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अनोखा है यह भूतेश्वर शिवलिंग, हर साल बढ़ रहा इनका आकार

इस शिवलिंग का अाकार लगाता बढ़ रहा है, इसके दर्शन व जलाभिषेक करने के लिए हजारों की संख्या में आते हैं लोग

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Abhishek Srivastav

Aug 03, 2015

bhuteshwar temple

bhuteshwar temple

गरियाबंद। 12 ज्योतिर्लिंगों की तरह छत्तीसगढ़ में एक अर्धनारीश्वर प्राकृतिक शिवलिंग भूतेश्वर महादेव के नाम से विख्यात है। यह शिवलिंग हर साल बढ़ता जा रहा है। राजधानी रायपुर से 90 किमी दूर गरियाबंद में घने जंगलों के बीच बसे ग्राम मरौदा में स्वयं स्थापित है। यहां हर वर्ष सावन में भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। इसमें दूर-दराज से भक्त आकर महादेव की आराधना करते हैं। प्रदेश के अलावा अन्य राज्यों से भी भक्त यहां पहुंचते हैं। सावन के सोमवार को सुबह से कांवरियों द्वारा जलाभिषेक किया जाता है। श्रद्धालु रविवार को ही पहुंच जाते हैं। बाहर से आए कांवरियों को रात्रि में ठहरने के लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा खाने व सोने की व्यवस्था की जाती है।
पौराणिक मान्यता
बताया जाता है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व जमींदारी प्रथा के समय पारागांव निवासी शोभासिंह जमींदार की यहां पर खेती-बाड़ी थी। शोभा सिंह शाम को जब अपने खेत में घूमने जाता था तो उसे खेत के पास एक विशेष आकृति नुमा टीले से सांड के हुंकारने (चिल्लाने) व शेर के दहाडऩे की आवाज आती थी। उसने यह बात ग्रामीणों को बताई। ग्रामवासियों ने भी शाम को वहीं आवाजें सुनी। सांड और शेर की तलाश की गई लेकिन दूर-दूर तक कोई जानवर के नहीं मिलने पर इस टीले के प्रति लोगों की श्रद्धा बढऩे लगी। लोग इस टीले को शिवलिंग के रूप में मानने लगे।
इसलिए पड़ा नाम
पारागांव के लोग बताते हैं कि पहले यह टीला छोटे रूप में था। धीरे-धीरे इसकी ऊंचाई व गोलाई बढ़ती गई। जो आज भी जारी है। शिवलिंग में प्रकृति प्रदत जललहरी भी दिखाई देती है। जो धीरे-धीरे जमीन के ऊपर आती जा रही है। यही स्थान आज भूतेश्वरनाथ, भकुर्रा महादेव के नाम से जाना जाता है। छत्तीसगढ़ी में हुकारने को भकुर्रा कहते हैं।
शिवलिंग का पौराणिक महत्व
वर्ष 1959 में गोरखपुर से प्रकाशित धार्मिक पत्रिका कल्याण के वार्षिक अंक में उल्लेखित है। इसमें इसे विश्व का एक अनोखा महान और विशाल शिवलिंग बताया गया है। यह जमीन से लगभग 55 फीट ऊंचा है। प्रसिद्ध धार्मिक लेखक बलराम सिंह यादव के ज्ञानानुसार संत सनसतन चैतन्य भूतेश्वरनाथ के बारे में लिखते हैं कि लगातार इनका आकर बढ़ता जा रहा है। वर्षों से नापजोख हो रही है। यह भी किवदंती है कि इनकी पूजा छुरा नरेश बिंद्रानवागढ़ के पूर्वजों द्वारा की जाती रही है।

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