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पाबंदी के बावजूद सरकारी और निजी संस्थानों में चल रहे डीजल जनरेटर, पर्यावरण पर मंडराया खतरा

सरकारी विभागों और निजी संस्थानों में अब भी धड़ल्ले से पुराने डीजल जनरेटरों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है, बल्कि सरकारी आदेशों की भी अनदेखी हो रही है।

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निजी संस्थानों में चल रहे डीजल जनरेटर

निजी संस्थानों में चल रहे डीजल जनरेटर

सरकार ने प्रदूषण को कम करने के लिए दो साल पहले सख्त दिशा-निर्देश जारी किए थे। इन निर्देशों के तहत पुराने डीजल जनरेटरों की जगह सीबीसीबी फोर जनरेटर लगाने या फिर ड्यूल किट से अपग्रेड करने को कहा गया था, ताकि हवा में जहरीली गैसों की मात्रा कम हो सके।

लेकिन इसके बावजूद शहर के कई सरकारी विभागों और निजी संस्थानों में अब भी धड़ल्ले से पुराने डीजल जनरेटरों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है, बल्कि सरकारी आदेशों की भी अनदेखी हो रही है।

डीजल जनरेटरों से निकलने वाला धुआं वायु प्रदूषण का बड़ा कारण

केंद्र और राज्य सरकार की ओर से मिलकर जारी किए गए आदेश में कहा गया था कि पुराने डीजल जनरेटरों को धीरे-धीरे हटाया जाए और उनकी जगह ड्यूल किट वाले जनरेटर लगाए जाएं। यह फैसला केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर लिया गया था, जिसमें बताया गया था कि डीजल जनरेटरों से निकलने वाला धुआं वायु प्रदूषण का बड़ा कारण है।

ड्यूल किट वाले जनरेटरों में एक खास तकनीक (SCR) का इस्तेमाल होता है, जो जहरीली गैसों को यूरिया के जरिए पर्यावरण के अनुकूल गैसों में बदल देता है। इससे ईंधन की खपत भी कम होती है और पर्यावरण को नुकसान भी नहीं होता।

काफी पुराने हैं जनरेटर

इसके बावजूद जिला मुख्यालय, तहसील, नगर निगम, बिजली विभाग, सरकारी दफ्तरों, प्राइवेट अस्पतालों और स्कूल-कॉलेजों में अब भी पुराने डीजल जनरेटर ही इस्तेमाल किए जा रहे हैं। इनमें से कई जनरेटर तो बहुत पुराने हैं, जो और भी ज्यादा प्रदूषण फैला रहे हैं।

अब सवाल उठ रहा है कि जब सरकार खुद नियम बना रही है, तो उसके पालन में इतनी लापरवाही क्यों हो रही है? पर्यावरण को बचाने के लिए सिर्फ निर्देश देना काफी नहीं, सख्ती से उनका पालन भी जरूरी है।