
Prayagraj besic shiksha school: प्रयागराज ज़िले में शिक्षा की बुनियादी तस्वीर उस समय बेहद चिंताजनक हो जाती है जब हम प्राथमिक विद्यालयों की हालत को ज़मीनी स्तर पर देखते हैं। यहां के करछना तहसील के तीन स्कूलों – पिपरांव, मुंगारी और कचरी – की स्थिति सिर्फ जर्जर नहीं, बल्कि खतरनाक और हद तक उपेक्षित है। ये वे स्कूल हैं जहां बच्चे सिर्फ किताबों में ही ‘सुरक्षित’ और ‘सुव्यवस्थित’ स्कूल देख पाते हैं, जबकि असल ज़िंदगी में वे खतरे से भरे कमरों और टूटी छतों के नीचे बैठकर भविष्य संवारने का सपना देखते हैं।
पिपरांव: टूटी छतों तले टिमटिमाते नन्हे सपने
पिपरांव का प्राथमिक विद्यालय मानो किसी खंडहर में बदल चुका है। कुल 19 बच्चे हैं, जिनकी देखरेख के लिए दो अध्यापक नियुक्त हैं – प्रधानाचार्य अंजुम फिरदौसिया और सहायक अध्यापिका प्रीति। लेकिन इन बच्चों के लिए सबसे बड़ा खतरा किताबों की कमी नहीं, बल्कि वह कमरा है जिसकी छत में बड़ा सा होल बन चुका है। कभी भी गिर सकता है, मौत बनकर। बच्चों के शौचालय के पास का प्लास्टर टेढ़ा हो चुका है और वह भी किसी दिन ढह सकता है।
विद्यालय में कायाकल्प योजना के नाम पर कुछ भी नहीं किया गया। इनवर्टर की सुविधा नहीं है, और गर्मी में बच्चे बेहाल हो जाते हैं। बारिश में स्कूल के फील्ड की कच्ची ज़मीन फिसलन बन जाती है, जिससे नन्हें कदम हर दिन गिरने का जोखिम उठाते हैं। सबसे चिंताजनक बात यह है कि प्रधानाचार्या के पति स्कूल में आकर खुद बच्चों को पढ़ाते हैं — नियमों की खुलेआम अनदेखी और जवाबदेही पर सवाल।
मुंगारी: 208 बच्चों की भीड़, लेकिन कमरों की घोर कमी
करछना विकासखंड का प्राथमिक विद्यालय मुंगारी बच्चों की संख्या के हिसाब से ज़रूर बड़ा दिखता है — 208 बच्चे पढ़ते हैं, लेकिन मात्र छह कमरे हैं। प्रधानाचार्य वत्सला मिश्रा की चिंता जायज़ है — जगह नहीं है। दो भवन इतने जर्जर हो चुके हैं कि उनमें बच्चों को बैठाना जानलेवा हो सकता है। नए भवन की मांग वर्षों से की जा रही है, लेकिन अब तक केवल आश्वासन ही मिले हैं।
छोटे-छोटे बच्चों को अलग-अलग कोनों में बैठाकर पढ़ाना पड़ता है। किसी के पास पीने का पानी नहीं, किसी के पास बैठने की जगह नहीं — और सबसे बड़ी बात, स्कूल में "भीड़" है, लेकिन देखभाल करने वालों की कमी है।
कचरी: शिक्षा की दीवारें कब की ढह चुकी हैं
प्राथमिक विद्यालय कचरी की कहानी हृदय विदारक है। 66 बच्चों के नामांकन वाले इस विद्यालय में सीमा पटेल प्रभारी प्रधानाचार्य हैं। उन्होंने बताया कि पिछले चार वर्षों से स्कूल की दीवारें और छत पूरी तरह से जर्जर हो चुकी हैं। हर दिन, हर घंटे इन दीवारों के गिरने का खतरा मंडराता रहता है — जैसे कोई अनदेखा डर बच्चों के सिर पर तना हो।
यह सिर्फ ईंट और सीमेंट की कहानी नहीं है, यह उन नन्हें बच्चों की आवाज़ है जो हर सुबह उम्मीद लेकर स्कूल आते हैं कि उन्हें भी सुरक्षित शिक्षा का अधिकार मिलेगा। लेकिन प्रयागराज के इन स्कूलों में शिक्षा नहीं, डर, असुरक्षा और उपेक्षा पढ़ाई जा रही है।
सरकार कायाकल्प योजना, नई शिक्षा नीति और डिजिटल इंडिया की बात करती है, लेकिन प्रयागराज के पिपरांव, मुंगारी और कचरी जैसे स्कूल उसकी हकीकत को आईना दिखा रहे हैं। सवाल सिर्फ दीवारों का नहीं है, सवाल उन सपनों का है जो इन बच्चों की आंखों में पल रहे हैं। क्या वे किसी दिन गिरती छतों के नीचे ही दम तोड़ देंगे? या फिर कोई सुनेगा उनकी पुकार?
Published on:
29 Jul 2025 02:25 pm
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