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कोरोना के बाद आयुर्वेद बना सहारा, मरीजों की जड़ी-बूटियों से कर रहे इलाज, वैज्ञानिकों का ये है कहना

Raipur News : कोरोनाकाल में पूरी दुनिया के लोगों का आयुर्वेद पर विश्वास बढ़ा है।

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आयुर्वेदिक कॉलेज में आने वाले मरीजों की संख्या 10 गुना तक बढ़ गई

आयुर्वेदिक कॉलेज में आने वाले मरीजों की संख्या 10 गुना तक बढ़ गई

Raipur news : कोरोनाकाल में पूरी दुनिया के लोगों का आयुर्वेद पर विश्वास बढ़ा है। रायपुर में बीते तीन साल में आयुर्वेदिक कॉलेज में आने वाले मरीजों की संख्या 10 गुना तक बढ़ गई है। कोरोना के पहले ओपीडी में 30 से 40 मरीज तक आते थे। वहीं अब उनकी संख्या बढ़कर 300 से 400 के आसपास पहुंच गई है। (chhatisgarh news) ऐसे मरीज जिन्हें एलोपैथी से निराशा हाथ लगी है, उनके लिए आर्युेवेद एक नई उम्मीद बनकर उभरा है। लोगों को यहां पर पंचकर्म, स्वर्ण प्राशन, फिजियोथैरिपी, सियान जतन क्लीनिक, मानसिक रोगियों की काउंसिलिंग की सुविधा दी जा रही है।

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सबसे ज्यादा मरीज बाल रोग विभाग, शरीर क्रिया, शरीर रचना, पंचकर्म और शल्य तंत्र के यहां पहुंच रहे हैं। मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। (cg raipur news) इसके अलावा बच्चों के व्याधिक्षमत्व, पाचन शक्ति, स्मरण शक्ति, शारीरिक शक्ति वर्धन एवं रोगों से बचाव के लिए स्वर्णप्राशन कराया गया। आयुर्वेद महाविद्यालय चिकित्सालय के कौमारभृत्य विभाग द्वारा शून्य से 16 वर्ष के बच्चों को स्वर्णप्राशन कराया जाता है। (raipur news hindi) इसके अलावा बच्चों के स्वास्थ्य परीक्षण के साथ नि:शुल्क औषधि दी जा रही है।

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155 छात्र कर रहे हैं रिसर्च

काय चिकित्सा, शरीर रचना, रस शास्त्र, संहिता सिद्धांत, शल्य तंत्र, रोग एवं विकृति विज्ञान और द्रव्यगुण विज्ञान के छात्र पीजी कर रहे हैं। (cg news today) यहां पीजी में रिसर्च करने वाले छात्रों की संख्या 155 है। पीजी के छात्र (जूनियर डॉक्टर)आयुर्वेद पद्धति से यहां पहुंचने वाले मरीजों का इलाज कर रहे हैं। इसके अलावा प्रबंधन इन्हें रॉ मटेरियल उपलब्ध करा रहा है, जिससे दवाएं बनाने के लिए रिसर्च कर रहे हैं।

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इन जड़ी-बूटियों से दवाओं का ट्रायल

कच्ची औषधियां अम्लवेतस, अजवाइन सत् (लेब टेस्ट), अनारदाना, आंवला (गुठली रहित), इलायची छोटी, कत्था (लेब टेस्टेड), काली मिर्च, कांचनार, तालिस पत्र, गोदन्ती पाषण, तिल तैल, दालचीनी त्वक, नागकेसर, निशोथ, पिप्पली छोटी, पिपरामूल, प्रसारणी, बहेड़ा (गुठली रहित), मुनक्का ( द्राक्षा), लवंग, वंशलोचन ( लेब टेस्टेड), सनाय पत्र, सौंफ (हरी), सोंठ (शुण्ठी) (पॉलिश रहित), हरड़ (गुठली रहित) से रिसर्च करने वाले छात्र मरीजों पर ट्रायल कर रहे हैं।

इस पुरातन और निरापद चिकित्सा पद्धति का डंका बजाने के लिए दवाओं और उपचार पद्धति को वैज्ञानिक कसौटी पर कसना जरूरी है। जूनियर डॉक्टर विभिन्न रोगों को लेकर उन पर दवाओं व उपचार पद्धति के असर पर अध्ययन कर रहे हैं।

-संजय शुक्ला, रजिस्ट्रार, आयुर्वेद व यूनानी बोर्ड