जो लोग प्रयागराज में लगने वाले माघ मेले और कुंभ मेले गए होंगे उनके लिए भूले—भटके शिविर शब्द जाना—पहचाना होगा। संगम के किनारे बांध के पास लगने वाला यह शिविर वर्षों से कुंभ की पहचान है। 1946 से शुरू हुए इस शिविर के जरिए मेले के दौरान अपनों से बिछड़ गए लोगों को उनके परिजनों से मिलवाया जाता है। मेले में खो गए लोगों को शिविर में लाया जाता है। पूरे मेला क्षेत्र में हजारों लाउडस्पीकर लगे रहते हैं। इसी शिविर में रखे एक माइक के जरिए इस पर अनाउंस किया जाता है। अपनों से बिछड़े हुए लोग यहां अपना नाम पर्ची में लिखकर देते हैं जिसे अनाउंसर माइक पर बोलता है यह आवाज हजारों माइक के जरिए पूरे मेला क्षेत्र तक पहुंच जाती है।
कपूर ने इसकी शुरुआत करने वाले राजाराम तिवारी का टाइटल अधिकार ले लिया है। भूले—भटके तिवारी के नाम से फेसम राजाराम के इसस प्रयास के जरिए लाखों लोग कुंभ मेले में बिछड़ने के बाद अपनों से मिल सके। राजाराम तिवारी का 2016 में निधन हो गया था। कपूर ने प्रयागराज निवासी उनके बेटे उमेश से मिलकर इस विषय पर पिक्चर बनाने की सहमति ली है। कपूर और उनके परिवार ने तिवारी से प्रयागराज में और मुंबई में मुलाकात की। हालांकि फिल्म निर्माण कब शुरू हो रहा है इसकी जानकारी अभी नहीं दी गई है। गौरतलब है कि तिवारी के भूले भटके शिविर को दुनियाभर की मीडिया ने सराहना की थी। मेले में आने वाले करोड़ों लोागें की सहूलियत के लिए शुरू हुआ यह शिविर दुनिया में अपने तरीके का अनूठा प्रयास है।