिछले दिनों जमानत प्रार्थनापत्रों की सुनवाई के लिए की गई व्यवस्था भी सवालों के घेरे में है। बार का कहना है कि कई जमानत प्रार्थनापत्रों को एकतरफा सुनवाई में खारिज किया गया । जबकि ऐसा नहीं करने का अनुरोध था। तमाम जमानत प्रार्थनापत्रों में लंबी डेट दी जा रही है और लॉकडाउन से पूर्व जिनमें फैसला सुरक्षित था उनमें अग्रि‌म सुनवाई के लिए डेट लगा दी गई।

एक ही मामले में अर्जेंसी अर्जी स्वीकार और अस्वीकार

बार का कहना है कि अर्जेंसी एप्लीकेशन की व्यवस्था में एक रूपता नहीं है।अर्जेंसी अर्जी तय नहीं की जा रही है और अगर तय की भी जा रही हैं तो इसे तय करने का कोई निश्चित मानक दिखाई नहीं देता है क्योंकि एक ही मामले में कुछ वकीलों की अर्जेंसी एप्लीकेशन स्वीकार की जा रही है जबकि उसी तरह के मामले में अन्य वकीलों की अस्वीकार कर दी जा रही है।