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हैरान करने वाला कारनामा, बिना क्रेता बिक्री नकल जारी और हो गई रजिस्ट्री!

एक अनोखा प्रकरण सामने आया

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एक अनोखा प्रकरण सामने आया

एक अनोखा प्रकरण सामने आया

रायगढ़. जमीन के खरीद-बिक्री के मामले में एक अनोखा प्रकरण सामने आया है जिसमें बिना खरीददार के बिक्री नकल जारी हो गया वहीं उक्त जमीन की रजिस्ट्री भी खरीददार की अनुपस्थिति में हो गई।

नियमानुसार देखा जाए तो भुईंया के माध्यम से बिक्री नकल जारी कराने के दौरान विक्रेता की उपस्थिति के साथ ही साथ क्रेता की उपस्थिति अनिवार्य है और रजिस्ट्री में बिना क्रेता के रजिस्ट्री संभव ही नहीं है, लेकिन यह कारनामा पंजीयन विभाग ने कर दिखाया है।


सूचना के अधिकार के तहत निकाले गए दस्तावेज में पंजीयन विभाग ने विक्रय अभिलेख की सत्यापित प्रति आवेदक को दिया है, विक्रय अभिलेख की उक्त सत्यापित प्रति व अन्य दस्तावेज में गौर किया जाए तो पुसौर तहसील के रुचिदा ग्राम में खसरा नंबर 160/2 में धरमू पिता दोन्दरों व अन्य के नाम पर 0.061 हेक्टेयर जमीन है। जिसे विक्रय करने के लिए जनवरी 2013 में बिक्री नकल के लिए आवेदन लगाया गया तहसील से जारी बिक्री नकल पर गौर किया जाए तो क्रेता के दस्तखत ही गायब हैं।


इसके बाद अप्रैल 2013 में उक्त जमीन का रजिस्ट्री पंजीयन विभाग में हुआ इसमें भी पूरे विक्रय अभिलेख में क्रेता का न दस्तखत है न ही अंगूठा का निशान है। इसके बाद भी पंजीयन विभाग ने रजिस्ट्री कर दी है। जबकि गौर किया जाए तो आम लोगों के रजिस्ट्री में बिना गवाही के ये प्रक्रिया नहीं होती है। लेकिन इस मामले में क्रेता के बगैर ही सारा काम हो गया है।

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पुसौर में रहकर भी नहीं पहुंचा क्रेता
तैयार कराए गए विक्रय अभिलेख में गौर किया जाए तो क्रेता का नाम अशोक कुमार पिता कन्हैयालाल जाति गोंड़ बोरगांव, तहसील केशकाल बस्तर का निवासी है। वहीं वर्तमान में पुसौर के पुसल्दा ग्राम में रहना बताया गया है। इसके बाद भी विक्रय अभिलेख में उसका दस्तखत व अंगूठे का निशान नहीं है।


जांच की उठ रही मांग
बताया जाता है कि उक्त भू-स्वामी की जमीन जहां पर है वहां एक प्लांट का विकास होने जा रहा है। यह पूरा खेल उक्त उद्योग के लिए खेला गया है इसलिए इस क्षेत्र में ऐसे और भी ढेरों प्रकरण हो सकते हैं। जिला प्रशासन की जांच से ऐसे प्रकरण सामने आ सकते हैं।


गड़बड़झाला सामने
रजिस्ट्री की निकाली गई सत्यापित प्रति के अनुसार बिना क्रेता के रजिस्ट्री अप्रैल 2013 में हो गई है लेकिन भुईंया में देखा जाए तो उक्त खसरा नंबर की जमीन अभी भी धरमु पिता दोन्दरों के नाम पर दर्ज होना दिखा रहा है। इससे यह स्पष्ट है कि नामांतरण नहीं कराया गया है। ऐसे में पूरा का पूरा सवाल पंजीयन विभाग पर उठ रहा है।