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जिंदगी भर की कमाई से बनाया आशियाना, पर प्रशासन की मिली चेतवानी

लोगों ने जिंदगी भर की कमाई से आशियाना बनाया लेकिन अब प्रशासन की द्वारा चेतावनी दी गई हैं।

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जिंदगी भर की कमाई से बनाया आशियाना, पर प्रशासन की मिली चेतवानी

रायबरेली. सरकार और प्रशासन की लापरवाही से आम जनता की जिन्दगी भर की कमाई से बनाया गया अपने बच्चों का आशियाना प्रशासन की गलती से उजड़ जाते हैं। प्रशासन के नाक के नीचे शहर में गलत जमीनों पर आवास बनते रहते हैं लेकिन तब प्रशासन इन अवैध या जायज मकानों पर ध्यान क्यों नहीं देता है। जब मकान तैयार होकर कई वर्षों तक परिवार रह चुका होता है तब अचानक प्रशासन को इन मकानों की याद आती है कि यह गलत तरीके या अवैध जमीनों पर बनाए गए है।

अगर इस पर नोटिस देना है तो सरकार को प्रशासन को कटघरे में सबसे पहले खड़ा करना चाहिए और किसी परिवार का मकान सरकार के आदेश पर प्रशासन गिराता है तो वह उस परिवार से उस समय की जमीन की कीमत ले सकता है या उस मकान का प्रशासन की सर्विस से पैसा कटौती करनी चाहिए। इसके साथ ही उसको नौकरी से भी निकालने का प्रवाधान सरकार को करना चाहिए। इसी तरह का एक मामला रायबरेली शहर से सामने आया है।

यह है पूरा मामला

रायबरेली शहर के वीरपाल कोठी के पास जमीन राजस्व परिषद की थी, जिसका प्रबंधन जिलाधिकारी के पास था। करीब 34 साल पहले जमीन आरडीए को दी गई थी ताकि इंदिरा नगर विस्तार योजना में उसका उपयोग हो सके। मगर जमीन के स्वामित्व को लेकर एक बार न्यायालय में दायर हो गया। इसका फैसला आता, इससे पहले ही जमीन पर लोगों ने मकान बनवाकर रहना शुरू कर दिया। पिछले साल नवंबर 2017 में फैसला हुआ। यह निर्णय प्राधिकरण के पक्ष में रहा। अब तक शांत रहे प्राधिकरण ने निर्णय आने के बाद अपनी जमीन पर हक जताना शुरू कर दिया। जमीन पर मकान बनवाने वाले लोगों को नोटिस जारी किया गया है।

जमीन पर बने मकानों की संख्या

वर्ष 2005 के सर्वे में मिले थे 80 मकान विभागीय अफसरों का कहना है कि वर्ष 1987 को वाद दायर हुआ था। इसके बाद न्यायालय में यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए थे। मगर, इसी बीच जमीन की खरीद-फरोख्त हो गई। इसमें लोगों ने प्रशासन की ओर से प्राधिकरण को दी गई इस जमीन को खरीदा और उस पर मकान भी बनवा डाले। इसका पता चलने पर वर्ष 2005 में एक सर्वे कराया गया था। तब इस जमीन पर बने मकानों की संख्या 80 थी। अब यह आंकड़ा 100 के पार पहुंच गया है।

आलीशान मकानों की संख्या ज्यादा

आरडीए की इस जमीन पर बड़े-बड़े आलीशान मकान बने हुए हैं। कोई बड़ा व्यापारी है तो कोई सरकारी विभागों में कर्मचारी। यही नहीं बताते हैं कि कई लोगों ने जितनी जमीन खरीदी थी, उससे अधिक पर कब्जा कर लिया है। जल निगम कार्यालय का कुछ हिस्सा भी इसी जमीन पर है। अब इन भवन मालिकों के पास दो ही रास्ते बचते हैं या तो प्राधिकरण की जमीन को खाली करें। या फिर उसका मूल्य चुकाकर प्राधिकरण से भूमि खरीद लें। इसके लिए एक मौका भी प्राधिकरण ने दिया।

इंदिरा नगर विस्तार योजना के लिए वीरपाल कोठी के आसपास की जमीन प्रशासन ने प्राधिकरण को दी थी। इसका विवाद न्यायालय में चल रहा था। इसका फैसला आरडीए के पक्ष में आया है। इसके बाद जमीन पर बने मकानों के मालिकों को नोटिस दी गई है कि वे प्राधिकरण से जमीन क्रय कर लें।


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