10 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

पोस्टमार्टम से कोर्ट तक… लेकिन पेशी से गायब! यहां के 100 से ज्यादा डॉक्टरों को गिरफ्तारी वारंट जारी, जानें पूरा मामला

Arrest Warrant: आंबेडकर अस्पताल के डॉक्टर इलाज से लेकर ड्यूटी और पोस्टमार्टम में व्यस्त रहते हैं। ऐसे 100 से ज्यादा डॉक्टरों को गिरफ्तारी वारंट मिल चुके हैं।

2 min read
Google source verification
Raipur News: कैंसर विभाग की बिल्डिंग बनेगी अब सात मंजिला, आंबेडकर अस्पताल के लिए 39.36 करोड़ मंजूर

आंबेडकर अस्पताल (Photo Patrika)

Arrest Warrant: आंबेडकर अस्पताल के डॉक्टर इलाज से लेकर ड्यूटी और पोस्टमार्टम में व्यस्त रहते हैं। ऐसे 100 से ज्यादा डॉक्टरों को गिरफ्तारी वारंट मिल चुके हैं। इन्हें किसी अपराध के लिए नहीं, बल्कि कोर्ट की पेशी में उपस्थित नहीं होने पर वारंट जारी किया गया है। पिछले दो माह में ऐसे डॉक्टर गिरफ्तारी से बचने के लिए पेशी में जा रहे हैं। अब दूरदराज के कोर्ट में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग या वीडियो कॉल से भी पेशी होने लगी है। इससे डॉक्टरों की परेशानी कम हुई है। मेडिको लीगल केस (एमएलसी) में जांच, इलाज, पोस्टमार्टम व मुलाहिजा करने वाले डॉक्टर को कोर्ट में पेश होना पड़ता है।

डॉक्टरों का कहना है कि इलाज व ऑपरेशन में व्यस्त रहने के कारण वे नहीं जा पाते हैं। इनमें प्रोफेसर से लेकर रेसीडेंट यानी जूनियर डॉक्टर तक भी शामिल होते हैं। कई बार थाने से आए पुलिसकर्मियों को डॉक्टरों को खोजते देखा जा सकता है। दरअसल कई जूडो पास होने के बाद अपने राज्यों में चले जाते हैं। दो बार पेशी में नहीं जाने पर उन्हें तीसरी बार गिरफ्तारी वारंट जारी किया जाता है।

आपराधिक मामलों में अहम होते हैं बयान

सड़क हादसे से लेकर हत्या तक के केस में डॉक्टरों के बयान काफी महत्वपूर्ण हैं। पेशी में जाने वाले डॉक्टर इलाज के साथ ऑपरेशन या मुलाहिजा करने वाले होते हैं। ऐसे में उनका बयान काफी मायने रखता है। मरीज को क्षतिपूर्ति राशि केस जीतने के बाद दिया जाता है। पीड़ित पक्ष के लिए यह काफी महत्वपूर्ण होता है।

\छोटे से बड़े आपराधिक मामले जिनमें डॉक्टरों की जांच अहम कड़ी होती है, उन्हें कोर्ट में पेश होना पड़ता है। कई डॉक्टरों को तो पुराने मामले में अब भी भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, रीवा, जबलपुर भी जाना पड़ रहा है। यही नहीं डॉक्टरों को रिटायरमेंट व ट्रांसफर के बाद भी पेशी में जाना पड़ता है। वारंट और पेशी को लेकर महिला डॉक्टरों को भी छूट नहीं मिलती है।

यह भी पढ़े: पुलिस विभाग में ‘शब्द क्रांति’, हटेंगे मुचलका-रोजनामचा जैसे उर्दू-फारसी के शब्द, 109 Words होंगे सरल हिंदी में

डॉक्टर हैं अहम साक्ष्य, पेश होने से केस बढ़ता है आगे

किसी भी एमएलसी मामलों में डॉक्टर की कोर्ट में पेशी बहुत ही जरूरी है। वे मेडिकल विशेषज्ञ साक्ष्य होते हैं। उनकी रिपोर्ट और बयान केस के लिए काफी महत्व रखते हैं। उनके द्वारा की गई जांच औैर रिपोर्ट से केस आगे बढ़ता है। जिस डॉक्टर ने क्यूरी रिपोर्ट, मुलाहिजा और परीक्षण किया है, उसका संबंधित मामले में उपस्थित होना अनिवार्य है। उनके पेश न होने से केस पेंडिंग रहता है।

कई बार इलाज और ओपीडी में व्यस्त रहने से डॉक्टर समन मिलने पर भी कोर्ट नहीं आ पाते हैं। पहली बार तो समन जारी होता है, उसके बाद गैर जमानती वारंट फिर भी पेश नहीं हुए तो कोर्ट गिरतारी वारंट जारी करता है। इसके बाद पुलिस संबंधित को कोर्ट के सामने लेकर आती है। टॉपिक एक्सपर्ट - डॉ. आरके सिंह, रिटायर्ड डीएमई व फोरेंसिक मेडिसिन विशेषज्ञ।

नॉन क्लीनिकल को छोड़कर किसी विभाग के डॉक्टर नहीं बच सकते

मेडिकल कॉलेज व आंबेडकर अस्पताल में ऐसा कोई विभाग नहीं है, जहां के रेसीडेंट से लेकर कंसल्टेंट डॉक्टरों को गैर जमानती और गिरतारी वारंट का सामना न करना पड़ा हो। ऐसे मामलों में आपातकालीन चिकित्सा अधिकारियों (सीएमओ) को भी दो-चार होना पड़ रहा है। मेडिसिन, रेडियो डायग्नोसिस, सर्जरी, ऑर्थोपीडिक्स, न्यूरो सर्जरी, प्लास्टिक सर्जरी, पीडियाट्रिक सर्जरी, ईएनटी, नेत्र के साथ अन्य डॉक्टरों को गैरजमानती वारंट मिल चुका है। मारपीट से लेकर सड़क दुर्घटना, हत्या का प्रयास, हत्या, रेप के साथ संदेहास्पद मौत समेत मेडिको लीगल केस में डॉक्टरों को कोर्ट जाना पड़ रहा है।