
शिक्षण संस्थाओं में भी सैनिटरी पैड छात्राओं की बुनियादी जरूरत है। स्कूलों में सैनिटरी पैड की व्यवस्था भी जरूरी है।
मासिक धर्म हर महिला के जीवन का एक सामान्य और प्राकृतिक हिस्सा है। ऐसे दिनों में शिक्षण संस्थाओं में भी सैनिटरी पैड छात्राओं की बुनियादी जरूरत है। स्कूलों में सैनिटरी पैड की व्यवस्था भी जरूरी है। लेकिन सैनिटरी पैड मांगने पर जब किसी छात्रा को न सिर्फ अपमानित होना पड़े बल्कि सजा के तौर पर एक घंटे तक कक्षा के बाहर खड़ा रहना पड़े तो स्कूल प्रबंधन की संवेदनहीनता ही उजागर होती है। उत्तर प्रदेश के बरेली में एक बालिका विद्यालय में ग्यारहवीं कक्षा की छात्रा को ऐसी ही परिस्थिति से दो-चार होना पड़ा और परीक्षा के दौरान सैनिटरी पैड मांगने पर उसे सजा भुगतनी पड़ी।
शर्मसार करती ऐसी घटनाएं न केवल नैतिकता का उल्लंघन है, बल्कि शिक्षा के बुनियादी सिद्धांतों के विपरीत भी है। ऐसा इसलिए भी कि स्कूल और कॉलेज केवल शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थान ही नहीं हैं। वे बच्चों के सामाजिक और नैतिक विकास के लिए भी उत्तरदायी हैं। एक शिक्षक का कर्तव्य है कि वह वक्त-बेवक्त अपने शिष्य वर्ग की जरूरतों को समझे और उनके प्रति सहानुभूति रखे। छात्रा को अपमानित करना न केवल अनुचित था, बल्कि यह उसके मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव डालने वाला है। साफ जाहिर है कि समाज और शैक्षणिक संस्थानों में मासिक धर्म स्वच्छता और जागरूकता को बढ़ाने के लिए अभी भी बहुत प्रयास करने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र सरकार को सरकारी और सहायता प्राप्त सरकारी स्कूलों में जाने वाली कक्षा 6 से 12 तक की छात्राओं के लिए मासिक धर्म स्वच्छता नीति तैयार करने के निर्देश दिए थे। उत्तर प्रदेश सरकार का दावा है कि वह बालिकाओं की नियमित उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए पीएमश्री योजना के तहत करीब 535 विद्यालयों में सैनिटरी पैड उपलब्ध करवा रही है।
कुछ अन्य राज्य सरकारें भी छात्राओं को मुफ्त में सैनिटरी पैड उपलब्ध करवा रही हैं, लेकिन जरूरत के वक्त छात्राओं को यह आसानी से मिल जाए, यह सुनिश्चित करना ज्यादा जरूरी है। होना तो यह चाहिए कि शैक्षणिक संस्थानों में मासिक धर्म स्वच्छता के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए नियमित अभियान चलें। स्कूलों में सैनिटरी पैड वेंडिंग मशीनों और इनके लिए इनसिनरेटर (जलाने की मशीन) की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि छात्राओं को बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष न करना पड़े।
मासिक धर्म जैसे प्राकृतिक विषय को शर्म या उपेक्षा का कारण नहीं बनने देना चाहिए। शैक्षणिक संस्थानों को सुरक्षित माहौल प्रदान करना चाहिए, जहां छात्राएं अपनी जरूरतों को बिना झिझक व्यक्त कर सकें।
Published on:
28 Jan 2025 05:06 pm
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