8 दिसंबर 2025,

सोमवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

अफगानिस्तान में महिलाओं पर लगाए प्रतिबंध के मायने गंभीर

सरिता चारण, शोद्यार्थी, स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज, जेएनयू, नई दिल्ली

2 min read
Google source verification
चिकित्सा शिक्षा पर प्रतिबंध न केवल महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, बल्कि अफगानिस्तान की कमजोर स्वास्थ्य प्रणाली पर दबाव भी डालता है।

चिकित्सा शिक्षा पर प्रतिबंध न केवल महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, बल्कि अफगानिस्तान की कमजोर स्वास्थ्य प्रणाली पर दबाव भी डालता है।


दिसंबर में अफगानिस्तान में महिलाओं के कॉलेज जाने पर प्रतिबंध के दो साल पूरे हो गए। मार्च में तीन साल हो जाएंगे जब से लड़कियों को छठी कक्षा के बाद स्कूल जाने से रोका गया। कुछ सप्ताह पहले तालिबान ने महिलाओं को नर्स या मिडवाइफ बनने की पढ़ाई पर भी रोक लगा दी। यह अफगानिस्तान की स्वास्थ्य सेवाओं को गहरे संकट में डालने का संकेत है। इस फैसले का असर न केवल अफगानिस्तान की महिलाओं पर, बल्कि पूरे समाज और आने वाली पीढिय़ों पर भी पड़ेगा। तालिबान शासन ने 2021 में सत्ता संभालने के बाद से अफगान महिलाओं के अधिकारों में निरंतर कटौती की है। शिक्षा-रोजगार के अवसरों पर प्रतिबंध लगाने से लेकर, उनके व्यक्तिगत जीवन को नियंत्रित करने तक, महिलाओं के लिए स्वतंत्र और गरिमापूर्ण जीवन के अवसर खत्म करने जैसा है। चिकित्सा शिक्षा पर प्रतिबंध न केवल महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, बल्कि अफगानिस्तान की कमजोर स्वास्थ्य प्रणाली पर दबाव भी डालता है।


अफगानिस्तान में पहले से ही महिलाओं के स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच मुश्किल है। पुरुष डॉक्टरों से इलाज कराना सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाओं से महिलाओं के लिए चुनौतीपूर्ण होता है। प्रशिक्षित महिला डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की कमी से महिलाओं और नवजात शिशुओं के लिए स्वास्थ्य देखभाल और भी कठिन हो जाएगी। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, अफगानिस्तान में मातृ मृत्यु दर दुनिया में सबसे अधिक है। केवल 14त्न जन्मों की देखभाल एक योग्य स्वास्थ्य कर्मचारी द्वारा होती है। प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों की कमी से घरों प्रसव आम बात है। इससे नवजात और उन मांओं के जान का खतरा बना रहता है।


चिकित्सा शिक्षा से महिलाओं को बाहर करने से यह स्थिति और खराब हो जाएगी। प्रशिक्षित महिला डॉक्टरों, नर्सों और दाइयों की अगली पीढ़ी कहां से आएगी? अफगान महिलाओं को पढ़ाई और काम करने से रोकना न केवल उनके अधिकारों का हनन है, बल्कि यह मांओं और बच्चों के जीवन को भी खतरे में डालता है। इससे मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं जैसे तनाव, अवसाद और अन्य विकार बढ़ सकते हैं। यह उन्हें सामाजिक के साथ आर्थिक स्वतंत्रता से भी वंचित करेगा और उन्हें पारंपरिक पुरुषवादी समाज में और अधिक निर्भर बना देगा। इसके साथ ही, यह लैंगिक असमानता को और बढ़ाएगा, जिससे समाज में संतुलन और प्रगति बाधित होगी। इस गंभीर स्थिति में अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है। तालिबान सरकार पर दबाव बनाने के लिए वैश्विक स्तर पर प्रयास किए जाने चाहिए। संयुक्त राष्ट्र, महिला अधिकार संगठन और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं अफगान महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए एकजुट हो रही हैं। ऑनलाइन शिक्षा, स्कॉलरशिप और भूमिगत शिक्षा कार्यक्रमों जैसे विकल्पों के माध्यम से अफगान महिलाओं को सहायता मिल रही है। लेकिन यह पर्याप्त नहीं है।


2023 की एसडीजी प्रगति रिपोर्ट में अफगानिस्तान का 166 देशों में से 158वां स्थान होना इस बात का प्रमाण है कि वहां का सामाजिक और आर्थिक विकास रुक गया है। महिलाओं को शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित करना पूरे समाज को विकास की प्रक्रिया से अलग कर देता है। यह केवल अफगानिस्तान के लिए नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लिए एक चुनौती है। भारत जैसे देश के लिए यह एक गंभीर और महत्त्वपूर्ण विषय है। महिलाओं के शिक्षा और स्वास्थ्य अधिकारों में सुधार के लिए भारत ने जो कदम उठाए हैं, वे अफगानिस्तान जैसे देशों को प्रेरणा और सहयोग प्रदान कर सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय प्रयासों में भारत को भी भूमिका निभानी चाहिए। महिलाओं के अधिकारों का हनन किसी एक देश का मुद्दा नहीं, बल्कि वैश्विक चिंता का विषय है। महिलाओं को उनके अधिकार लौटाना न केवल नैतिक जिम्मेदारी है, बल्कि यह स्थिरता और समृद्धि की ओर बढऩे का मार्ग भी है।