
Raipur News: पं. जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज परिसर में सिकलसेल संस्थान को सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनाया जाएगा। इसमें 48 करोड़ रुपए खर्च होगा। भविष्य में यहां बोन मैरो ट्रांसप्लांट भी किया जाएगा। स्टेमसेल थैरेपी की सुविधा को भी बढ़ावा दिया जाएगा। इसके लिए जरूरी विशेषज्ञ नियुक्त किए जाएंगे। प्रदेश की 10 फीसदी आबादी सिकलसेल से ग्रसित हैं। इसमें कुछ जाति विशेष के लोग शामिल हैं। सिकलसेल संस्थान हमेशा सुर्खियों में रहा है, क्योंकि यहां रिसर्च जीरो है, लेकिन घोटाले जरूर होते रहे हैं। अभी 1.65 करोड़ के घोटाले के कारण संस्थान सुर्खियों में है।
जेल रोड स्थित सिकलसेल संस्थान को तोड़कर नई बिल्डिंग बनाई जा रही है। देखने वाली बात होगी कि नई बिल्डिंग बनने के बाद सिकलसेल संस्थान में रिसर्च को बढ़ावा मिलेगा या नहीं। सिकलसेल पीड़ित मरीज असहनीय पीड़ा से गुजरते हैं। ऐसे में जरूरी है कि उनकी सही समय पर स्क्रीनिंग हो, बीमारी की पहचान हो ताकि तत्काल इलाज शुरू हो सके। स्वास्थ्य विभाग की मंशा है कि प्राइमरी स्कूलों में छात्रों की स्क्रीनिंग हो, ताकि समय रहते बीमारी का पता लगाकर इलाज शुरू किया जा सके। विशेषज्ञों का कहना है कि जिस तरह शादी में लड़की-लड़का का गुण मिलाया जाता है। उसी तरह सिकलेसल जांच कराई जाए तो इस बीमारी को फैलने से रोका जा सकता है। जागरुकता में कमी के चलते यह बीमारी बढ़ रही है। उधर, जेल रोड स्थित पुराने सिकलसेल संस्थान की इमारत को तोड़कर नई 5 बिल्डिंग बनाई जाएगी। इसका प्रस्ताव जून 2021 में बनाया गया था।
5 मंजिला बिल्डिंग ओपीडी से लेकर लैब भी
नई बिल्डिंग पांच मंजिला होगी। पहले लोर में ओपीडी में मरीजों का इलाज किया जाएगा। डॉक्टरों के कक्ष भी होंगे। पैथोलॉजी लैब, को-आर्डिनेटर रूम, दवा स्टोर भी होगा। दूसरी मंजिल में रिसर्च सेंटर होगा, तीसरी में कांफ्रेस रूम, ऑडिटोरियम, वीडियो कांफ्रेंसिंग रूम बनाया जाएगा। वहीं चौथी मंजिल में रिहेबिलेशन सेंटर और पांचवी में टीचिंग ब्लॉक बनाने का प्रस्ताव है। सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनने से सिकलसेल के मरीजों के इलाज व रिसर्च को बढ़ावा मिलने की उमीद की जा रही है। इससे सिकलसेल के इलाज में बड़ा परिवर्तन की भी संभावना है।
कैसे करें सिकलसेल की पहचान: शादी के दौरान दूल्हा-दुल्हन सिकलसेल के मरीज न हों न ही वाहक हो। इसके लिए पंडितों को भी पहल करनी चाहिए, कुंडली के साथ-साथ सिकलसेल कुंडली का भी मिलान करना चाहिए। इससे इस गंभीर बीमारी को फैलने से रोका जा सकता है। इसके लिए समाज के लोगों को ही आगे आना होगा।
सिकलसेल बीमारी व संस्थान एक नजर में
प्रदेश में सिकलसेल के मरीज व वाहक 25 लाख के आसपास
सेंट्रल इंडिया का पहला संस्थान। देश में ऐसे केवल तीन से चार।
बोन मैरो ट्रांसप्लांट 5 लाख से कम कीमत पर हो सकेगा। निजी में 8 से 16 लाख।
रिसर्च होगा व मरीजों की स्टडी की जा सकेगी। इलाज में मिलेगी मदद।
स्टेमसेल थैरेपी से कैंसर के मरीजों का इलाज हो रहा संस्थान में।
स्टेज से लेकर लोगों में बीमारी के ट्रेंड है पर रिसर्च होगी।
संस्थान में सरकारी खर्च पर इलाज पूरी तरह फ्री होगा।
Updated on:
20 Apr 2024 08:35 am
Published on:
19 Apr 2024 02:05 pm
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