
अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए कानून नहीं बना सकती संसद: मालवीय
प्रयागराज। देश के सबसे पुराने और बड़े मामले की अंतिम सुनवाई शुरू हो रही है जिसपर दुनियाभर की नजरें लगी हुई हैं। देश की सबसे बड़ी अदालत में सोमवार से अयोध्या राम मंदिर मामले की सुनवाई होगी। भाजपा, आरएसएस और उसके सहयोगी संगठन जहां जल्द से जल्द इस पर फैसला चाहते हैं, वहीं एक पक्ष ऐसा भी है जो आरोप लगाता है कि भाजपा चुनावी फायदे के लिए इस मामले को उठाती रहती है। इस बीच, भाजपा और संघ की ओर से कहा जाता है कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण संसद में कानून लाकर करना चाहिए। वहीं, कानून के जानकारों का कहना है कि मंदिर बनाने के लिए कानून संसद से नहीं बन सकता है।
हाल ही में भाजपा नेताओं की ओर से कहा गया था कि मंदिर निर्माण के लिए अदालत के फैसले का इंतजार किये बिना संसद से क़ानून बनाए जाने की जरूरत है। दूसरी ओर कानून के जानकार लोग इस मांग से सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि तमाम अधिकार हासिल होने के बावजूद संसद को मंदिर निर्माण जैसे मुद्दों पर क़ानून बनाने का अधिकार नहीं है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज और संविधान के जानकार जस्टिस गिरधर मालवीय का मानना है कि संसद मंदिर निर्माण के लिए क़ानून नहीं बना सकती। उसे ऐसा करने का अधिकार भी नहीं है, क्योंकि क़ानून बनाने के भी कुछ नियम हैं और उन नियमों के तहत कम से कम मंदिर निर्माण के लिए क़ानून तो नहीं बनाया जा सकता।
लोकसभा चुनाव के पहले आएगा फैसला
जस्टिस गिरधर मालवीय का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट की नई बेंच में सुनवाई शुरू होने के बावजूद केस का फैसला आने में ज़्यादा वक्त नहीं लगना चाहिए, क्योंकि पिछली बेंच में हुई सुनवाई के रिकार्ड फाइलों में दर्ज रहते हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि अगर पक्षकारों ने इस मामले में बेवजह की तारीख नहीं ली तो फैसला लोकसभा चुनाव से पहले भी आ सकता है।
हाईकोर्ट ने तीन हिस्सों में बांटी थी जमीन
गौरतलब है कि अयोध्या में विवादित भूमि के मालिकाना हक को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के ख्लिाफ सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है। हाईकोर्ट ने 277 एकड़ जमीन का मालिका हक तीन हिस्सों में बांट दिया था। इसमें एक हिस्सा रामलला विराजमान का, एक निर्मोही अखाड़े का और तीसरा मुस्लिम पक्ष को दिया गया था। इसके खिलाफ सभी पक्ष सुप्रीम कोर्ट गए हैं, जहां सुनवाई होनी है।
Published on:
29 Oct 2018 11:11 am
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